पहाड़ हर किसी को सुकून देता है, यहाँ पनाह भी मिलती है और ज़िंदगी को देखने का एक अलग नज़रिया भी। हिमालयी शिखरों के बीच बसे शहर कोई जगह नहीं है, एक भावना हैं, जहाँ बार-बार जाने का मन करता है, उन शहरों की संस्कृति और सभ्यता को देखने में एक हल्का-सा सुकून मिलता है। आप उनके बारे में जानते हो या ना जानते हों आप यहाँ आसानी से घुल-मिल जाएँगे।
अगर आप इन छोटे शहरों को करीब से देखना चाहते हैं, यहाँ की खुशबू में घुलना चाहते हैं तो आपको पहाड़ों के त्योहारों में शामिल होना चाहिए। पहाड़ों की बुलंद चोटियाँ और यहाँ के लोग आपका तहेदिल से स्वागत करेंगे। सर्द मौसम में ये फेस्टिवल ताज़गी और गर्माहट पैदा करते हैं। आपको यहाँ सिर्फ ना केवल रोचक जानकारियाँ मिलेंगी बल्कि कई प्रकार की कहानियाँ भी सुनने को मिलेंगी। इसलिए पहाड़ों की सुंदरता के बीच होने वाले इन फेस्टिवलों को देखने आपको ज़रूर जाना चाहिए।
1. हेमिस फेस्टिवल, लद्दाख
रंगों और धूमधाम का ये फेस्टिवल यहाँ के स्थानीय देवता भगवान पद्मसंभव के जन्म के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। भगवान पद्मसंभव ने तिब्बत में तांत्रिक बौद्ध धर्म की स्थापना की। हेमिस फेस्टिवल में एक रहस्यमय नकाबपोश नृत्य प्रदर्शन किया जाता है। इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत को दिखाया जाता है। इस फेस्टिवल को देखने के लिए हर साल, दुनिया भर के पर्यटक लद्दाख जाते है। इस दौरान शांत हेमिस मठ, डांस, संगीत और प्रार्थना का एक अलग ही अनुभव होता है।
कहाँ: हेमिस जंगचूब चोलिंग मठ, लद्दाख (लेह से 45 कि.मी.)
कबः 8 जुलाई - 15 जुलाई 2019
ये फेस्टिवल तिब्बती महीने के चंद्र कैलेंडर के दसवें दिन हर साल मनाया जाता है। हर साल तारीखें इस कैलेंडर के हिसाब से बदलती रहती हैं।
2. हरियाली तीज, किन्नौर
हरियाली तीज, हरियाली और उपज की खुशी का त्योहार है। इस त्योहार में सावन के महीने और बारिश के आने के संकेत को खुशी-खुशी मनाते हैं। इसे शिमला के ऊपरी पहाड़ियों किन्नौर में डखराम और लाहौल घाटी में जुब्बल और शेगत्सम के नाम से भी जाना जाता है। इस फेस्टिवल के दौरान महिलाएँ चमकीले रंग के पारंपरिक वस्त्र और सोने के आभूषण पहनती हैं साथ ही अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाती हैं।
हरियाली तीज त्योहार से पहले, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा छोटे बर्तन में एक साथ पाँच से सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं और उन्हें घर के देवता के बगल में रखा जाता है। किसान इस दिन बैलों से खेत नहीं जोतते हैं। किन्नौर जिले के स्थानीय लोग सुंदर दुर्लभ फूलों की माला पहनते हैं, नृत्य करते है और गाते-बजाते हैं।
कहाँ: मॉनसून के महीनों में हरियाली तीज के कई मेले आयोजित किए जाते हैं जैसे कि नाग नागपी, शिब्बन दा थान और पिरोन-विरोंका थान। आमतौर पर ये छोटे मेले शनिवार को आयोजित किए जाते हैं और यहाँ के स्थानीय नायकों सुकरात और बिनाची के बलिदानों को याद करते हैं।
कबः शनिवार, 3 अगस्त 2019
3. लदरचा फेस्टिवल, स्पिति
काज़ा का लदरचा फेस्टिवल स्पिति, लद्दाख और किन्नौर क्षेत्र के लोग अपनी संस्कृति के साथ बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। मूल रूप से ये फेस्टिवल भारत और तिब्बत के बीच के व्यापारिक संबंध को मजबूत करने के लिए आयोजित किया जाता है। ये मेला कई क्षेत्रीय व्यापारियों, स्थानीय लोगों और दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करता है।
शुरूआत में इस मेले में तीनों जिलों के व्यापारी यहाँ अपना स्टॉल लगाते थे। आभूषण, बर्तन, कपड़े, धातु, प्लास्टिक के सामान, सूखे मेवे, अनाज और पशुधन सहित याक और शुद्ध रक्त के घोड़ों का व्यापार करते थे। अब, कोई भी चाम और बुकान नृत्य, विशेष बौद्ध उपदेश, तीरंदाजी प्रतियोगिता और तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट, भूटान, लद्दाख, सिक्किम, किन्नौर, और नेपाल के कलाकार प्रदर्शन कर सकते हैं। यहाँ आने वाले आगंतुकों के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए सामुदायिक भोजन आयोजित किया जाता है।
कबः 15 अगस्त - 20 अगस्त 2019
कहाँ: स्पिति घाटी में काजा
4. फुलपति और दसैन फेस्टिवल, दार्जिलिंग
फुलपति एक नेपाली फेस्टिवल है जो दुर्गा पूजा के समय मनाया जाता है लगभग दस दिन तक बिल्कुल दशहरे की तरह। इस फेस्टिवल में दार्जिलिंग के लोग घूमर मठ से लेकर मुख्य शहर तक तरह-तरह के डांस करते हैं और एक बड़े जुलूस में भाग लेते हैं। ये सब प्रकृति की पूजा के लिए किया जाता है।
दसैन एक फेस्टिवल है जो सिक्किम के नेपाली हिंदू द्वारा मनाया जाता है। ये फेस्टिवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसमें दिखाया जाता है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर का कैसे हराया था? एक पखवाड़े तक चलने वाले इस फेस्टिवल को फुलपति, महाअष्टमी, कालरात्रि, नवमी और विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है जो रावण पर भगवान राम की जीत का प्रतीक है।
कहाँ: दार्जिलिंग घूम मठ और सिक्किम
कबः दशहरा के आसपास, 8 अक्टूबर 2019
5. फुलिच फेस्टिवल, किन्नौर
सात दिवसीय त्योहार, फुलिच का अर्थ है ‘फूलों का त्योहार’। ये फेस्टिवल किन्नौर घाटी में फूलों के खिलने से जुड़ा हुआ है। पहले दिन, गाँव वाले एक जुलूस में लादरा के फूलों को इकट्ठा करने के लिए जाते हैं, ढोल और बिगुल बजाते हैं। सभी स्थानीय निवासी नाचते-गाते हैं और 18वीं रात को देवदार के पेड़ों के नीचे करिश्माई संगीत गाकर इस त्योहार को मनाते हैं।
इस फेस्टिवल में सभी लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और रिश्तेदार उनके लिए चावल, शराब और भोजन बनाते हैं, जिसे बाद में गरीबों में बाँट दिया जाता है। उसके बाद वे धंगसपा परिवार के घर जाते हैं और परिवार के सदस्यों को माला पहनाकर उनका सम्मान करते हैं।
कबः ‘भाद्रपद’ के हिंदू महीने के 16वें दिन की शुरुआत फुलिच त्योहार से होती है। जो पिछले साल 30 अक्टूबर को था।
कहांः कल्पा, किन्नौर, और सांगला।
6. आइस स्केटिंग कार्निवल, शिमला
ये आइस स्केटिंग फेस्टिवल शिमला के प्राकृतिक ओपन आइस स्केटिंग रिंग में आयोजित किया जाता है। ये आइस स्केटिंग फेस्टिवल एशिया का सबसे बड़ा आइस स्केटिंग फेस्टिवल है जो पीर पंजार, धौलाधार, शिवालिक और हिमालय की पहाड़ियों के पास ही आयोजित किया जाता है। शिमला जाने वाले पर्यटकों के लिए यहाँ शीतलता तो मिलेगी ही और ठंडे मौसम में अपने आपको पाकर बहुत खुश होंगे। आइस स्केटिंग कार्निवल को पिछले 60 सालों से स्केटिंग क्लब ऑफ शिमला सफलतापूर्वक संचालित कर रहा है।
आइस स्केटिंग, स्कीइंग, फिगर स्केटिंग, चेन टैग्स, स्पीड हॉकी और आइस हॉकी फेस्टिवल के दौरान आयोजित किए जाने वाले कुछ खेल हैं। फैंसी ड्रेस और डांस प्रतियोगिताओं जैसी अन्य सांस्कृतिक और मनोरंजक गतिविधियाँ भी हैं। सभी खेल और प्रतियोगिताएँ बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। ये सब होना किसी ओलंपिक से कम नहीं है।
कहाँ: शिमला, हिमाचल प्रदेश।
कबः 1 दिसंबर 2019 - 28 फरवरी 2020
फेस्टिवल की अवधिः 3 महीने।
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