वैसे तो घुमक्कड़ों और प्रकृति प्रेमियों के लिए हिमाचल प्रदेश का चप्पा-चप्पा पसंदीदा ठिकाना है। कुछ लोग शिमला जैसे शहरों की गलियों में चलना पसंद करते हैं, कुछ लोग आसमानों को छूना चाहते हैं और कुछ तो पहाड़ों को चढ़ते-चढ़ते थककर चूर होना चाहते हैं। इन सबमें चंबा की बात ही अलग है, यहाँ हरी-भरी पहाड़ियों पर दूर तक सुकून का एहसास मिलेगा। उस पर यहाँ का मौसम भी दिल चुराने वाला है। यह बात यहाँ आने के बाद तुरंत समझ आ जाती है। कहा जाता है कि चंबा शहर का नाम वहाँ की राजकुमारी चंपावती के नाम पर पड़ा।
कहा जाता है कि राजकुमारी चंपावती हर दिन शिक्षा के लिए एक साधु के पास जाती थी। इससे राजा को शक हो गया और वो एक दिन राजकुमारी के पीछे-पीछे आश्रम पहुँच गया। वहाँ उसे कोई नहीं मिला लेकिन उसे शक करने की सज़ा मिली और उससे उसकी बेटी छीन ली गई। आसमान में आकाशवाणी हुई कि प्रायश्चित करने के लिए राजा को यहाँ मंदिर बनवाना होगा। राजा ने चौगान मैदान के पास एक सुंदर मंदिर बनवाया। इस चंपावती मंदिर को लोग चमेसनी देवी के नाम से पुकारते हैं। चंपावती मंदिर में शक्ति की देवी, महिषासुरमर्दिनी की सुंदर प्रतिमा है। इस घटना के बाद राजा साहिल वर्मा ने नगर का नामकरण राजकुमारी चंपावती के नाम पर चंपा कर दिया। बाद में इस जगह को चंबा कहा जाने लगा। आइए चलते हैं इसी खूबसूरत चंबा के सफर पर।
चंपावती मंदिर के सामने एक विशाल मैदान है, जिसे चौगान कहते हैं। एक तरह से चौगान चंबा शहर का दिल है। किसी समय चौगान का यह मैदान बहुत बड़ा था लेकिन बाद में इसे पांच हिस्सों में बाँट दिया गया। मुख्य मैदान के अलावा अब यहाँ चार छोटे-छोटे मैदान हैं। चौगान मैदान में ही हर साल जुलाई में चंबा का मशहूर पिंजर मेला लगता है।
चंबा के आसपास कुल 75 प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में प्रमुख लक्ष्मीनारायण मंदिर, हरिराय मंदिर, चामुंडा मंदिर हैं। लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह चंबा शहर का सबसे विशाल मंदिर समूह है। मंदिर मुख्य बाजार में अखंड चांदी पैलेस के बगल में स्थित है। मंदिर के परिसर में श्रीलक्ष्मी दामोदर मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, श्री लक्ष्मीनाथ मंदिर, श्री दुर्गा मंदिर, गौरी शंकर महादेव मंदिर, श्री चंद्रगुप्त महादेव मंदिर और राधा कृष्ण मंदिर स्थित हैं।
अतीत की झलकियाँ
किसी भी शहर के इतिहास को जानने के लिए यहाँ के म्यूज़ियम को ज़रूर देखना चाहिए। बेशक चंबा का भूरी सिंह म्यूज़ियम छोटा है, पर इसका प्रबंधन बेजोड़ है। इस म्यूज़ियम के प्रथम तल पर मिनिएचर पेंटिंग की सुंदर गैलरी है। इसमें गुलेर शैली की बनी पेंटिंग लगाई गई हैं। यहाँ चंबा शहर की पुरानी ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं। यहाँ कांगड़ा के राजा संसार चंद कटोच और चंबा के राजा राज सिंह के बीच हुई संधि का तांबे से बना संधि पत्र भी देखा जा सकता है।
भूरी सिंह म्यूजियम के अलावा यहाँ एक छोटा-सा म्यूजियम लक्ष्मीनारायण मंदिर के परिसर में भी है। इसे स्थानीय लोग ट्रस्ट बनाकर संचालित कर रहे हैं। चंबा भारत में कोलकाता के बाद बिजली से जगमगाने वाला दूसरा शहर था। यह संभव हुआ चंबा के राजा भूरी सिंह के प्रयास से। भूरी सिंह म्यूजियम की स्थापना 14 सितंबर 1908 को राजा भूरी सिंह ने करवाई थी। उन्होंने अपने राजकीय संग्रह से कई ऐतहासिक महत्व की सामग्रियाँ संग्रहालय को दान में दे दीं।
एन्ट्री फीसः ₹20, बच्चों के लिए ₹10
कालाटाॅप वन्य अभ्यारण्य
प्राचीन ऐतहासिक शहर चंबा में प्रकृति के साथ बहुत वक्त बिताया जा सकता है। यहाँ पास में कालाटाॅप वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी है। डलहौजी और खजियार के रास्ते में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है ये वन्यजीव अभ्यारण्य। इसके चारों तरफ पहाड़, शांत और वातावरण है। हरियाली के बीच स्थित कालाटाॅप सेंचुरी बेहद खूबसूरत है और 30.9 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैला है। ये कुछ इस तरह से बना हुआ है कि आप ट्रेकिंग करते-करते इसे पूरा घूम सकते हैं। यहाँ आप स्वदेशी पक्षियों की प्रजातियों जैसे तीतर, यूरेशियन और ग्रे-हेडेड कैनरी को देख सकते हैं। चलते-चलते जब थक जाओ तो पास में बह रही रावी नदी के ठंडे पानी में पैर डालते ही सारी थकान छूमंतर हो जाती है। इस सेंक्चुरी के चारों तरफ बर्फ से ढंके पहाड़ हैं, रात को कालाटाॅप के जंगल में रात बिताना बेहतरीन अनुभव है।
टाइमिंगः सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक
एंट्री फीसः ₹250
झीलों का समूह
चंबा के सफर में आपको बहुत सारी झीलें मिलेंगी, जहाँ बैठकर आप अपने सफर को खूबसूरत बना सकते हैं। इन खूबसूरत झीलों में से एक है, खज्जियार झील। हरी घास के बुग्याल, दूर तक फैले पहाड़ और सफेद धुंध के बीच ये झील। झील के किनारे बैठना उस खूबसूरती को महसूस करना है, जो इसके चारों तरफ फैली हुई है। इसके अलावा चंबा में खूबसूरत चमेरा लेक और मणिमहेश लेक है। मणिमहेश झील से कैलाश की खूबसूरत चोटी दिखाई देती है। ऐसा लगता है प्रकृति ने खुद को झीलों के आसपास संजोया है।
चंबा में क्या खरीदें?
चंबा अपने शाॅल, रूमाल और जूतियों के लिए जाना जाता है। चंबा का रूमाल वास्तव में कोई जेब में रखने वाला रूमाल नहीं होता। एक तरह से यह शानदार कढ़ाई की हुई वाॅल पेंटिंग होती है। इसे तैयार करने में 10 दिन से दो महीने तक भी लग सकते हैं। सैकड़ों साल से चंबा में रूमाल बुनने का काम इन क्षेत्रों में चला आ रहा है। इन रूमालों पर कृष्ण की पूरी रासलीला का अंकन देखा जा सकता है। कई रूमालों में विवाह संबंधी जैसे चित्र की टांके जाते हैं। ये खास रूमाल यहाँ आने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते ही हैं। 1965 में पहली बार चंबा रूमाल बनाने वाली कलाकार माहेश्वरी देवी का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।
हिमाचल में कुल्लू का शाॅल तो फेमस है ही, पर चंबा के शाॅल भी कुल्लू के शाॅल की तरह की सुंदर होते हैं। चंबा शहर में घूमते हुए आप चंबा की बनी हुई खूबसूरत जूतियाँ खरीद सकते हैं। ये जूतियाँ महिलाओं के लिए खास तौर पर बनाई जाती हैं। चंबा शहर के मुख्य बाजार में दुकानों में खरीदारी करते समय थोड़ा बहुत मोल-भाव किया जा सकता है।
चंबा से सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट पठानकोट है, जो चंबा से 120 कि.मी. दूर है। वहाँ से आप बस या टैक्सी से चंबा पहुँच सकते हैं। पठानकोट रेलवे स्टेशन पहुँचकर भी वहाँ से आगे की यात्रा बस और कैब से कर सकते हैं। इस चंबा में अध्यात्म भी है और प्रकृति की सुंदरता भी, जहाँ आकर लगता है कि यहीं रम जायें, ऐसी जगहों पर बार-बार आने का मन करता है।
आप हिमाचल में बहुत कुछ देख चुके हो और अब तक चंबा नहीं गए हो तो प्रकृति के इस अचंभे से अब तक आप दूर हैं।
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