
धोलावीरा की दास्ताँ
पिछले दो साल से गुजरात में राजकोट कालेज में एक टीचर के रूप में काम कर रहा हूँ तो सारे गुजरात को घूमने का सपना मन में आ रहा था, इसी सपने में धोलावीरा भी शामिल था , लेकिन धोलावीरा जाने का योग्य नहीं बन रहा था। अगस्त के लासट में राजकोट कालेज के बच्चों के कच्चे पेपर हुए और फिर 4 सितंबर को प्रैक्टिकल भी खत्म हो गए। अब सभी सटूडैंट अपने घर की ओर निकल पड़े। मैं भी लड़को के होस्टल में रहता हूँ तो होस्टल खाली हो गया था। कच्छ के पास रहने वाले एक सटूडैंट के साथ मैंने धोलावीरा जाने का प्रोग्राम बनाया। शनिवार को चार बजे तक सटूडैंट का प्रैक्टिकल लेकर , एक सटूडैंट की बाईक लेकर हम शाम को चार बजे राजकोट कालेज से सटूडैंट के घर की ओर निकल पड़े। दोस्तों मैं अपने सटूडैंटों को अपने बच्चों की तरह रखता हूँ कयोंकि यह सटूडैंट भविष्य के होम्योपैथी के डाक्टर हैं जो डाक्टर बन कर मानवता की सेवा करेंगे। कालेज से तीन किलोमीटर दूर कुवाडवा कसबे की चौकड़ी (चौंक) से वाकांनेर की ओर बाईक दौड़ा दी। वाकांनेर से पहले पैट्रोल पंप पर बाईक फुल करवा ली। वांकानेर गुजरात के सौराष्ट्र की एक पुरानी रियासत हैं जहां एक पैलेस भी देखनेलायक हैं । इस बार वांकानेर के पैलेस को नहीं देख पाया समय की कमी की वजह से। वाकांनेर से हम हाईवे पर चढ़ गए। अब हम मोरबी की तरफ बढ़ने लगे। मोरबी गुजरात का एक जिला हैं , मोरबी अपनी खूबसूरत टाईलस के लिए प्रसिद्ध है जो हमारे घरों में, किचन में , बाथरूम और आफिस में लगाई जाती हैं। मोरबी शहर से 10 किमी पहले और 10 किमी तक बढ़ी बढ़ी अलग अलग कंपनियों की टाईलस की फैक्ट्रियां हैं । जहां पर खूबसूरत टाईलस के साथ एड के लिए बोर्ड लगे हुए हैं। मोरबी एक भीडभाड़ वाला शहर हैं। मैंने सोचा मोरबी को पार करके ही चाय पानी के लिए बाईक को रोकूंगा कयोंकि छह बजने वाले थे। दो घंटे हो चुके थे बाईक चलाते हुए । थोड़ी देर बाद मोरबी को पार करके हाईवे पर होटल सतकार का बोर्ड दिखा, सतकार नाम पंजाबी का लगा तो बाईक की ब्रेक लगा दी। दो कप कड़क चाय का आरडर देकर मैंने अपने सटूडैंट रणजीत से कहा , रणजीते कया खायेगा ??
वह बोला सर जी जो मरजी मंगवा लो !!
मैंने होटल की दीवार पर देखा तो
परांठा , इडली, डोसा और सेव ओशन की तसवीर लगी हुई थी। परांठा , इडली, डोसा आदि तो पहले खा रखे थे तो दो पलेट सेव औशन मंगवा लिए जो कच्छ की एक डिश है दिखने में मैगी की तरह लगती हैं लेकिन सवादिष्ट थी। चायपान करके पैसे देकर हम फिर राजकोट से भुज जाने वाले हाईवे पर आ गए अपनी बाईक पर सवार होकर। हाईवे पर ट्रकों की भरमार थी , बड़े बड़े कंटनेरों को बाईक से पीछे निकालना अलग ही तरह की खुशी दे रहा था। मोरबी से 30 किमी दूर मालीया कस्बे के बाद एक बड़े पुल को पार करके हमने मोरबी जिले को छोड़कर भारत के सबसे जिले कच्छ में प्रवेश किया। सामाखियाली से 15 किमी पहले हमने भुज हाईवे को छोड़कर एक लिंक रोड़ पर बाईक को मोड़ दिया। कुछ समय बाद मेरे सटूडैंट का गांव आ गया जहां हमारी रात का सटे था। रात सटूडैंट के घर में बिताकर अगले दिन सुबह सात बजे हडप्पा के पुराने महांनगर धोलावीरा की ओर चल पड़े जो उसके गांव से 120 किमी था। उसके गांव से 30 किमी दूर रापर नामक एक कस्बा आया जो धोलावीरा के पास सबसे बड़ा शहर हैं जहां से धोलावीरा 95 किमी दूर रह जाता हैं। रापर से धोलावीरा वाला रास्ता बिल्कुल सुनसान हैं, 15 किमी तक कोई आबादी या घर नहीं हैं, रापर से 15 किमी बाद एक छोटा सा गांव आता हैं । रास्ते में दोनों तरफ बड़ी बड़ी झाडियां दिखाई देती हैं। रापर और धोलावीरा के बीच एक जगह हमने ऊंटों के झुंड को देखा जिसे मैंने अपने मोबाइल में कैद कर लिया। सुबह 9.40 तक हम धोलावीरा में पहुंच जाते है , जहां हमने गुजरात टूरिज्म के होटल में ब्रेकफास्ट किया जिसमें 100 में दही , बटर टोस्ट, कटे हुए सेब और आलू के दो परांठे थे। मेरा मकसद दस बजे तक धोलावीरा पहुंचना था, कयोंकि धोलावीरा मयूजियिम सुबह दस बजे खुलता है।


धोलावीरा मयुजियिम
मैं सुबह दस बजे धोलावीरा मयूजियिम के गेट तक पहुंच गया था। हडप्पा सभयता सथलों की खुदाई से मिली हुई वस्तुओं को अगर देखना हैं तो आप को हडप्पा सभयता सथलों पर बने हुए मयूजियिम को जरूर देखना होगा। धोलावीरा भी हडप्पा सभयता से संबंधित एक पुराना महांनगर था जो विश्व की पांच बड़ी हडप्पा सभयता सथलों में आता है। इन पांच जगहों में से तीन जगहें पाकिस्तान में हैं और दो भारत में आती हैं, जो निम्नलिखित अनुसार हैं।
1. हडप्पा ( पाकिस्तान )
2. मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान)
3. गनेरीवाला ( पाकिस्तान)
4. राखीगढ़ी हरियाणा ( भारत)
5. धोलावीरा गुजरात ( भारत)
इनमें से कम से कम दो जगहें तो हम जरूर देख सकते है राखीगढ़ी और धोलावीरा जो भारत में है। वैसे अभी तक हडप्पा सभ्यता से संबंधित 1000 सथलों की खोज हो चुकी हैं, जिसमें से 70 % जगहें भारत में हैं।
धोलावीरा में एक शानदार मयूजियिम बना हुआ है जहां आप धोलावीरा में हुई खुदाई से निकले सामान और वसतुओं को देख सकते हैं। जैसे ही आप मयूजियिम के गेट में प्रवेश करते हो तो एक खुले हाल में आ जाते हो। जहां एक तरह धोलावीरा का एक खूबसूरत चित्र लगा हुआ हैं। मयूजियिम में अलग अलग गैलरी बनी हुई हैं। जिसमें मिट्टी के बर्तन, मटके , गहने आदि रखें हुए हैं। यहां पर धोलावीरा का साईन बोर्ड भी मिला है जो यहां रखा हुआ हैं। इसके साथ यहां हडप्पा की सील , मिट्टी के खिलौने जिनको अलग अलग पशुओं के रूप में बनाया गया हैं । हडप्पा सभ्यता के सथलों के बारे में बहुत अहम जानकारी अलग अलग चित्रों और नकशे द्वारा दी गई है जिसे आप इस मयूजियिम में पढ़ और देख सकते हो। मैंने भी एक घंटा इस मयूजियिम में बिताया और हडप्पा सभ्यता से संबंधित बहुत सारी जानकारी इकट्ठा की जिसे देखकर और पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आप भी जाईये कभी धोलावीरा के इस मयूजियिम को देखने अगर आपको इतिहास और हैरीटेज से प्रेम है



धोलावीरा मयूजियिम को देखने के बाद मैं कुछ ही दूरी तक पैदल चल हडप्पा सभ्यता सथल तक पहुंच गया । जहां हडप्पा सभ्यता के पुराने महांनगर धोलावीरा के अवशेष आज भी मिलते हैं। ऊपर से देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत बड़ा शहर उजड़ गया हो सदियों पहले और आज भी अपनी छाप छोड़ गया हैं। दूर से देखने पर एक टीले के रूप में दिखाई देता है धोलावीरा हडप्पा सभ्यता सथल। सुबह 11 बजे का समय था उस दिन गर्मी भी बहुत थी , धूप भी पूरी चमक रही थी लेकिन धोलावीरा फिर भी बहुत अच्छा लग रहा था कयोंकि आज फिर हमारी पुरानी विरासत हडप्पा सभ्यता के रुबरु होने जा रहा था। हडप्पा सभ्यता से संबंधित चौथी जगह की यात्रा हो रही थी मेरी , इससे पहले रोपड़ ( पंजाब) , कालीबंगा ( राजस्थान) और लोथल ( गुजरात) देख चुका था आज धोलावीरा देखने का सपना भी पूरा हो रहा था।
धोलावीरा हडप्पा सथल 100 ऐकड़ में फैला हुआ हैं जो दो मानसूनी धाराओं मानसर ( उत्तर दिशा ) और मनहार(दक्षिण दिशा) के बीच में बसा था । यह दो मानसूनी नदियां धोलावीरा को पानी की सप्लाई करती थी । उस समय के राजा ने इन नदियों के पानी को इकट्ठा करने के लिए शहर की बाहरी सीमा के साथ तालाब बनवाए जो इन नदियों के पानी से भरे जाते थे , जिससे धोलावीरा को पानी की सप्लाई होती थी। धोलावीरा में बारिश बहुत कम होती हैं अब भी और उस समय में भी इसीलिए पानी को इकट्ठा किया जाता था। आज भी जब आप धोलावीरा हडप्पा सथल देखने आते हो तो आपको खुले विशाल गहरे गढ्ढे दिखाई देगें जो तालाब थे। इसके ईलावा धोलावीरा शहर को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता हैं ।
1. अपर भाग
2. मिडल भाग
3. लोअर भाग
अपर भाग सबसे ऊंचा और महत्वपूर्ण जगह थी धोलावीरा शहर की जहां पत्थर से बना हुआ एक मजबूत किला हुआ करता था। इसी किले में राजा महाराजा रहा करते थे।
मिडल भाग में आपको खुला मैदान मिलेगा जहां राजकीय कार्यक्रम हुआ करते थे। इसी भाग में बाजार और सटेडियम था और साथ में गलियों का नैटवर्क भी देखने को मिलेगा ।
लोयर भाग में आम लोग रहते थे जो काम करते थे। धोलावीरा में आपको जल संरक्षण करने का शानदार नमूना देखने को मिलेगा । जिंदगी जल के ऊपर ही आधारित हैं । हाईड्रो इंजीनियरिंग की बेमिसाल उदाहरण है धोलावीरा जहां मानसूनी नदियों का पानी इकट्ठा करके शहर में सपलाई किया जाता था।
मैंने भी बड़े आराम से एक तरफ से शुरू होकर पहले तालाब देखे , फिर धीरे धीरे टीले के ऊपर चढ़कर धोलावीरा शहर के अवशेष देखे। पत्थर और ईटों से बनी हुई 4500 साल पुरानी गलियों के नैटवर्क को देखा । लगभग एक घंटा हडप्पा सभ्यता की विरासत को देखकर मैं बाहर आ गया। धोलावीरा को इसी साल यूनैसको वल्र्ड हैरीटेज साईट में शामिल कर लिया गया है। आशा करता हूँ इस कदम से धोलावीरा का नाम और चमकेगा टूरिस्ट मैप पर । अगर आप को ईतिहास और विरासत पसंद हैं तो आपको धोलावीरा की यात्रा जरूर करनी चाहिए।



सनसेट पुवाईट दत्रातरेय मंदिर
धोलावीरा के आसपास भी बहुत खूबसूरत जगहें हैं घूमने के लिए जहां कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं जाती , आपको अपने साधन पर ही जाना होता है। मैं तो बाईक लेकर गया था तो धोलावीरा देखने के बाद मैं सनसेट पुवाईट और दत्रातरेय मंदिर की ओर आगे बढ़ गया। धोलावीरा से सनसेट पुवाईट की दूरी कुल 9 किमी हैं । रास्ता बहुत छोटा और सुनसान हैं आपको रास्ते में कोई भी आबादी नहीं मिलेगी । सड़क के दोनों तरफ झाडिय़ों के झुंड देखने को मिलेंगे। ऐसे वीरान और सुनसान जगहों पर बाईक चलाने का अपना अलग ही आनंद आता हैं। खैर धीरे धीरे बाईक सनसेट पुवाईट की तरफ बढ़ रही थी । सनसेट पुवाईट से एक किमी पहले एक रास्ता कच्छ फौसिल पार्क की तरफ मुड़ता हैं जो वहां से तकरीबन दो किमी दूर है । मैं सीधे ही सनसेट पुवाईट की तरफ चला गया। आगे चलकर एक खुले मैदान में पहुंच गया । जहां सामने दत्रातरेय जी का मंदिर , उसके साथ एक वियू पुवाईट जिसे सनसेट पुवाईट कहते है दिखाई दे रहा था, इनके पीछे खुला कच्छ का रण दूर दूर तक दिख रहा था, जो चांदी की तरह चमक रहा था। खुले मैदान के एक तरफ BSF की चौकी हैं। वैसे आपको यहां पहुंचने के लिए किसी परमिट वगैरा की कोई जरूरत नहीं हैं। यह जगह भारत पाकिस्तान सीमा के पास है , कच्छ के रण के उस पार पाकिस्तान का क्षेत्र शुरू हो जाता हैं इसलिए ही यहां यह चौकी बनाई गई है। खुले मैदान में बाईक लगाकर हम पहले दत्रातरेय मंदिर के दर्शन करने के लिए गए। दत्रातरेय जी का मंदिर बहुत खूबसूरत बना हुआ है। हमने माथा टेका और मंदिर के पास एक वृक्ष के नीचे बैठ कर पानी की बोतल से पानी पिया और बिस्किट खाए। फिर हम मंदिर के बगल में ही बने हुए वियू पुवाईट जिसे सनसेट पुवाईट कहते है वहां गए । सनसेट पुवाईट पर कुछ फोटोग्राफी की । सनसेट पुवाईट से आगे जहां जहां तक आपकी नजर जाती हैं आपको कच्छ का रण दूर दूर तक दिखाई देगा, इस रण में सामने एक खूबसूरत पहाड़ी भी दिखाई देती हैं जो बहुत खूबसूरत दृश्य पेश करती हैं । दोपहर का समय था , धूप भी बहुत तेज थी , कच्छ का रण चांदी की तरह चमक रहा था। यहां से शाम को डूबते हुए सूर्य का बहुत खूबसूरत नजारा दिखाई देता है , खैर हमें तो दोपहर में ही निकलना था वापसी के लिए । मन तो था , रण में जाकर देखने का लेकिन असली रण वहां से आधा किलोमीटर दूर था , हमारे पास समय कम था कयोंकि आज वापिस भी जाना था और रास्ते में रण को पार भी करना था तो सोचा वहीं पर रण देखेंगे कयोंकि वापसी में रण पार करते समय रण सड़क के बिल्कुल पास था। कुछ समय सनसेट पुवाईट पर बैठ कर इस जगह की खामोशी का आनंद लेकर हम अपनी बाईक लेकर अपनी अगली मंजिल की ओर रवाना हो गए।


वुड फौसिल पार्क धोलावीर
सनसैट पुवाईट देखने के बाद एक किमी धोलावीरा की तरफ चलने के बाद हम सड़क से एक छोटी सी पगडण्डी की ओर मुड़ गए। यहां पर गुजरात टूरिज्म का बोर्ड लगा था जिसके ऊपर लिखा था वुड फौसिल पार्क इसका मतलब है लकड़ी जीवाश्म पार्क । उसी पगडण्डी पर हम मोटरसाइकिल से आगे बढ़ते रहे , एक किमी के बाद इस फौसिल पार्क का गेट आया। वहां पर खड़े हुए सुरक्षा गार्ड ने हमारा नाम एक रजिस्टर पर लिखा । हमारे मोटरसाइकिल का नंबर नोट किया और हमसे पूछा कहां से आए हो ???
हमने बताया राजकोट से आए हैं धोलावीरा देखने !!
फिर उसने बोला आप जाईये दो किमी बाद फौसिल दिखेंगे । रास्ता थोड़ा खराब ही हैं । टूटे फूटे सुनसान वीरान रास्ते पर मैं और मेरा सटूडैंट रणजीत चल रहे थे। फौसिल पार्क का यह ईलाका बिल्कुल वीरान हैं । आपको यहां कुछ भी नहीं मिलेगा । हमारे पास पानी की बोतल थी जिससे हम पानी पी रहे थे , थोड़े थोड़े समय के बाद कयोंकि यहां गर्मी बहुत जयादा थी । कुछ ही देर में एक कच्चे रास्ते से कुछ चढ़ाई से नीचे ऊतर कर हम एक वियू पुवाईट पर पहुंचे । जहां से सीढियों को ऊतर कर हम फौसिल के पास पहुंच गए। यह फौसिल पार्क कच्छ के रण के किनारे पर है। फौसिल के पीछे कच्छ के रण का अद्भुत नजारा दिख रहा था। धोलावीरा तो 4500 साल पुराना हैं लेकिन फौसिल पार्क तो लाखों करोड़ों साल पुराने फौसिल को संभाल कर रखा हुआ है ।
जैसे हम फौसिल पार्क को देख रहे है लेकिन मुझे भी फौसिल के बारे में जयादा नहीं पता , कि फौसिल कया होता हैं । दसवीं , बारवीं की कक्षा में साईंस की कक्षा में फौसिल के बारे में टीचर पढ़ाया करते थे लेकिन उस समय भी यह बात अच्छी तरह समझ नहीं आई थी । आज फौसिल को अपनी आखों के सामने देखकर और उसके बारे में पढ़कर शायद समझ आ जाए।
वैसे फौसिल को हिन्दी में जीवाश्म कहते हैं । जीवाश्म किसी भी विलुप्त पौधे या जीव जंतु के किसी समय के जीवित होने के प्रमाण को कहते है। जब किसी जीव की मृत्यु हो जाती हैं और वह मिट्टी में दब जाता हैं उसके नरम भाग गल जाते हैं और कठोर भाग करोड़ों साल बाद पत्थर में तब्दील हो जाते है जिसे हम जीवाश्म कहते है।



छिप्पर_पुवाईट
गुजराती भाषा में छिप्पर का मतलब होता हैं चट्टान , यहां पर एक पहाड़ी पर पहुंच कर पहाड़ से बाहर की ओर निकली हुई बड़ी चट्टान हैं जिसे छिप्पर पुवाईट कहा जाता हैं। इस छिप्पर ( चट्टान ) पर खड़े होकर टूरिस्ट फोटोशूट करते हैं कयोंकि यहां पर फोटोज बहुत खूबसूरत आती हैं कयोंकि बैकग्राउंड में बहुत गहरी खाई हैं और दूर दूर तक दिखाई देता कच्छ का विशाल रण हैं जो फोटोज की खूबसूरती को चार चांद लगा देता है।
जब मैं धोलावीरा यात्रा पर निकलता तो Nareja Firoj भाई से बात हुई थी फोन पर उन्होंने ही मुझे छिप्पर पुवाईट के बारे में बताया । फिरोज भाई अपनी फेसबुक पर भी टूरिस्टों के साथ छिप्पर पुवाईट की फोटोज डालते रहते थे । मेरे मन में भी था छिप्पर पुवाईट की खूबसूरती को देखू और फोटो खिचवाई जाए यहां पर। धोलावीरा फौसिल पार्क देखने के बाद दोपहर एक बजे के आसपास हम अमरापुर गांव के बाद पांच किलोमीटर रापर की तरफ जाकर एक जगह पर रूके और किसी वयक्ति से छिप्पर पुवाईट के बारे में पूछा ,उसने हमें समझाया आगे एक पुल आएगा वहां से कच्चे रास्ते वाला एक मैदान आऐगा । वहां से सीधे सीधे कच्चे रास्ते पर चलते जाना आप छिप्पर पुवाईट पहुंच जायोगे । यहां से तीन किलोमीटर दूर हैं । हम मोटरसाइकिल लेकर आगे बढ़ गए लेकिन हमें रास्ते का पता नहीं चला , कयोंकि वहां पर छिप्पर पुवाईट का कोई बोर्ड वगैरह नहीं लगा हुआ। सड़क पर कोई नहीं मिला जो हमें रास्ता बता सके । कुछ दूर चलकर हमें सड़क की एक तरफ बिजली घर दिखाई दिया । हमने सोचा बिजली घर में जाते है वहां कोई मदद कर देगा रास्ता बता देगा छिप्पर पुवाईट। बिजली घर पहुंच गए, बिजलीघर के अधिकारी बहुत अच्छे थे , उन्होंने बताया बिजली घर के पीछे एक खुला मैदान हैं , उसके बाद एक कच्चा रास्ता है उसी को पकड़ कर चलो छिप्पर पुवाईट पहुंच जायेंगे। उन्होंने हमें बिजली घर से दूर से दिखाई देती हुई पहाड़ियों को दिखाया जिसमें छिप्पर पुवाईट हैं। उनका धन्यवाद करके हम बिजली घर के पीछे मैदान को पार करते हुए कच्चे रास्ते पर मोटरसाइकिल से चलने लगे। कुछ देर बाद रास्ता ऊंचाई वाला और पत्थरीला हो गया। बडे़ बड़े और छोटे छोटे पत्थर के टुकड़ों वाला लेकिन धीरे धीरे मैं मोटरसाइकिल चलाता रहा। दोपहर का समय था , गर्मी भी बहुत थी लेकिन फिर भी चल रहे थे छिप्पर पुवाईट को ढूंढने । कुछ चढ़ाई चढ़ने के बाद झाडियों के झुंड में कच्चे रास्ते को पार करते हुए हम एक ऊंचे समतल मैदान पर पहुंच गए। अब छिप्पर पुवाईट हमारी आखों के सामने था । पीछे दूर दूर तक दिखाई देता कच्छ का विशाल रण का मैदान था जो एक गहरी घाटी में दिखाई दे रहा था। नजारा बहुत जबरदस्त था । छिप्पर पुवाईट पर कुछ गडरिए भी थे जो अपनी भेड़ बकरी चराने के लिए वहां बैठे थे। उनसे भी हमने बातचीत की। उन्होंने ने बताया झाडियों में बनी हुई पगडण्डी से आप इस पहाड़ी से गहरी घाटी में उतर सकते हो और फिर कच्छ का रण देखकर वापिस आ सकते हो । दो तीन घंटे लगेंगे आने जाने में , लेकिन हमारे पास समय कम था कयोंकि दो बजने वाले थे। छिप्पर पुवाईट पर हमने कुछ फोटोज खिचवाई। कुछ देर तक छिप्पर पुवाईट की बेमिसाल खूबसूरती का आनंद लिया। छिप्पर पुवाईट के बारे में कहीं भी आपको जयादा लिखा हुआ नहीं मिलेगा । यह धोलावीरा के पास घूमने वाली एक आफबीट जगह है जो बहुत लाजवाब हैं । आप जब भी धोलावीरा जाए तो छिप्पर पुवाईट भी जरूर देखकर आना। छिप्पर पुवाईट अमरापुर गांव से 7 किमी , धोलावीरा से 37 किमी और रापर से 60 किमी दूर , रापर - धोलावीरा सड़क से तीन किलोमीटर साईड में हैं । वापसी में जब छिप्पर पुवाईट से रापर वाली रोड़ पर जा रहे थे तो पत्थरीले रास्ते में एक पत्थर से टकराकर मोटरसाइकिल का पिछला टायर पंचर हो गया। दो किमी मोटरसाइकिल पैदल लेकर सड़क पर पहुंच गए । फिर फिरोज भाई को फोन किया उन्होंने अमरापुर गांव में एक बंदे की मदद से मोटरसाइकिल का पंचर लगवाने में मदद की । अमरापुर में फिरोज भाई से मिलकर दुबारा हम फिर अपनी अगली मंजिल के लिए रवाना हो गए।


छिप्पर पुवाईट के बाद अमरापुर में मोटरसाइकिल को पंचर लगाकर हम वापिस रापर की ओर बढ़ने लगे । अमरापुर से पांच किलोमीटर बाद सड़क की दोनों तरफ आपको कच्छ का सफेद रण दिखाई देगा । धोलावीरा , अमरापुर , फौसिल पार्क आदि जगह एक टापू में मौजूद हैं । इस टापू को खादिर बेट कहा जाता है । खादिर बेट को चारों तरफ से कच्छ के विशाल रण ने घेरा हुआ है। जब आप धोलावीरा जायोगे तो रापर से 55 किमी दूर , अमरापुर गांव से 5 किमी पहले कच्छ के रण को पार करने के बाद ही आप खादिर बेट में प्रवेश करोगे। हमने धोलावीरा से रापर वापिस आते हुए कच्छ के रण को घूमा। सड़क के दोनों तरफ आपको सफेद रण का अद्भुत नजारा दिखाई देगा। सड़क के एक तरफ दो वियू पुवाईट बने हुए हैं। हमने भी सड़क से साईड में उतरने के बाद वियू पुवाईट के सामने मोटरसाइकिल को लगा दिया । फिर हम कच्छ के रण में नीचे उतर गए। पहले मैं सोच रहा था शायद पानी भी हो लेकिन सतह बिल्कुल ठोस और सफेद थी। हर तरफ सफेद चादर बिछी हुई थी जैसे पहाड़ियों पर ताजी बर्फ पड़ी हो। बहुत अद्भुत नजारा था , ऐसा लग रहा था जैसे चांद की सतह पर चल रहा हूँ। कुछ कदम तक कच्छ के सफेद रण पर पैदल चला । कुछ फोटोज खींचे और छोटी सी वीडियो भी बनाई । बहुत ही आनंद आ रहा था कयोंकि मैं दुनिया की भीड़भाड़ से दूर कच्छ के सफेद रण को घूम रहा था ।
#कच्छ_का_रण
दोस्तों कच्छ का विशाल रण गुजरात के कच्छ जिले में 7500 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। रण का अर्थ होता हैं मारूथल । रण असल में नमक का मारूथल हैं । भारत में आपको तीन तरह के मारूथल देखने के लिए मिलेंगे ।
1. ठंडा मारूथल ( लेह , लद्दाख , सपिती घाटी )
2. गर्म मारूथल ( थार मारूथल ) राजस्थान के बीकानेर , जैसलमेर, बाड़मेर आदि ।
3. नमक का मारूथल ( कच्छ का रण ) गुजरात ।
कच्छ का रण दुनिया का सबसे बड़ा नमक का मारूथल है। इसमें समुद्र का पानी आ जाता हैं फिर धीरे धीरे धूप से सूख जाता है लेकिन नमक नीचे रह जाता हैं ।यहां जमीन पर नमक की एक सफेद ठोस सतह बन जाती हैं जिसे हम कच्छ का सफेद रण कहते हैं। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। कच्छ में आपको बहुत सारे करोड़ों साल पुराने फौसिल भी मिलते हैं। कच्छ में देखने के लिए बहुत कुछ है , सच ही कहते है कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा । मैं कच्छ में दो बार जा आया हूँ , तीसरी बार सरदियों में रण उतसव देखने जायूंगा । कच्छ के रण को देखकर हम रापर पहुंच गए। रापर से मोटरसाइकिल चलाते हुए मोरबी, वांकानेर होते हुए हम वापिस राजकोट आ गए ।

