आम लोगों के लिए ग्वालियर एक शहर से ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन घुमक्कड़ों के लिए यहां बहुत कुछ है। घुमक्कड़ों की नजर से देखें तो ये शहर एक शानदार, बेमिसाल जगह है जो आपको इतिहास (History) के कई दौर की सैर कराता है। ग्वालियर किले के अलावा इस शहर को अनुभव करने के लिए बहुत सारी जगह हैं। इस शहर को तानसेन जैसे महान संगीतकार ने जीवित किया है तो वहीं सिंधिया ने इस शहर को संवारा है तो वहीं रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बलिदान से इस धरती को सींचा है।
संगीत की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि ग्वालियर की क्या जगह है? भारत के प्रसिद्ध संगीत घरानों में से एक ग्वालियर घराना है। ग्वालियर घराना इसे विरासत में मिला एक खजाना है। संगीत सम्राट तानसेन ने इस शहर को संगीत से सींचा है जिसकी महक मुगलकाल की इमारतों से भी परे थी। अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन आज ग्वालियर के मकबरे में आराम फरमा रहे हैं। ग्वालियर के तानसेन नगर में स्थित तानसेन का मकबरा है।
मोहम्मद गौस, जिन्हें तानसेन का गुरु कहा जाता है। जब आप मकबरे में पहुंचते हैं तो सबसे पहले आपको एक बड़ा सा मकबरा दिखाई देता है। यह मकबरा मोहम्मद गौस का है। इस मकबरे की विशालता और बारीक कारीगरी दोनों बेमिसाल है। इंडो-इस्लामिक शैली में बना ये मकबरा मेहराब, छतरियां और जाली के लिए प्रसिद्ध है। बलुआ पत्थर से बने मोहम्मद गौस का मकबरे का निर्माण मुगल शासक अकबर ने 1606 में करवाया था।
मकबरे की बनावट की बात करें तो सबसे पहले बात सामने आती हैं इसकी जाली की। इस मकबरे में लगभग 50 जालियां हैं जो मकबरे की बाहरी दीवारी को सुंदर बनाती हैं। इन जालियों पर जो काम किया गया है वो तो बेमिसाल है। जालियों में विभिन्न आकार की आकृतियाँ बनाई गईं हैं जिनमें गोलाकार (Round Shape), त्रिभुज (Triangle), चौकोर, षडकोण (Hexagonal) हैं। इन जालियों से आती हुई रोशनी संरचना को और ज्यादा कलात्मक कर देती है।
मकबरे की छत पर चार कोनों पर बनीं छतरियां मकबरे को चार चांद लगाती हैं। इन चारों छतरी के बीचोंबीच बना बड़ा सा गुंबद मानो इस तरह लगता है जैसे किसी ने मुकुट पहना दिया हो। मकबरे के अंदर की बात करें तो मोहम्मद गौस की आराम फरमाते कब्र है जहां लोभान की भीनीं-भीनीं सुगंध आपको शांत और संयमित कर देती है। इसी मकबरे के बगल में एक छोटा सा मकबरा है जो तानसेन का मकबरा है।
चबूतरे पर बना चपटी छत वाला ये मकबरा संगीत सम्राट तानसेन को समर्पित है। मकबरे में कोई नक्काशी नहीं, कोई दीवार नहीं केवल खंभों पर टिका ये मकबरा लाखों संगीत प्रेमियों का तीर्थ है। मकबरे के चबूतरे पर लगा इमली का पेड़ किसी अमृत (Elixir) के समान है। ऐसी मान्यता है कि इसी इमली के पेड़ के पत्ते खाकर संगीतकार संगीत की साधना करते हैं। कहा जाता है कि मशहूर सितार वादक अमजद अली खान भी इसी इमली के पत्ते खाकर रियाज किया करते थे। तानसेन को याद करते हुए हर साल इसी जगह तानसेन समारोह का आयोजन किया जाता है।
ग्वालियर को शौर्य की धरती भी कहा जाता है। इसी शहर में रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं। साल 1857 में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए देश पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। ग्वालियर रेलवे स्टेशन से एक किमी दूर स्थिति रानी लक्ष्मीबाई की समाधि हमें वीरता और साहस की कहानी बयां करती है। इसी समाधि के पास स्वर्णरेखा नदी बहती है। इसी नदी में रानी लक्ष्मीबाई का घोड़ा गिर गया था। यहां लगी लक्ष्मीबाई का मूर्ति जो घोड़े पर सवार हैं। घोड़े के दो पैर हवा हैं और रानी के बायें हाथ में चाबुक और दायें हाथ में तलवार है। इस मूर्ति को देखकर लगता है मानो साक्षात लक्ष्मीबाई अवतरित हो गई हों। यहां जलती ज्योति हमें लक्ष्मीबाई के अमरत्व का ध्यान करवाती है।
इस शहर को कई लोगों ने मिलकर बनाया है। इनमें राजा, महाराजा से लेकर आम जनता भी शामिल है। इस शहर से जुड़े लोगों की एक लंबी सूची है। आज के ग्वालियर शहर को बसाने का श्रेय (Credit) सिंधिया को जाता है। शहर में ढेर सारी इमारतें देखने को मिल जाएंगी जिन्हें सिंधिया ने बनवाया है। ऐसी ही एक इमारत है "जय विलास पैसेस"।
जय विलास पैलेस का निर्माण 1874 में महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने करवाया था। इस पैलेस के निर्माण में लगभग एक करोड़ रुपए लगे थे जो आज के 100 बिलियन रुपए के बराबर है। इस पैलेस की वास्तुकला का निर्माण सर माइकल फिलोस ने किया था। यह पैलेस ग्वालियर के लश्कर में लगभग 13 लाख वर्ग फुट भूमि पर बना है। यह पैलेस यूरोपियन वास्तुकला का नायाब उदाहरण है। इसमें इटेलियन, डोरिक, कोर्नेथियन आर्ट का उपयोग किया गया है।
इस पैलेस की सबसे खास बात है इसका दरबार हॉल और शानदार झूमर। दरबार हॉल में दो झूमर का जोड़ा है जो दुनिया का सबसे लंबा झूमर है। इन झूमरों का वजन लगभग 3.5 टन है। पहले जय विलास पैलेस सिंधिया राजघराने का निवास था लेकिन बाद में इसे म्यूजियम में बदल दिया गया। इस पैलेस के नजदीक जीजा आशीष पैलेस में आज सिंधिया राजपरिवार रहता है।
जय विलास पैलेस एमपी का ही नहीं बल्कि भारत में एक अहम स्थान रखता है। इसे 1964 को म्यूजियम में तब्दील किया गया था। ये म्यूजियम अपने आप में अनोखा है। दरबार हॉल के अलावा यहां और कई चीजें हैं जो इसे शानदार बनाती हैं। डाइनिंग हॉल जहां एक साथ सौ ज्यादा लोग बैठकर खाना खा सकते थे। इससे भी बड़ी खासियत खाने की मेज पर चांदी की ट्रेन का होना है। इस ट्रेन से मेहमानों को खाना परोसा जाता था। इसके अलावा यहां एशिया का सबसे लंबा कालीन भी मौजूद है। ये कालीन हस्तकला(Handloom) का शानदार नमूना है।
जय विलास पैलेस में स्वीमिंग पूल भी है और बार भी विलासता का पूरा इंतजाम। यहां रखीं बग्घियां, पालकी और विटेंज कार आपको शाही परिवार का एक उदाहरण दिखाता है।
ग्वालियर में स्थित सरोद घर एक म्यूजियम है। ऐसा म्यूजियम जो विरासत है संगीत की। ये महान सरोद वादक अमजद अली खान का घर था। जिसे बाद में अमजद अली खान ने इसे वाद्ययंत्रों का म्यूजियम बना दिया गया। संगीत के क्षेत्र में ग्वालियर को ग्वालियर घराने के नाम से जाना जाता है। आज भी बड़े-बड़े संगीतज्ञ सरोद घर में बैठकें करते हैं। सरोद घर में पुराने वाद्ययंत्रों से लेकर नए वाद्ययंत्रों का कलेक्शन है। अमजद अली खान को संगीत में योगदान के लिए पद्मविभूषण से नवाजा गया।
राजा-महाराजाओं और विलासता का गहरा नाता रहा है। महल के अलावा भी और कई सारी सुविधाएं हैं जो राजपरिवार को लक्जरी देती थीं। इनमें से एक है गार्डन। ग्वालियर का इटैलियन गार्डन (Italian Garden) इसका उदाहरण है। आज से 175 साल पहले बना ये गार्डन सिंधिया परिवार की महिलाओं की सैर के लिए बनाया गया था। इस गार्डन में बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित (Entry Ban) था। इस गार्डन का निर्माण इटैलियन स्टाइल में किया गया था इसलिए इसे इटैलियन गार्डन कहा जाता है।
इस गार्डन के नजदीक से स्वर्णरेखा नदी बहती है। उस समय इसी नदी के पानी से गार्डन में लगे फव्वारों को पानी मिला करता था। शाम के समय इस गार्डन में घूमने का अपना ही मजा है। लाइटिंग और फव्वारों दोनों का मिलन आनंद को बढ़ा देता है। इसी गार्डन में बरादरी (Pavilion) का निर्माण किया गया है जो नदी के दोनों ओर है। यहां एक संरचना का निर्माण किया गया है जिससे पानी यहां नदी से आता था और राजपरिवार के लोग नौका विहार करते थे।
इस गार्डन के एक तरफ चिड़ियाघर (Zoo) है। दूसरी तरफ बैजा ताल और मोती महल है। बैजा ताल का निर्माण 1850 में जयाजीराव सिंधिया ने महारानी बैजा बाई के नाम पर करवाया था। बैजा बाई दौलत राव सिंधिया की तीसरी पत्नी थीं। इस ताल में एक तैरता मंच है जहां कई संगीत सभा हुईं। यह सिंधिया परिवार की पंसदीदा जगहों में से एक थी। इसी ताल के बिल्कुल पास में स्थित है मोती महल। इस महल का निर्माण भी जयाजीराव सिंधिया ने करवाया था। यह महल बाद में मध्य भारत का हेडक्वार्टर बना जिसे प्रशासनिक कामकाज (Administration Work) के लिए उपयोग किया जाता है।
ग्वालियर के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है अचलेश्वर महादेव मंदिर। भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर ग्वालियर ही नहीं पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। अचलेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि ग्वालियर में सिंधिया परिवार का राज था। एक बार सड़क के निर्माण का काम चल रहा था। एक पत्थर सड़क के बीच में था जिसे हटाने का भरसक प्रयास किया गया। हाथियों से उस पत्थर को हटाने का प्रयास किया लेकिन वो पत्थर वहां से हटा नहीं। इसी जगह को आज अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां स्थित शिवलिंग को लोग अचलेश्वर महादेव या अचलनाथ के नाम से जानते हैं।
भारत के हर शहर की एक विशेषता होती है जो उसे अनोखा बनाती है। ग्वालियर के ह्रदय में स्थित महाराज बाड़ा देश में अलग पहचान रखता है। महाराज बाड़ा में अलग-अलग स्थापत्यकला (Architecture) की इमारतें देखने को मिलती हैं। इसे जयाजी चौक के नाम से भी जाना जाता है। जयाजी राव सिंधिया ने ग्वालियर में लोगों को विदेशी स्थापत्यकला से परिचय (Introduction) कराने के लिए ये इमारतें बनवाई।
महाराज बाड़ा के बिल्कुल बीचोंबीच स्थित है महाराज जयाजी राव सिंधिया की मूर्ति। इस मूर्ति को आज से 104 साल पहले उस समय ग्वालियर स्टेट के राजा माधौ राव सिंधिया ने स्थापित करवाई थी। इस मूर्ति को लंदन से लाकर यहां स्थापित करवाया गया था। इस कारण इसे जयाजी चौक के नाम से भी जाना जाता है। इस मूर्ति के चारों ओर हैं खूबसूरत इमारतें हैं। ये इमारतें अलग-अलग स्थापत्यकला को इंगित करती हैं।
गोरखी प्रवेश द्वार, इसे राजपूत और मराठी शैली के मिले जुले रूप में बनाया गया है। इस प्रवेश द्वार के पास ही स्थित है गोरखी पैलेस। जब सिंधिया उज्जैन से ग्वालियर आए थे तो इसी जगह रहते थे। इस जगह एक मंदिर है जो देवी गोराक्षी को समर्पित है। इसका नाम आज गोरखी हो गया है। आज भी इसी जगह सिंधिया परिवार के वंशज दशहरे का कार्यक्रम मनाते हैं।
महाराजबाड़ा स्थित डाकघर ग्रीक शैली में बना हुआ है। ऊंचे-ऊंचे खंभों पर खड़ी ये सफेद जगमग इमारत हमें ग्रीक या यूनानी सभ्यता की याद दिलाती है। डाकघर से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है एसबीआई बैंक की इमारत। इस इमारत का निर्माण ब्रिटिश शैली में किया गया है। ऊंचे-ऊंचे खंभों के बिल्कुल बीचोंबीच बना बड़ा सा प्रवेश द्वार। साधारण लेकिन पत्थरों से बनी ये इमारत बेहद शानदार और भव्य नजर आती है।
एसबीआई बैंक की इमारत के बिल्कुल सामने वाली इमारत जिसे लोग एसबीआई एटीएम की इमारत के नाम से जानते हैं। ये इमारत देखने में बेहद साधारण है जो रोमन क्लासिकल शैली को प्रिटेंज करती है। रेलिंग और खंभों से सजी ये इमारत अपने आप में बेमिसाल है। इस इमारत से कुछ ही दूरी पर स्थित है टाउन हॉल। बलुआ पत्थर से बनी ये इमारत देखने में बेहद कलात्मक है। इस इमारत का निर्माण फ्रेंच शैली में किया गया है। मेहराब, दरवाजे, गुंबद, खिड़कियों में कारीगरी की गई है। इस इमारत की छत पर सजा मुकुट की तरह दिखने वाला दूर से इसकी भव्यता का परिचय देता है।
टाउन हाल से कुछ ही दूरी पर स्थित है सरकारी प्रेस। इस इमारत में इस्लामिक, इंडियन और पर्शियन शैली दिखाई देती है। यदि हम कहें तो मुगल आर्ट। मेहराब, गुंबद, मीनार इस इमारत की शोभा हैं। बलुआ पत्थर से बनी ये इमारत कलात्मकता के मामले अद्वितीय है।
महाराजबाड़ा की आखिरी इमारत है विक्टोरिया मार्केट है। विक्टोरिया मार्केट का निर्माण इंडो-सेरेनिक (Indo-Saracenic) शैली में किया गया है। इस शैली को इंडो-गोथिक (Indo-Gothic) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मुगल, राजपूत, मराठा और ब्रिटिश, सेरेनिक आर्ट शामिल है। इस इमारत का आकर्षण (Attraction) इमारत की छत पर बना गुंबद या छतरी होती है जिस पर बेमिसाल कारीगरी की जाती है।
ग्वालियर का विवस्वान मंदिर आपको ओडिशा के कोणार्क के सूर्य मंदिर की याद दिलाएगा। लाल पत्थर से बना ये मंदिर हूबहू कोणार्क के सूर्य मंदिर की नकल है। साल 1988 में बना ये मंदिर देखने बेहद ही भव्य और शानदार है। एक-एक बारिकियों का ध्यान में रखा गया है। जगमोहन से लेकर देउल तक। पूर्व की ओर मुख वाले ये मंदिर सात घोड़ों पर सवार रथ को दिखाता है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की प्रतिमा स्वरूप की पूजा की जाती है।
ग्वालियर के आकर्षण
(Other Tourist Attraction)
ग्वालियर की चमक में सात रंग हैं। जैसे सफेद रंग को जब प्रिज्म में से गुजारा जाता है तो सात रंग में बंट जाता है वैसे ही ग्वालियर बस इतना ही नहीं है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर - ग्वालियर किले से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है कोटेश्वर महादेव मंदिर। महादजी सिंधिया ने इस शिवलिंग की स्थापना करवाई थी। जयाजीराव सिंधिया ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि कोटेश्वर महादेव तोमर वंश के आराध्य देव थे। औरंगजेब ने किले पर कब्जा करने के बाद शिवलिंग को घाटी में फिंकवा दिया था।
तिघरा डैम - ग्वालियर से लगभग 23 किमी दूर स्थित तिघरा डैम बेहद शानदार जगह है। तिघरा डैम सांक नदी पर बना हुआ है। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे डैम पर परेक्ट सनसेट (Perfect Sunset) शानदार दिखाई देता है। बोटिंग के साथ-साथ मगर कुंड पर मगरमच्छ (Crocodile) को निहारना मजे को दोगुना कर देता है।
नजदीकी टूरिस्ट प्लेस
(Nearest Tourist Attraction)
ग्वालियर से नजदीकी कई सारे टूरिस्ट प्लेस हैं। इन जगहों में बटेश्वर के मंदिर, पढ़ावली, मिटावली, शनैश्चरा, दतिया।
क्या खाएं
(What to Eat)
ग्वालियर फूड लवर्स के लिए कूल डेस्टिनेशन है। यहां नाश्ते से लेकर खाने तक सबकुछ जायकेदार और मजेदार है। पोहा जो एमपी के नाश्ते की आन बान और शान है वो यहां आसानी से मिल जाएगा। कचौड़ी के बिना इस बुंदेली धरती का नाश्ता पूरा कहां होता है। दाल की कचौरी, प्याज की कचौड़ी, मसाले की कचौड़ी और आलू की कचौड़ी। कचौड़ी ही कचौड़ी। खट्टी-मिठी चटनी में डूबी कचौड़ी। आलू की सब्जी में तैरती कचौड़ी। कचौड़ी यहां के नाश्ते का अहम हिस्सा है।
कचौड़ी के अलावा जो यहां सबसे फेमस है वो बेड़ई है। बेड़ई दाल और आटे से बनी पुड़ी होती है। ग्वालियर में बेड़ई, आलू की सब्जी में इमली की मीठी और आम की खट्टी चटनी के साथ परोसी जाती है। बेहद लजीज बेड़ई। क्या आपने कभी करेला चाट खाई है। ग्वालियर की एक और पेशकश करेला चाट। ये चाट कोई करेले की सब्जी से नहीं बनती है। यही तो ट्विस्ट है। मैदे की छोटी-छोटी लोई को कुछ इस तरह बनाया जाता है कि वो करेले की तरह लगता है। इसे खट्टी-मीठी चटनी में मटर की सब्जी के साथ खाया जाता है।
पानी बताशे नहीं ग्वालियर के पानी बताशे। पानी बताशे मतलब अजी पानी पुरी, फुल्की, फुचका ये सब एक हैं। ग्वालियर आएं और पानीपुरी ना खाएं ऐसा कैसे हो सकता है? ग्वालियर की चटपटी अमचुर और पुदीना वाले पानी के पानी बताशे। चटपटा खाने के बाद मीठा खाना तो बनता है। मुरैना की शानदार गजक। ग्वालियर आकर गजक न खाएं तो आना बेमायने है। तिल के साथ बनने वाली ये गजक जुबां से लेकर कल्ब़ तक तृप्त कर देती है।
कैसे पहुंचे (How To Reach)
🛫 एयरपोर्ट (Airport) - ग्वालियर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया डोमेस्टिक एयरपोर्ट है। इस एयरपोर्ट से दिल्ली, इंदौर, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता के लिए सीधी फ्लाइट उपलब्ध हैं।
🚈 रेलवे स्टेशन (Railway Station) - ग्वालियर रेलवे स्टेशन दिल्ली-मुंबई रेलवे मार्ग पर स्थित है। ग्वालियर जंक्शन होने के कारण देश के छोटे-बड़े शहर से जुड़ा हुआ है।
🚌 बस स्टैंड (Bus Stand) - ग्वालियर में अंतरराज्यीय बस अड्डा (Interstate Bus Stand) है। यहां से एमपी के शहरों के अलावा दिल्ली, आगरा, मथुरा, धौलपुर आदि के लिए बस उपलब्ध है।
⛅ कब जाएं (Best Time To Visit) - ग्वालियर घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम ठंड है। यहां आप अक्टूबर से लेकर फरवरी तक घूम सकते हैं। ग्वालियर में गर्मी का मौसम बहुत गर्म होता है। गर्मियों में यहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच जाता है।
📃BY_vinaykushwaha
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