दोस्तों ये मेरा पहला अनुभव है लिखने में तो कोई गलती हो जाए तो थोड़ा एडजेस्ट कर लेना बाकी आपके साथ रहूंगा तो जल्दी ही सीख जाऊंगा
आपका सीरियल ट्रैवलर
तो मित्रों बात ऐसी है कि कई वर्षों और कई बार की प्लानिंग फेल होने के बाद एक शाम जब हम अपनी बीयर पार्टी में बैठे तो मैंने और मेरे एक मित्र ने फैसला किया कि अब हम 5 नहीं हम दो लोग ही बाबा केदारनाथ की यात्रा पर चलते हैं, और फिर हमने बिना समय गंवाए उसी रात अपना बैग पैक किया और अपनी कार से चलने का निर्णय कर लिया,
हमने अपनी यात्रा दिल्ली से रात 12 बजे अपनी कार बलेनो से प्रारंभ की रास्ते में एक दो जगह चाय पीते हुए हम सुबह सुबह हरिद्वार पहुंच गए वहां हमने अपनी कार पार्किंग में लगाई और अपना सारा सभी कीमती सामान कार में रख दिया और घाट पर नहाने पहुंच गए, अच्छा साथ में कोई भी ऐसा समान नहीं था जिसके चोरी या खोने का दर हो तो हम बेफिक्र होकर मां गंगा की गोद में चैन से रात भर की थकान नहा कर मिटा रहे थे, पता नही कब एक चोर आया और मेरी पैंट उठा कर चंपत हो गया जब हम नहा कर वापस घाट की सीढ़ियों पर आए तो देखा के बाकी सभी कपड़े तो हैं पर मेरा वो पैंट नही दिख रहा जिसमे मेरी गाड़ी की चाभी थी, और फिर हम समझ गए के चोर उसमे समान रखे होने के अंदेशे में उसे ही उठा कर ले गया, हमने घाट पर कई लोगों से पूछताछ की पर कुछ जानकारी नहीं मिली, उसके बाद हम सीधे पार्किंग में खड़ी अपनी कार पर पहुंचे चूंकि सभी समान कार के अंदर बंद था तो न तो हमारे पास एक भी पैसा था न ही मोबाइल, कार को खोलने का काफी प्रयास किया गया पर सफलता नहीं मिली अंत में हमे कार का एक तरफ का शीशा तोड़ना पड़ा और अपने कपड़े मोबाइल निकाल के चाभी बनाने वाले को ढूंढने निकल गए अपने एक मित्र को कार पर खड़े करके, हरिद्वार में काफी देर घूमने के बाद एक सरदारजी मिले उनको साथ में लेकर में घाट पर पहुंचा फिर 2 घंटे की मेहनत के बाद कार स्टार्ट हुई, तो मित्रो आप भी जब कभी हरिद्वार जाओ तो अपनी कार की चाभी वहीं किसी दुकान पर देदो आप साथ ऐसा न हो, इस तरह हमारा पहला दिन चाभी की भेंट चढ़ गया, फिर हम हरिद्वार से सीधे अपनी आगे की यात्रा पर निकल गए और रात को दस बजे देवप्रयाग पहुंच गए वहां हमने होटल लिया और रात यहीं बिताना ठीक समझा और हम फिर रात को जल्दी से सो गए।
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अगले दिन सुबह सुबह उठे तो हम खबर मिली के बाबा अमरनाथ पर बादल फटने की वजह से कई श्रद्धालु मारे गए और कई लापता हैं , ऐसी खबर सुनकर हम दोनो ही लोगों के घरों से फोन आने लगे के कहीं हम वहां तो नही हैं हमने उन्हें आश्वस्त किया के हम अभी देवप्रयाग पर है तथा आज आगे बाबा केदारनाथ पहुंचेंगे, पर घर वाले नही माने उन्होंने कहा बरसात का मौसम है हम तुम्हे आगे नही जाने देंगे घर वालों की जिद के आगे हमे अपना प्लान कैंसल करना पड़ा पर हमने सोचा चलो शायद बाबा केदारनाथ ने अभी हमे नही बुलाया हो फिर हम देवप्रयाग पर अलकनंदा और भागीरथी के संगम मे स्नान करने चले गए तथा नहा कर आकर सोचने लगे के अब आगे किधर जाना चाहिए, मोबाइल पर काफी सर्च करने के बाद हमें एक जगह दिखाई दी टेहरी गढ़वाल फिर हमने सोचा चलो अभी वापस घर जाकर ही क्या करेंगे यहीं घूम आते हैं, और यकीन मानिए हमारा ये फैसला इतना सही साबित होगा हमने कभी सोचा नहीं था, टेहरी की देवप्रयाग से दूरी तकरीबन 80 किलोमीटर की है और हमे इस 80 किलोमीटर में वो वो नजारे मिले जिसे आपको भी घूमना चाहिए अगर एक अच्छी रोड ट्रिप चाहिए तो, अलकनंदा नदी के साथ साथ चलना काले बादलों से घिरे ऊंचे ऊंचे हरियाली से सराबोर पहाड़ एक अद्भुत दृश्य आंखों के सामने था रोड बहुत व्यस्त नही था बहुत ही कम लोग पर शांत इतना के बस मन कर रहा था के कहीं नहीं जाओ बस यहीं ठहरे रहो 4 घंटे में हम टेहरी पहुंचे वहां हमने एक विशालकाय बांध देखा जो अपने आप में एक अलग ही नजारा था, बांध पर घूमने के बाद हमने होटल ढूंढना शुरू किया तो एक होम स्टे हमे मिला बहुत ही अच्छे लोग थे हमने उसी में रात गुजारने का फैसला किया, घर की केयर टेकर ऐसी थीं की लगा ही नहीं हम किसी दूसरे शहर या प्रदेश में हैं, आने के कुछ देर बाद वो हमें चाय देकर गईं और शाम को हम क्या और कितने बजे खायेंगे ये भी पूछ कर गईं, शाम को हम टहलते हुए लोकल मार्केट घूमने गए एक बहुत शांत और ठंडा शहर वहां के लोकल में मिलने वाले समोसे और जलेबी आनंद ही आगया उस शाम का रात को 9 बजे हम वापस अपने रूम पर पहुंचे थोड़ी देर बाद हमारे लिए खाना लग कर आ गया, खाने को देख के दिल खुश हो गया आंटी ने दाल, चावल, रोटी, पनीर, रायता, सलाद इतना कुछ बनाया के हमे लगा ही नहीं की हम घर नहीं बाहर खाना खा रहे हैं, रात के खाने के बाद हम कुछ देर सड़क पर टहले फिर रात में सुकून से सोने चले गए, रात में इतनी गहरी नींद आई की सुबह सीधे हमारी आंख तब खुली जब आंटी हमारे लिए चाय लेकर आई, ये चाय हमारे लिए अनएक्सपेक्टेड थी , चाय पीकर नहा धो कर हम वापस दिल्ली की ओर निकल गए।