मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि आप जितना ज्यादा जोखिम उठाएंगे, उसके बदले में मजा भी उतना ही ज्यादा पाएंगे। और यही कारण है कि मैं मजे के लिए अक्सर अपने ट्रिप में जान को जोखिम में डालने वाले छोटे-मोटे खतरों को मुंह लगाता रहता हूं। लेकिन आज मैं आपको जिस किले के बारे में बताने जा रहा हूं, वो इतना ज्यादा जानलेवा है कि मैं खुद अब तक वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया हूं। लेकिन सोचा, जब मेरे पास दुनिया के सबसे खतरनाक टूरिस्ट प्लेस की जानकारी है, तो फिर क्यों न इसे उन लोगों के साथ शेयर किया जाए जो डर पर जीत हासिल करने के लिए जान गंवाने तक का खतरा मोल लेने को तैयार रहते हैं।
कलावंती किला। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई शहर से नजदीक पनवेल इलाके में स्थित करीब 2300 फीट ऊंचा कलावंती किला महाराष्ट्र का ही नहीं, देश का ही नहीं बल्कि दुनिया का.. जी हां, दुनिया का सबसे खतरनाक किला है। अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होता, तो आप खुद गूगल पर World's Most Dangerous Fort सर्च कर देख सकते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इससे जुड़े फोटो और वीडियो देखकर ही कई लोगों के हाथ-पैर डर के मारे थर-थर कांपने लगेंगे। सच में, यह इतना ज्यादा डेंजरस है कि इसपर चढ़ाई करने के चक्कर में अब तक कई लोग अपनी जान तक गवां चुके हैं। और इसके बावजूद आज भी सैकड़ों की संख्या में ट्रेकिंग के शौकिन अपनी जान को दांव पर लगाते हुए कलावंती किले को फतह करने आते हैं।
अब अगर आपको डर नहीं लगता, आपका गला नहीं सुखता तो आप भी World's Most Dangerous Fort कलावंती किले के शिखर को सही सलामत फतह करने का कारनामा कर सकते हैं। तो फिर चलिए जानते हैं कि आखिर कलावंती किले पर कब और पहुंचा कैसे जाए? इस भयावह किले का इतिहास क्या है? और आखिर कलावंती World's Most Dangerous Fort क्यों है?
तो चलिए जानते हैं कि कलावंती किले तक पहुंचा कैसे जाए
माथेरान हिल्स से जुड़े 2300 फिट ऊंचे कलावंती किले के शिखर पर पहुंचना जितना मुश्किल है, उसके प्रांगण तक पहुंचना उतना ही ज्यादा आसान है। जी हां, अगर आप मुंबई और पुणे से नहीं है तो फिर सबसे पहले आपको मुंबई पहुंचना होगा। यहां से आप ट्रेन या फिर बस के जरिए सीधे पनवेल पहुंच सकते हैं। पनवेल पहुंचने के बाद आप ऑटो या फिर टैक्सी के जरिए कलावंती किले के बेस विलेज यानी ठाकुरवाड़ी पहुंच जाएंगे। और यहीं से कलावंती किले तक पहुंचने का सफर शुरू होता है। ठाकुरवाड़ी गांव में 50 रुपए की एंट्री फीस की रसीद कटवाकर आप घने जंगलों से घिरे रास्ते से करीब 2 घंटे के ट्रेक के बाद प्रबलमाची पहुचंते हैं। अगर आप गर्मी के दिनों में गए हैं तो फिर 2 घंटे की ट्रेकिंग से उपजी थकान को पूरी तरह मिटाने के लिए प्रबलमाची गांव एक परफेक्ट रेस्ट पॉइंट है।
प्रबलमाची गांव में खाने-पीने के साथ-साथ रहने के लिए होटल और टेंट तक की सुविधा है। गांव में बिजली आने के बाद से ही प्रबलमाची गांव में टिमटिमाते तारों से भरे खुले आसमान के नीचे चांदनी रात का लुत्फ उठाकर तड़के सुबह कलावंती किले की चढ़ाई करने का ट्रेंड बढ़ गया है। वरना पहले लोग सिर्फ दिन में ही इस तरफ आते थे और सूरज ढलने से पहले उल्टे पैर लौट भी जाते थे। दरअसल, इस किले की चढ़ाई के दौरान अनगिनत लोगों की बैलेंस बिगड़ने के चलते खाई में गिरकर हुई मृत्यु के कारण शाम ढलते ही कथित रूप से यहां भूत-प्रेत जैसी निगेटिव चीज़ों का डर बढ़ जाता था। इसलिए पहले के समय में लोग अंधेरा होने से पहले ही बेस विलेज ठाकुरवाड़ी लौट आते थे। लेकिन अब जब बिजली प्रबलमाची गांव तक पहुँच गई तब से यहां रात और दिन का फर्क समाप्त हो गया है।
कलावंती किले से किस मौसम में मुलाकात करना ठीक होगा?
देखिए, सवाल जब 'किस मौसम में आना सही होगा?' का हो, तो इसके 2 जवाब होंगे। आप बारिश में भी आ सकते हैं और ठंड के मौसम में भी। बस झुलसा देने वाली गर्मी के मौसम में भूलकर भी मत जाइएगा। बारिश के मौसम में आने का फायदा यह है कि ठाकुरवाड़ी से ही आपको अपने दोनों तरफ दूर-दूर तक फैली हरियाली और आसमान को आगोश में भरते प्रतीत होते पहाड़ों के नजारें नजर आएंगे। और आप इनकी खूबसूरती में कुछ इस तरफ गिरफ्तार हो जाएंगे कि आपको सफर में थकान का हल्का-सा भी एहसास नहीं होगा। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। और वो बहुत ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि बारिश के दिनों में कलावंती किला मौत का कुआं बन जाता है। चट्टान को काट कर बनाई खड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी सीढ़ियों पर पसरे पानी पर पैर के फिसलने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। और खड़ी चट्टान से पैर फिसलने का अंजाम... 2300 फीट खाई में गिरकर एक बेहद दर्दनाक और खौफनाक मौत।
अब अगर आपको खतरे को कम करना है तो फिर ठंड के मौसम में आना होगा। इस मौसम में प्रबलमाची गांव तक पहुंचने के लिए की गई ट्रेकिंग के दौरान नेचर के नजारें मानसून के मुकाबले थोड़े कम खूबसूरत होंगे, लेकिन फिर इसके बाद जो कलावंती किले के आखिरी हिस्से यानी खड़ी चट्टान पर बनी सीढ़ी की चढ़ाई होगी वो थोड़ी आसान हो जाएगी। हालांकि, तीखे मोड़ वाली घुमावदार खड़ी सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त दोनों तरफ दिखाई दे रहे खाई को देखकर अगर आप पर आपका डर हावी हो गया, तो फिर किसी भी वक्त चक्कर खाकर होश खोने और किसी एक तरफ गिरने के खतरे की आशंका भी बनी रहती है। और अगर आशंका कहीं असलियत में तब्दील हो गई... तो फिर गिरने वाले का जो हश्र होगा उसके बारे में तो सोचकर ही कलेजा कांप जाता है। कुल मिलाकर ठंड के मौसम में भी कलावंती किला आपका काल साबित हो सकता है। और इसके इतना ज्यादा खतरनाक होने के चलते ही मुझ जैसे कमजोर दिल वाले इस किले को दूर से ही नमस्कार करके चले जाते हैं।
अरे! जब जान का इतना खतरा है फिर जाए ही क्यों?
कलावंती किला World's Most Dangerous Fort तो है ही, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जान जाने के डर से लोगों ने यहां जाना ही छोड़ दिया हैं। हफ्ते के सातों दिन इस किले पर चढ़ाई करने के लिए लोगों का दूर-दूर से आना-जाना लगा रहता। है। और वीकेंड पर तो कलावंती किले पर आपको सैकड़ों लोग दिख जाएंगे। इसमें कोई दोहराय नहीं कि इस किले पर चढ़ाई करना सबके बस की बात नहीं है। लेकिन अगर आप थोड़ी हिम्मत बांधकर और सुरक्षा संबंधि नियमों का पालन करते हुए कोशिश करे तो फिर थोड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षित ढंग से चढ़ाई चढ़ सकते हैं।
ऊपर लगभग टॉप पर पहुंचने के बाद थोड़ी ऊंचाई आपकों रस्सियों के जरिए चढ़नी होती है। और एक बार जब आप कलावंती किले के शिखर पहुंच जाते हैं, तब आपको इस किले से प्रबलगढ़, चंदेरी, करनाल, इर्शल, पेब, मलंगगढ़, और माथेरान जैसी किले का मन मोह लेने वाला अद्भुत और अविस्मरणीय नजारा नजर आता है। करीब 2300 फीट की ऊंचाई से सामने नजर आ रहे ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की गूंजती खामोशी, उनसे लिपटकर बहते झरनों का शांत शोर और दूर-दूर तक फैले हरे-भरे घास के मैदानों का भरपूर खालीपन देखने और महसूस करने के बाद सारी मेहनत पाई-पाई वसूल हो जाती हैं। और सबसे अहम 'मैंने इतना जोख़िम भरा कारनामा कर दिखाया' वाला अमूल्य अहसास।
कलावंती किले के अतीत का आंगन कैसा है?
चलते-चलते इस इस किले को अगर इतिहास की इमारत से झांककर देखें तो इसकी आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार कलावंती किले के अस्तित्व का अतीत बुद्ध के जमाने जितना पुराना है। मान्यता है कि इसका निर्माण बहमनी सल्तनत के दौरान पनवेल और कल्याण किले की निगरानी के लिए किया गया था। कालांतर में सन् 1458 में अहमदनगर सल्तनत के प्रधानमंत्री मालिक अहमद ने कोंकण पर जीत के साथ ही इस किले पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद सन् 1657 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों को परास्त कर इस किले को अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही पहले मुरंजन नाम से पहचाने जाने वाले इस किले का नाम बदलकर स्थानीय रानी कलावंती के नाम पर किले का नाम कलावंती किला रख दिया।
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तो कैसी लगी आपको World's Most Dangerous Fort कलावंती किले की कहानी? अपना बहुमूल्य फीडबैक कमेंट बॉक्स में जरूर दीजिएगा।
- रोशन सास्तिक
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