रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग या बैद्यनाथधाम (Baidyanath Temple) बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है जो झारखंड राज्य के देवघर जिला में अवस्थित है। भगवान शिव का पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे "देवघर" अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं । इस कारण इस शिवलिंग को "कामना लिंग" भी कहा जाता हैं। बैजनाथ भील ने सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग जी की पूजा की थी इसलिए इसका नाम बैद्यनाथधाम पड़ा है ।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने राज्य लंका में शिवलिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर एक शर्त रखी कि अगर मार्ग में इसे जमीन पर रख देगा तो वह उसी जगह पर बस जाएँगे। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका लगा । रावण उस शिवलिंग को ग्वाले को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उस ग्वाले ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी होने के कारण भूमि पर रख दिया। लघुशंका से निवृत्त कर लौटने पर रावण शिवलिंग को उठाने का प्रयास किया पर उसे ना उखाड़ सका और निराश होकर शिवलिंग पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया । वो निशान आज भी शिवलिंग पर देखे जा सकते है ।
कैसे पहुँचे ?
देवघर का मुख्य रेलवे स्टेशन 6km दूर स्थित जसीडीह रेलवे स्टेशन है, जो कोलकाता दिल्ली मैन लाइन पर स्थित है । देश लगभग सभी प्रमुख शहर से यहां के लिए ट्रेन मिल जाती है ।
वायु मार्ग से आना हो तो आप रांची/कोलकाता/पटना तक आ सकते है फिर वहां से देवघर (जसीडीह) के लिए रेल/सड़क मार्ग प्रयोग कर सकते है । सड़क मार्ग से तो ये जुड़ा हुआ है ही ।
कब पहुँचें ?
यू तो यहां सालों भर दर्शन किया जा सकता है पर सोमवार और शिवरात्रि के अवसर पर विशेष भीड़ लगती है । साथ ही यहां सावन के महीने में कांवरियों का जत्था गंगा जल लाकर शिवलिंग में अर्पण करते है । सिर्फ सावन महीने में ही यहां लगभग 30-40 लाख कांवरियां आते है । पूरा देवघर कांवरियों से भर जाता है और शहर केसरिया हो जाता है । यदि आप कांवर नही उठा रहे है तो सावन में यहां आने परहेज कर सकते हैं । सावन में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है । इस मेले को राजकीय मेला का मान्यता भी दिया गया है ।
कहां घूमें ?
बाबाधाम मंदिर के अलावा आप यहाँ तपोवन, त्रिकुट पहाड़, नौलखा मंदिर, सत्संग भवन आदि जगह घूम सकते हैं ।
आप चाहे तो बाबा बासुकीनाथ है जो कि यहां से 45 किलोमीटर दूरी है और मां तारापीठ का मंदिर (बंगाल) भी जा सकते है । इन जगहों के लिए आपको बस/टैक्सी/ रेल उपलब्ध है ।
विशेष -
यहां प्रसाद के रूप में दूध के बने हुए पेड़े बहुत प्रसिद्ध हैं । सभी भक्त प्रसाद के रूप में पेड़े साथ ले जाते है ।
यहां हर सन्ध्या बाबा की श्रृंगार पूजा और आरती होती है आप उसमें भाग ले सकते है ।
जयकांत पंडित ज्या
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