इस बार साबरमती आश्रम अहमदाबाद जाने पर एक विशेष व्यक्तित्व श्री Nachiketa Desai जी से मुलाकात हुई। श्री नचिकेता देसाई जी सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व पत्रकार और संपादक है। देसाई जी महात्मा गाँधी के निजी सचिव एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री महादेव भाई देसाई के पोते और गाँधी कथाकार स्वतंत्रता सेनानी श्री नारायण भाई देसाई के पुत्र है। नचिकेता जी इंदौर में 1985 में दैनिक भास्कर के कार्यकारी संपादक रहे है। बाद में वेबदुनिया सहित कई मीडिया संस्थानों में भी रहे है। देसाई जी बहुभाषी पत्रकार है। कई भाषाओं अंग्रेजी, हिंदी, ओड़िया, अवधी, मलयालम आदि के जानकार है।
मैं उनसे पिछले 4-5 साल से फेसबुक पर जुड़ा हुआ हूँ। बहुत ही संकोच से मैंने देसाई जी को मैसेज किया कि मैं अहमदाबाद आया हूँ और आपसे मुलाकात का इच्छुक हूँ। तुरंत ही 5 मिनट में उनका मैसेज और फ़ोन नंबर मिला कि बात कर लो हम मुलाकात की जगह और समय तय कर लेंगे। 18 जनवरी सुबह 10 बजे साबरमती आश्रम में मिलना तय हुआ।
देसाई जी बहुत ही डाउन टू अर्थ व्यक्ति है। मेरे पहुँचने के 15 मिनट पहले ही साबरमती आश्रम पहुँच कर इंतजार करते मिले। उनके और भी कार्यक्रम थे। बहुत ही आत्मीयता से मिले और बिल्कुल भी ऐसा अहसास नहीं हुआ कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूँ। करीब 3 घंटे हम साथ रहे और ढेर सारी बातें हुईं जिसमें उनके दादाजी, पिताजी, नानाजी और नानी के अनुभव शेयर हुए। नारायण भाई देसाई जी के जाने के बाद गाँधी कथा बंद हो गई तो मैंने नचिकेता जी से निवेदन किया कि आप गाँधी कथा कीजिये। बहुत ही विनम्रता और साफगोई से नचिकेता जी ने कहा कि मैं गाँधीवादी नहीं हूँ और गाँधी कथा कहने की पात्रता नहीं रखता। उसके लिए इंसान को खुद उतना पवित्र होना चाहिए जितने बापू थे या उनके अनुयायी थे। बोले मैंने बहुत बाद में गाँधी जी को पढ़ना और जानना शुरू किया।
पिछले दिनों साबरमती आश्रम में देसाई जी नागरिकता कानून और सरकारी दमनकारी नीतियों के विरोध को लेकर एक सप्ताह तक लगातार 12 घंटे का उपवास भी रखा था। तबके अनुभव को बोले कि गाँधी को मैंने सिर्फ थ्योरी में पढ़ा था लेकिन जब उपवास किये तो मुझे बहुत ही आध्यात्मिक और सुखद अनुभव हुए। मैंने गाँधी के सिद्धांतों और प्रयोगों को खुद करके देखा तो पाया कि ये बहुत ही कारगर है। देसाई जी बोले मैं इस तरह एक्सीडेंटल एक्टिविस्ट बन गया।
देसाई जी के नाना श्री नबकृष्ण चौधरी ओडिसा के पूर्व मुख्यमंत्री थे। उनकी नानी भी स्वतंत्रता सेनानी रही है। ओडिसा में एक बार पुलिस और आदिवासियों के सशस्त्र संघर्ष को उनकी नानी ने बीच मे खड़े होकर रुकवाया था। देसाई जी ने अपने बहुत से पत्रकारीय अनुभव भी शेयर किए जिसमे ओडिसा के भक्तदास जी के विधायक रहते कालाहांडी में भुखमरी से हुई मौतें और विधानसभा में हुए हंगामे का किस्सा है। देसाई जी ही भक्तदास जी को अपनी टैक्सी में इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार के साथ लेकर कालाहांडी गए थे।
संयोग से उसी दिन पूर्व वित्त मंत्री, भारत सरकार श्री यशवंत सिन्हा जी भी अपनी गाँधी शांति यात्रा के लिए साबरमती आश्रम आने वाले थे। तो उनसे भी संक्षिप्त मुलाकात हो गई। हालांकि मैं किसी विचारधारा को नहीं मानता बल्कि अलग अलग समय में अलग अलग मुद्दों पर मेरे विचार होते है।
सिन्हा जी आश्रम गाँधी जी को नमन करके गुजरात विद्यापीठ विश्वविद्यालय जाने वाले थे। देसाई जी ने पूछा आप चलना चाहेंगे क्या तो मैं तैयार हो गया क्योंकि मैं भी गुजरात विद्यापीठ देखना चाहता था। यह विश्वविद्यालय महात्मा गाँधी ने 1920 में स्थापित किया था। इस वर्ष इसके 100 वर्ष पूर्ण हो रहे है।
देसाई जी मुझे अपने स्कूटर पर बैठाकर गुजरात विद्यापीठ ले गए। वहाँ उन्होंने विद्यापीठ घुमाया। उनके दादाजी श्री महादेव भाई देसाई के नाम पर पूरा हिंदी विभाग और एक संकुल समर्पित किया गया है। यहाँ के छात्र पूरी तरह गाँधी जी के आश्रम के नियमानुसार ही रहते और पढ़ाई करते है। खादी वस्त्र ही धारण करते है और नियमित चरखा चलाते और सूत कातते है। इसी सूत से फिर हथकरघे पर बुनाई करके कपड़ा बनाया जाता है। यह विश्वविद्यालय परपंरा और आधुनिकता का बहुत ही अच्छा मेल है। यहाँ इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर आदि की भी पढ़ाई रेगुलर कोर्सेज के साथ होती है। यह एक डीम्ड यूनिवर्सिटी है। 1930 में दांडी यात्रा और नमक सत्याग्रह की ट्रेनिंग इसी विश्वविद्यालय में हुई थी।
विदा लेते समय मुझे खुद देसाई जी गुजरात विद्यापीठ के गेट तक छोड़ने आये थे। इस तरह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के गौरवशाली इतिहास के एक किरदार से मिलना अपने आप में गौरवान्वित करने वाला अनुभव रहा। देसाई जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद जो इतनी आत्मीयता से आप मिले और इतना समय दिया।
- कपिल कुमार,
18 जनवरी 2020