"अंग्रेजा बनारस से चली गई"

Tripoto
15th Mar 2022
Photo of "अंग्रेजा बनारस से चली गई" by Free Voice Rahul
Day 1

हरिश्चंद्र पर जलती चिता में शरीर सी हो तुम, जिसके बिना इन तपती लकड़ियों का कोई मोल नहीं। रोज़ अस्सी से राजघाट तक तुम्हें देखने के लिए बौराते मेरे कदम रुक गए हैं। अब जब तुम बनारस से चली गई हो, तो गाय घाट का सुकून बेचैन करता है। अब बिना बात पंच गंगा की सीढ़ियां चढ़ने उतरने का क्या मतलब। सिंधिया पर cigerate की दुकान बहुत ऊपर लगने लगी है, मणिकर्णिका पर पी लूंगा। मगर भस्म होती ज़िन्दगियों का धुंआ पहले से ही इतना है कि यहां अब क्या cigerate पी जाए। गंगा जी से दिखता विश्वनाथ मंदिर का वो भव्य द्वार जिसकी तारीफ कर कर के मैंने तुम्हें मोदी जी का fan बनाया, अब जब तुम बनारस से चली गई हो तो ये सब पैसों की बर्बादी लग रहा है।

क्या कहा। मीर घाट! हां, यहा कुछ देर बैठ सकता हूं। तुम्हारी french ज़ुबान से हिंदी का पहला शब्द ये ही तो सुना था 'मीर घाट'। यहां परसो पल्ले दिन ही ऊपर बनारसी बालकों के साथ पन्नी में पानी भर के नीचे जाते लोगों को होली का प्रसाद चस्पा कर रहा था। होली पर तुम होती, तो गंगा मैया के पानी को गुलाल से रंगा जाता लेकिन अब जब तुम बनारस से चली गई हो ये हुड़दंग मुझे कतई रास ना आएगा। दशाश्वमेध की गंगा आरती के बाद राजेन्द्र प्रसाद की सीढ़ियों पर बैठकर तुम अब lemon tea तो नहीं पी रही होगी तो मैं भी दूर तख्त पर बैठा तुम्हें देखने को बार बार अपनी गर्दन टेड़ी क्यों करू। राजा घाट पर मेरे hyderabad वाले दोस्तों के बीच 'बाबा जी गांजा पिला दो' वाली बात पर हस्ते हस्ते अब महादेव का आखिरी जय कारा भी मानो लग चुका। तुम्हारे बिना अब वहां कुछ नहीं। यूं तो वो खड़ाऊ वहीं रखी हैं आजतक लेकिन अब लगता है बाबा तुलसी ने ऐसा भी क्या कर दिया था जो इतनी दूर अब तुलसी घाट पर जाकर उनकी खड़ाऊ पर माथा टेका जाए। अब जो तुम बनारस से चली गई हो, मानस की चौपाई गाते ये BHU के लड़के धर बेसुरे सुनाई पड़ते हैं।
सुबह फिर अस्सी पर sunrise देखा तो लगा कि जैसे अस्सी की सुबह-ए-बनारस के अब कोई मायने ही नहीं। व्यर्थ ही उगता है ये सूरज व्यर्थ ही होती है सुबह। मुझे तो सांझ भी तुम ही दिख रहीं थी, भोर में भी बस तुम्हें ही पाया। अब जो तुम बनारस से चली गई हो ये सुबह हो, ना हो, क्या ही फर्क पड़ता है। गोदौलिया पर विराजमान नंदी भी उदास ही दिखा, अब गिरजाघर का मदहोश चौराहा एक caos से ज्यादा कुछ नहीं।
बीती शाम विश्वनाथ जी के दर्शन को गया था। हर बार मस्जिद की ओर अपने बाबा को निहारते उस नंदी के पास जा बैठता था। वहीं से आपसे बात चीत होती थी। लेकिन इस बार सायं आरती में घूंजते आपके डमरू की डम-डम भी मेरे भीतर के शोर को थाम ना सकी है। अध्यात्म की काशी पर raanjhana का कुंदन भारी पड़ गया। देवों का देव एक तरफ़, पार्वती का देव एक तरफ़। आपकी ये काशी एक तरफ़, मेरा बनारस एक तरफ़। आपके त्रिशूल पर टिकी ये पूरी धरा एक तरफ़, मेरे इश्क़ का आसमान एक तरफ़। Delhi, Gzb, Noida, Gurgaon! जितनी भी लड़कियों से मैं मिला वो सब की सब एक तरफ़, France से आई वो अकेली अंग्रेजा एक तरफ़। और सच कहूं बाबा, अपने carrier को दांव पे लगा पिछले 5 महीने से मैं जिस सफ़र को जी रहा हूं न, कभी कभी तो लगता है, 'मेरे गुज़ारे सारे दिन एक तरफ़, जिस रात वो साथ चली वो रात एक तरफ़'।
सब कुछ अलग अलग दिखाई पड़ता है बाबा। और ये सब आप ही का किया धरा है। मैं तो अच्छा खासा अपने youtube channel को बढ़ाने में लगा था, आप ही ने जबरदस्ती मुझे इस प्रेम जाल में पटक दिया। जॉन का शेर है 'जो ना आने वाला है ना उसका हमें इंतजार है, आने वालों का क्या आते है आते होंगे'। काशी में बीते दिनों मोदी आए, योगी आए मैं कहीं नहीं गया, unzippingUP करते करते unzipping France करने लगा।
20 दिन से कोई काम नहीं किया। लेकिन बाबा मोहब्बत में   कावरा बावरा हो जाने में मज़ा बहुत है, इतना कि इस बार सिर्फ दो ही बार आपके पास आया बाकी 18 दिन किसी और की पूजा की। हम हिंदुस्तानी लड़के अपने ही पिता से दिल की बात नहीं कह पाते, शिवरात्रि वाले दिन मैं भी आपसे कुछ कहने आया था, कह नहीं पाया:
"एक लड़की देखी, बहुत खूबसूरत
एकदम जैसे इंद्रधनुष
एक चमक और मैं अपना दिल दे बैठा
मुझे लगता हैं उस लड़की से मुझे प्यार हो गया है
उसके हाथों में एक रेखा मेरे नाम की भी खींच दो बाबा"

मुझे लगा था हर बार की तरह आप बिना कहे ये भी सुन लेंगे।अब याद आया college में english literature पढ़ते दिनों raanjhana देखी थी। सालों पहले तब आपसे कहा था कि थोड़े time के लिए एक बार मैं भी बनारस में कुंदन के किरदार को जीकर खून थूकना चाहता हूं। अरे मेरे भोले भंडारी तब की मांग अब पूरी की आपने।
क्या फिल्मी ज़िन्दगी दी है ना आपने मुझे। नौकरी छोड़ी, घर छोड़ा, दोस्त छोड़े, शहर छोड़ा और अब आपसे मांगा हुआ किरदार भी छूट रहा हैं। लेकिन मेरा ये किरदार मुक्ति पाने कबीर की तरह मगहर नहीं जाएगा, ये बनारस में जन्मा है और इन्हीं घाटों पर ज़िंदा रहेगा बिना किसी मोक्ष-मुक्ति की लालसा लिए। मेरे भाग्य में भटकना जो लिखा है आपने।
अब जब वो बनारस से चली गई है तो सब सुनलो, बस इतनी सी थी मेरी कहानी। एक मेरा बाबा! जो मोदी जी के बनवाए भव्य भवन की ऊंची दीवारों के बीच मौन बैठा हैं। दूसरी! बचपन से atlas में दिखते दूर अपने देश France की उड़ान भर चुकी है और तीसरा मैं! जो इस वक्त गंगा किनारे मणिकर्णिका पर जलते शवों की सुलगती आंच को अपने बदन पर लपेटे पड़ा हूं। तुम बोली थीं, पार्वती को मसान होली बहुत पसंद हैं Rahuuul, आज मसान होली है Angreja। 🇫🇷 🇮🇳

नमः पार्वती पतये
हर हर महादेव
'जय बाबा विश्वनाथ'🚩

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