पूरी दुनिया जनना है तो हर जगह को पास से जाकर जानना होगा। तभी तो हर जगह अपनी-सी लगेगी। मेरे लिए हर जगह एक नही सी लगती है। हजार बार जाने के बावजूद भी एक नई पहचान के रुप मे अपने आपको संजोकर रखती है। जो एक यात्रा का ही दृश्य है । इन्हीं पहाड़ों में घूमते-घूमते रोमांच जैसा कुछ हो जाता है। आप ऐसी जगह पर पहुँच जाते हैं, जहां सड़कें और क्रंकीट की इमारतें नहीं बल्कि प्रकृति की सुंदर छंटा देखने को मिलती है। परंतु कुछ ऐसीजगह होती हैं। जहां पर पहुँचना आसान नहीं होता है लेकिन कहते हैं ना कि सबसे सुंदर नज़ारों के लिए सबसे दुर्गम यात्रा करनी पड़ती है। उत्तराखंड के CHOPTA में मैंने ऐसी ही एक दुर्गम यात्रा की।
उत्तराखंड के CHOPTA , भारत का मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर है। चंद्रशिला ट्रेक एक मदहोश करने वाला ट्रेक होता है। जोकि समुद्र तल से *3600मीटर* की ऊँचाई पर स्थित है जोकि एक दिन मे किया जा सकता है, आपको ज़्यादा भीड़ साल भर रहती है। और हमने भी इसी साल करने का तय किया । और अप्रैल मे निकल पड़े।
*CHOPTA*
मैं CHOPTA से पहले एक बंकर हाउस में ठहरा हुआ था। सुबह उठा तो देखा कि हल्की-हल्की बारिश हो रही था, लगा कि अब ट्रेक नहीं हो पा गया। जब तक मैं तैयार हुआ, तब तक बारिश ने हमारा रास्ता साफ़ कर दिया था। नाश्ता करने के बाद हम लोग ट्रेक के लिए कैब और गाइड का इंतजार करने लगे और फिर निकल पड़े। हम लोगो का प्लान सिंपल था। एक ही दिन मे रिटर्न होना था अपने बंकर हाउस में।
हमने ट्रेक करने के लिए किराए पर लकड़ी की लाठी ले ली। ट्रेक और ठंड भी काफी थी तो जिन्होंने जैकेट नही लाए थे तो उन्होंने हुडेड ले लिया और हम लोग निकल पड़े। आगे जाते ही ट्रेक पास लेना पड़ा जोकि 150 rs pp था । उस रास्ते पर हमे कोई शॉप नही मिली लेकिन तुंगनाथ मंदिर से पहले एक tea शॉप मिली जहा मैगी चाय का स्वाद चखा।
और ये सब खाते खाते शॉप वाले अंकल एक पहाड़ी जूस की बात करने लगें जोकि हार्ट ब्लड प्रेशर आदि के लिए लाफदायक है तो हमने एक एक गिलास वो भी पी लिया। जोकि स्वाद में बढ़िया था। जूस को बुरांस कहते हैं, वहां। हम कुछ देर यहाँ रूके और फिर आगे बढ़ गए। वीकेंड होने की वजह से लोगों की काफ़ी भीड़ थी।
हम तुंगनाथ से पहुंचते मौसम ने अपनी रंगत दिखा ही दिया। मौसम का बदलता रुप ने लोगो को इधर उधर कर्दिया। कुछ लोग आगे निकल गए और कुछ लोग पीछे रह गए। थकावट होने पर थोड़ी देर के लिए रूक जाते तो कुछ लोग उत्साह से भरे आगे बढ़ते गए । काफ़ी देर बाद आखिर में तुंगनाथ मंदिर परिसर में पहुंच गए। जहां से नीचे का दृश्य अदभुत झलकियां दे रही थीं।। यहाँ पर लोगो ने दर्शन किए और हमने कुछ पिक क्लिक की और आगे बढ़ गए। अपनी मंजिल के लिए। जोकि मेन कठिनाई अब आने वाली थी। इस कठिनाई का साथ प्राकृति भी दे रही थीं। बारिश का होना और बर्फ का फिसलन होना रास्ता को दुर्गम बनाना अपने आप मे एक चुनौती भरा था।
इस चुनौती भरे रास्ते पर कुछ ने तो यूटर्न हो गए तो वहीं कुछ लोग हमारे साथ बढ़ते गए।
*तुंगनाथ मंदिर*
अभी तक हम *तुंगनाथ मंदिर* से ही निकले थे । लेकिन अब रास्ता एकदम फिसलन वाला हो रखा था । यहाँ से हमें वो कठिन रास्ता भी दिखाई दे रहा था जिसको तय करना था और भी मुस्किल था। कुछ देर बाद हम ट्रेक के हाफ दूरी पर पहुँच गए। यहाँ पर कई लोगो को सांसे फुलने लगी। परंतु हम हौले-हौले बढ़ते जा रहे थे। काफ़ी लंबा और कठिन सफ़र तय करने के बाद हम ऐसी जगह पर पहुँचे, जहां से दूर-दूर तक बर्फ से ढँके पहाड़ दिखाई दे रहे थे। इस सफ़र में पहली बार इतना खूबसूरत नजारा देखने को मिला। कुछ देर मैं इस नज़ारे को देखने के लिए ठहरा रहा।
लगभग 4-5 घंटे के सफ़र के बाद हम आख़िरकार चंद्रशिला ट्रेक के टॉप पर पहुँच गए। जहां से पहाड़ो के सारी चोटियों के समान खड़े हुए थे। चारों तरफ एक शांत भरा पल था। यहाँ से बर्फ़ से ढँका जो नजारा दिखाई दे रहा था, वो वाक़ई में बयां करना मुश्किल है। हमने एक जगह पर खड़े होकर एक तरंग का एहसास किया। वो ऐसा पल था जैसे मेरे बालो और ऊनी टोपी हाथों mobile में मानो करेंट बह रही हो। पहले तो थोड़ा डर सा गया। अचानक क्या होने लगा बॉडी को, देखते देखते सभी लोग हैरान हो गए। कुछ तो डर गए।
*चंद्रशिला ट्रेक* पर एक ऐसा शक्स से मुलाकात हुई, जो इस संसार से परे था। इतनी बर्फबारी में बिना कपड़ो और बिना जूतों के पीक पर ऐसा बैठा था जैसे कोई शक्ति विराज मान है।
उसकी स्थिति एक पागल के समान थी। उसने ट्रेक हमारे द्वारा लगाए गए समय से आधे से कम समय में आ जा चुका था।
पीक प्वाइंट के बाद रिटर्न करना चढ़ने से बहुत मुश्किल रहा। आते आते पैरो की हालत खराब हो गई थी। जैसे तैसे नीचे उतर आए और जिन महोदय से ट्रेक के जूते लिए उनको paid करके कुछ खाने की खोज मे लग गए तो फिर थोडी देर बाद एक कैफे में गए और चाय और मैगी का स्वाद लिया और फिर अपनी कैब से अपने रुम की ओर निकल पड़े। रात हो रही थीं, और वही पर थके हरे हुए थे, थकान ऐसी थी मानो चूरचूर हो गए हो। फिर क्या जैसे सोना था और अगले दिन सुबह सुबह बाइक लेकर जाना था।
चंद्रशिला ट्रेक के कुछ हिस्सों का मुजबानी कहानी जो कि हमने जी कर आए वही बयां कर दिया।
*कैसे और कब जाएं*
चोपता पर मौसम के किसी पहर में आ जा सकते है। लेकिन मेरे हिसाब से फरवरी तो जून और अगस्त से दिसंबर सबसे अच्छा समय होता है जाने का आप किसी भी समय जा सकते हैं।
**ट्रेन द्वारा – निकतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जहां से कई माध्यम से जा सकते हैं।
बस द्वारा* – बस से हरीद्वार, ऋषिकेश और देहरादून किसी भी स्थान से अपने सहूलियत के अनुसार जा सकते हैं।
हम लोग तो हरिद्वार से बाइक रेंट पर लेकर गए जोकि 800 पर डे था । और वहां तक आने जाने के लिए लगभग 1000rs का पेट्रोल लग पाया ।