मनाली या लेह छोडो ,इस मानसून निकलो राजस्थान की गौरव गाथा कहते इस किले की ओर

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उदयपुर से करीब 110 किमी और मेरे शहर भीलवाड़ा से 55 किमी दूर स्थित चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित हैं वह किला जिसे भारत के सबसे बड़े किलों में से एक माना जाता हैं,जिसने त्याग ,वीरता और बलिदान की उन सैंकड़ों कहानियों देखी हुई हैं , जिसे मेवाड़ की शान कहा जाता हैं।आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम इस चित्तौड़गढ़ किले को एक पर्यटक की दृष्टि से घूमेंगे ,साथ ही साथ यहाँ से जुडी वो प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाये भी जानेंगे जिनको सुनकर आप जान जाएंगे कि क्यों यह किला केवल मेवाड़ ही नहीं बल्कि पुरे भारत के लिए स्वाभिमान का प्रतिक हैं।

टेढ़े मेढ़े रास्तों से 7 दरवाजो से होकर जाता हैं यहाँ का रास्ता :

करीब 600 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित एक पहाड़ी पर बसा यह किला चित्तौड़गढ़ शहर में प्रवेश होने के कई किलोमीटर दूर से दिखाई देने लगता हैं।2013 में इस किले को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया।किले पर जाने से पहले प्रवेश के रास्ते पर ही एक जैन मंदिर बना हुआ मिलेगा ,जहाँ दर्शन करके ,आपको अब चढ़ाई करते हुए 7 द्वारों से गुजरना होता हैं। ये सातो द्वार पोल कहलाते हैं -गणेश पोल ,पाड़ल पोल ,राम पोल ,लक्ष्मण पोल ,बड़ी पोल ,जोरला पोल एवं हनुमान पोल।

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पहले द्वार में प्रवेश करते ही आपकी बायीं तरफ किले की 13 किमी लम्बी दिवार आपके साथ साथ ऊपर तक जायेगी।करीब डेढ़ किलोमीटर की इस टेढ़ी मेढ़ी रास्तों वाली चढ़ाई में में कई स्मारक एवं मंदिर भी आते हैं। यह दिवार और दरवाजे सुरक्षा की दृष्टि से बनवाये गए थे। छठे पोल के बाद में आप पहुंचेंगे सीधे एक आबादी वाले क्षेत्र में। जैसलमेर फोर्ट की तरह ही ,यह किला भी एक जीवित किला हैं ,मतलब इस किले में अभी भी आबादी बसती हैं। लेकिन जिस तरह जैसलमेर फोर्ट में सभी मुख्य इमारतों के साथ ही आबादी,दुकाने दिखाई देती हैं ,उसके विपरीत यहाँ किले की मुख्य इमारतों के आसपास एकाध ही मकान हैं। अधिकतर आबादी किले पर मुख्य इमारतों से करीब 500 मीटर दूर स्थित हैं।इसीलिए किले को घूमने के दौरान पर्यटक यह भूल जाते हैं कि यह भी एक जीवित किला हैं।

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इस आबादी वाले क्षेत्र के बाद आप सीधा पहुंचेंगे पार्किंग एवं टिकट स्थल पर। हालाँकि पहले हर एक इमारत का टिकट उसी ईमारत के बाहर ही मिलता था ,पर अब कुछ महीनो से किले के सारे टिकट्स आपको यही से खरीदने होते हैं। आप इस पार्किंग में गाडी खड़ी न कर आगे भी बढ़ सकते हैं। इसी टिकट काउंटर से कुछ ही मीटर आगे एक विशाल खुले प्रांगण से आप चित्तौड़गढ़ शहर का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।अगर आप चित्तौड़गढ़ खुद के साधन से ना आये हो तो निचे शहर से ही आपको आसानी से कम दर पर कई ऑटो एवं कैब मिल जायेंगे जो आपको आराम से किला घुमा देंगे।

ये दो स्तम्भ हैं यहाँ की मुख्य पहचान :

चित्तौड़गढ़ किले पर जो जगह पर्यटकों को सबसे ज्यादा लुभाती हैं वह हैं -विजय स्तम्भ।1448ई में महाराणा कुम्भा द्वारा बनाया गया यह 9 मंजिला एवं करीब 120 फ़ीट ऊँचा हैं। आप टिकट लेकर इसमें सबसे ऊपर तक जा सकते हैं।यह स्तम्भ करीब 10 फ़ीट ऊँचे एक चबूतरे पर बना हैं। एक छोटे से दरवाजे से प्रवेश कर ,आपको इसकी छोटी छोटी घूमावदार एवं संकरी सीढ़ियों से इसके ऊपर तक पहुंचना होता हैं। यहाँ इन करीब 150 सीढ़ियों पर चढ़ते हुए इसके अंदर छोटे से रास्ते में भी आप जगह जगह दीवारों पर बारीक नक्काशी,देवी देवताओं की मूर्तियां देखकर हैरान रह जायेंगे।शिखर पर पहुंच कर आप इसके चारो तरफ की खिड़कियों से किले के हवाई दृश्य का आनंद ले सकते हैं।महाराणा कुम्भा ने मालवा के महमूद खिलजी को पराजित करने की विजय स्मृति के रूप में इसका निर्माण करवाया था।विजय स्तम्भ ने अकेले ही राजस्थान को इस तरह पहचान दिलाई हैं कि राजस्थान पुलिस एवं राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के चिन्ह पर भी विजय स्तम्भ ही बना हुआ हैं।

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दूसरा एक और स्तम्भ जो यहाँ प्रसिद्द हैं वह हैं -कीर्ति स्तम्भ। यह स्तम्भ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी को समर्पित हैं ,जिसका निर्माण 12वी शताब्दी में एक जैन व्यापारी ने करवाया था। इसी स्तम्भ के पास एक खूबसूरत सा जैन मंदिर भी स्थित हैं। करीब 75 फ़ीट ऊँचा एवं 7 मंजिला या कीर्ति स्तम्भ ,दिखने में एक मर्तबा विजय स्तम्भ जैसा ही लगता हैं।केवल इसपर चढ़ाई पिछले कई साल से बंद हैं। पुरे स्तम्भ पर जैन धर्म से सम्बंधित कलाकृतिया उकेरी हुई हैं।विजय स्तम्भ से दूर यह स्तम्भ थोड़ा एकांत में बना हुआ हैं,यहाँ भीड़ कम रहती हैं।

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मछली के आकर के इस किले में हैं कई ऐतिहासिक मंदिर एवं महल :

इस किले में करीब 20 से ज्यादा मंदिर ,कुछ महल, जलाशय,स्मारक एवं एक संग्राहलय मौजूद हैं ,तो अगर आप ढंग से एक के चीज को देखेंगे तो इसमें एक पूरा दिन चाहिए।आप जब इस किले के मैप को देखेंगे तो पाएंगे कि यह एक विशाल मछली के आकार की तरह फैला हुआ हैं।किले की मुख्य जगहों में सबसे पहले बात करते हैं राणा कुम्भा महल की। उदयपुर की स्थापना करने वाले महाराणा उदय सिंह का जन्म इसी जगह हुआ। इतिहास की अन्य घटनाये जैसे मीराबाई का विषपान या पन्नाधाय के त्याग की घटनाये भी इसी महल से जुडी हुई हैं।यह जगह अब जीर्ण अवस्था में हैं।मुख्य रूप से अब इस जगह की दिवारे और खिड़किया ही बची हैं।

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विजयस्तम्भ से थोड़े ही दुरी पर बना कुम्भ श्याम मंदिर एवं मीरा बाई मंदिर यहाँ प्रसिद्ध हैं। कुम्भश्याम मंदिर का निर्माण महाराणा संग्राम ने अपनी पुत्रवधू मीराबाई जो कि कृष्ण भक्त थी ,उन्ही की विशेष विनती पर किया था। इसमें विष्णु भगवान् के वराह अवतार की पूजा होती हैं।मीरा मंदिर मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति काले पत्थर से निर्मित हैं।यह दोनों मंदिर इंडो-आर्य शैली से बने हुए बताये जाते हैं। मीरा मंदिर के सामने मीरा के गुरु रैदास की छतरी भी स्थित है।

विजयस्तम्भ के प्रवेश द्वार के सामने ही एक विशाल उद्यान बना हुआ हैं जिसमे कई छोटे मंदिर एवं स्मारक भी बने हुए हैं। जब आप इस उद्यान को पार करके सामने बने एक प्रवेश द्वार में जाओगे तो आपको कुछ सीढिया उतरने पर दिखाई देगा एक जलाशय -गोमुख। फोटोग्राफी के लिए यह जगह सबसे उचित हैं। ऊंचाई से आप इस जलाशय के साथ साथ किले की विशाल दिवार एवं हरी भरी पहाड़ी को एक फ्रेम में देख सकते हैं ,वही दूसरी दिशा में चित्तौड़गढ़ शहर का शानदार नजारा भी यहाँ से नजर आता हैं। आप सीढिया उतर कर जलाशय में बने शिवलिंग तक जा सकते हैं।शिवलिंग तक जाने के लिए आपको पानी में उतरना पड़ता हैं। अंदर एक जीर्ण अवस्था के गोमुख के साथ शिवपरिवार की मूर्तियां एवं विष्णु जी की मूर्ति बनी हुई हैं। एक भूमिगत जल स्त्रोत से शिवलिंग का अभिषेक यहाँ होता रहता हैं। यहाँ से आप इस जलाशय की मछलियों कों दाना भी डाल सकते हैं।

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विजयस्तम्भ से एक रास्ता जाता हैं जोहर स्थल की ओर ,जहाँ जोहर की घटनाये हुई हैं। जोहर के बारे में इसी आर्टिकल में आगे और भी जानकारी शामिल हैं।किला हर समय सैलानियों से आबाद रहता हैं। कई विदेशी सैलानी यहाँ गाइड के साथ हर एक जगह की जानकारी लेते ,और उन सैलानियों के साथ हमारे यहाँ के कुछ लोग फोटो लेते हुए दिख जाएंगे।किले पर ही कुछ रिसॉर्ट्स भी बने हैं ,जहाँ आप राजस्थानी डिश जैसे दाल बाटी चूरमा या गट्टे की सब्जी ,बाजरे की रोटी का आनंद ले सकते हैं।

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किले में कुछ और भी देखने योग्य मंदिर हैं ,जहाँ हर समय पर्यटकों की भीड़ रहती हैं वे हैं -समिधेश्वर मन्दिर एवं कालिका माता मंदिर। समधिश्वर मंदिर ,गोमुख के पास ही स्थित हैं। तीन प्रवेशद्वारों से युक्त इस मंदिर में विशाल गर्भ गृह है| मंदिर के गर्भगृह में शिव जी की विशाल त्रिमुखी मूर्ति स्थापित है |यह मूर्ति वाकई में अन्य शिव मंदिर की मूर्तियों से अलग हैं। यहाँ मुख्य द्वार के सामने नंदी विराजित है| कालिका मंदिर मुख्य रूप से एक सूर्य मंदिर था जिन्हे आक्रांताओं ने तोड़ दिया था। बाद में महाराजा सज्जन सिंह ने यहाँ कालिका माता की मूर्ति स्थापित कर इस मंदिर का जिर्णोद्धार किया। किले पर कई जैन मंदिर भी हैं। किले के सभी मंदिर अपनी स्थापत्य कला ,बारीकियां एवं जटिलता के लिए जाने जाते हैं।

रानी पद्मावती महल और संग्राहलय से जानो राजस्थान के शौर्य एवं बलिदान की गाथाये :

कालिका मंदिर से कुछ ही कदम आगे चलने पर एक तालाब के बीचोबीच एक महल दिखाई देगा। कुछ साल पहले आई पद्द्मावत फिल्म के विवाद के कारण यह महल और ज्यादा प्रसिद्द हो गया।यह महल हैं -रानी पद्मिनी का महल।माना जाता हैं यही वो जगह हैं जहाँ 'राणा रतनसिंह' की रूपवती रानी ,'रानी पद्मावती' (पद्मिनी) का प्रतिबिम्ब खिलजी ने देखा और उसे पाने की कोशिश में इस किले पर चढ़ाई कर दी।युद्ध में राणा रतनसिंह को पराजित कर खिलजी ,रानी पद्मावती को अपने साथ ले जाना चाहता था।यह युद्ध खिलजी जीत गया ,तब रानी ने जोहर प्रथा से अग्नि में खुद का बलिदान कर प्राण त्याग दिए।

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मेवाड़ के शौर्य एवं बलिदान की सभी कहानिया आपको यहाँ के फ़तेह प्रकाश पैलेस म्यूजियम में मिल जाएगी। यहाँ मध्ययुगीन अस्त्र शस्त्रों, मूर्तियों, कलाओं और लोकजीवन में काम आने वाली प्राचीन वस्तुओं का संग्रहण किया हुआ हैं।यह 2 मंजिला भवन किले में प्रवेश होते ही काफी दूर से दिखाई देने लगता हैं।यहाँ पुरातत्व सामग्री ,प्रतिमाये ,सिक्के ,शस्त्र , तस्वीरें आदि अलग अलग कक्षों में देखने को मिलेंगे।मेवाड़ के राजाओं की तस्वीरों के साथ उनसे जुडी घटनाएं भी यहाँ पढ़ने को मिलती हैं।

तीन बार यहाँ हुई हैं जौहर/सामूहिक आत्मदाह की घटनाएं :

चित्तौड़गढ़ किले पर सबसे घातक हमले 3 बार हुए ,जिनकी वजह से हज़ारो वीरांगनाओं ने यहाँ तीन अलग अलग काल में जोहर कर अपने प्राण त्याग दिए। जिसमे अलाउद्दीन खिलजी जैसे क्रूर आक्रांता का हमला और रानी पद्मिनी का जोहर एक हैं ,जिसमे अपनी मर्यादा एवं स्वाभिमान के खातिर विजय स्तंभ के पास रानी पद्मिनी के साथ करीब 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह किया।इस तरह अलाउद्दीन खिलजी की रानी पद्मावती को पाने की चाहत कभी पूरी नहीं हो सकी। यह घटना 1303 ई. की मानी जाती हैं।

एक और हमला यहाँ 1535 ई. में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने किया और किले पर अपना अधिकार जमा लिया।तब अपने राज्य की रक्षा के लिए रानी कर्णावती ने उस समय दिल्ली के शासक हुमायूं को राखी भेजकर मदद मांगी लेकिन माना जाता हैं कि हुमांयू की मदद समय पर न मिल सकी। परन्तु इधर रानी ने दुश्मन सेना की अधीनता स्वीकार नहीं की और मेवाड़ की आन बान शान की रक्षा के लिए करीब 13 हजार रानियों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह कर दिया।

मुगल आक्रांता अकबर ने 1567 ई. में चित्तौड़गढ़ किले पर हमला कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया तो राजा उदय सिंह यहाँ से पलायन कर गए और 'उदयपुर' की स्थापना की और चित्तौड़गढ़ की रक्षा का जिम्मा 'जयमल' और 'पत्ता' को सौंप दिया। अकबर ने यहाँ अधिकार कर इस किले को जमकर लूटा और नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की।जयमल और पत्ता दोनों ने अलग अलग समय पर अकबर का मुकाबला किया परन्तु दोनों ही युद्ध में शहीद हो गए। जिसके बाद पत्ता की पत्नी रानी फूल कंवर ने हजारों रानियों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह कर लिया।

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तो इस तरह मेवाड़ के त्याग एवं बलिदान की कई गाथाये इस किले से जुडी हुई हैं। पन्नाधाय की स्वामिभक्ति की अमरगाथा कौन नहीं जानता हैं ,वो घटना भी यही से जुडी हैं।मेवाड़ की ये और ऐसी अनेक अमर गाथाये आप रोबोटिक रूप में 'प्रताप गौरव केंद्र ,उदयपुर ' में भी देख सकते हैं।

पूरे किले में आपको हर जगह रग बिरंगी राजस्थानी कपड़ों की दुकानें मिलेंगी, जिनमें अधिकतर रंगीन ओढ़नियाँ होती हैं।यहाँ पारम्परिक वेशभूषा में ऊंट पर बैठ कर फोटो खिचाते कई सैलानी दिख जाएंगे।यह किला इतना फैला हुआ हैं कि पैदल घूमते हुए थकावट आ जाती हैं तो अगर आपके पास खुद का साधन यहाँ ना हो तो आप ऑटो में यहाँ घूमे ,तो हर एक चीज को आप एक दिन में देख पाएंगे।लिखने को तो बहुत कुछ हैं यहाँ के बारे में ,पर अब लेख काफी लम्बा हो जाएगा।

कैसे पहुंचे : यहाँ से सबसे नजदीक हवाई अड्डा उदयपुर हैं ,जहाँ से आसानी से कई साधन चित्तौडगढ़ के लिए मिल जाते हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन चित्तौडगढ़ जंक्शन हैं।

अन्य नजदीकी पर्यटक स्थल :सांवलिया जी तीर्थ स्थल ,मेनाल वॉटरफॉल ,उदयपुर।

धन्यवाद

-ऋषभ भरावा (लेखक ,पुस्तक-चलो चले कैलाश)

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