चांपानेर- पावागढ़ गुजरात राज्य में वडोदरा शहर से 45 किलोमीटर दूर है| यह ईतिहासिक जगह यूनैसको वर्ल्ड हैरीटेज साईट में शामिल हैं| यूनैसको वर्ल्ड हैरीटेज साईट सूची में चांपानेर- पावागढ़ को 2004 में शामिल किया गया था| चांपानेर पावागढ़ में पहाड़, खूबसूरत मस्जिद और कालिका मंदिर आदि देखने लायक है| चांपानेर पावागढ़ का ईतिहास बहुत पुराना है| चौथी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक इस जगह पर मैत्रिक राजाओं का शासन था| गुजरात के सुलतान महमूद बेगढ़ा ने चांपानेर पर हमला किया और यहाँ के शासक पटाई रावल को 1484 ईसवीं में हरा दिया| महमूद बेगढ़ा ने चांपानेर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया और इसका नाम बदलकर मुहम्मदाबाद रख दिया| गुजराती भाषा में बे का अर्थ होता है दो और गढ़ का अर्थ होता है किला| महमूद बेगढ़ा ने गुजरात के दो सबसे मजबूत किले पावागढ़ और जूनागढ़ को जीत लिया था| इस वजह से उसका नाम महमूद बेगढ़ा के नाम से मशहूर हो गया| चांपानेर के नाम के बारे में कहा जाता है यहाँ के पहाड़ चंपक के फूलों की तरह हलके पीले रंग के दिखाई देते हैं और उसमें थोड़ी थोड़ी लाल रंग की आग जैसी लाली दिखती है| चंपक के फूलों जैसे रंग की वजह से जगह का चांपानेर रख दिया है| वैसे चांपानेर के नाम के पीछे और भी बहुत सारी कहानियों को जोड़ा जाता है| पावागढ़ का अर्थ है पवन का किला | महमूद बेगढ़ा ने चांपानेर में बहुत सारी मस्जिदों का निर्माण किया है| समय के साथ साथ चांपानेर की चमक कम हो गई| चांपानेर से बदलकर गुजरात की राजधानी अहमदाबाद हो गई| अभी भी ईतिहासिक दृष्टि से चांपानेर में बहुत सारे स्मारक है जो देखने लायक है| इस पोस्ट में माध्यम से चांपानेर के बारे में जानेंगे|
चांपानेर पहुंचना - पंजाब में अपने घर से ट्रेन पकड़ कर अहमदाबाद के कालूपुर रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया| अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से आटो लेकर मैं अहमदाबाद के सबसे बड़े बस स्टैंड गीता मंदिर बस अड्डे पर आ गया| बस अड्डे के पास मैंने दोपहर का खाना खाकर बस अड्डे में चांपानेर पावागढ़ की सीधी बस के बारे में पता किया| दस मिनट इंतजार करने के बाद मुझे अहमदाबाद बस अड्डे पर चांपानेर पावागढ़ जाने के लिए गुजरात रोडवेज की सरकारी बस मिल गई| थोड़ी देर बाद बस अहमदाबाद शहर की भीड़ भरी सड़कों पर चलने के बाद अहमदाबाद- वडोदरा- मुंबई हाईवे पर दौड़ने लगी| यह हाईवे पर शानदार बना हुआ है| मैं कानों में हैंड फोन लगाकर पंजाबी गाने सुनता हुआ सफर का मज़ा ले रहा था| बस आनंद शहर को बाईपास करते हुए गुजरात के तीसरे बड़े शहर वडोदरा पहुंच जाती है| वडोदरा में दो तीन जगहों पर सवारियों को उतारकर वडोदरा के बस अड्डे पर जा रुकती है| कुछ देर वडोदरा में रुकने के बाद बस चांपानेर की ओर बढ़ने लग जाती है| लगभग साढ़े तीन घंटे के सुहाने सफर के बाद मैं शाम के सात बजे तक चांपानेर पावागढ़ बस अड्डे पर आ जाता हूँ| चांपानेर में उतरकर सबसे पहले मैं रात रुकने के लिए रुम ढूंढने के लिए निकल पड़ता हूँ| दो तीन जगह पर पता किया पर अकेले इंसान को कमरा नहीं मिल रहा था| आखिरकार चांपानेर निवास नामक होटल में मुझे रुम मिल जाता है| मैं मूंह हाथ थोकर थोड़ा आराम करने के बाद आठ बजे के बाद चांपानेर में डिनर करने के लिए चल पड़ता हूँ| एक होटल पर 150 रुपये में पंजाबी थाली खाकर मैं वापस अपने रुम में आ जाता हूँ| चांपानेर पावागढ़ में मोबाइल का नैटवर्क थोड़ा कम था |रात को जल्दी ही गुड नाईट कहकर मैं सो जाता हूँ|
अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर मैं 7 बजे ही चांपानेर से चल पड़ा| सबसे पहले मुझे पावागढ़ के पहाड़ की चोटी पर बने हुए कालिका माता मंदिर के दर्शन करने थे| चांपानेर शहर पावागढ़ के पहाड़ की तलहटी में बसा हुआ है| हिन्दू मान्यता के अनुसार पावागढ़ के पहाड़ का निर्माण माता सती के पैर की ऊंगली से हुआ था| ऐसा माना जाता है कि माता सती के पैर की ऊंगली यहाँ गिरी थी इसलिए इस जगह को शक्तिपीठ भी माना जाता है| हर साल हजारों श्रदालु कालिका माता मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं|
मैं सुबह चांपानेर से शेयर टैक्सी में बैठकर पावागढ़ पहाड़ पर पहुँच गया| कालिका माता मंदिर तक गाड़ी नहीं जाती| आगे आपको चढ़ाई चढ़ कर या फिर रोपवे से जाना होता है| रोपवे वाली लाईन बहुत लंबी थी तो मैंने पैदल चलकर ही कालिका माता मंदिर के दर्शन करने का मन बनाया| पावागढ़ पहाड़ की ऊंचाई तकरीबन 830 मीटर है| यहाँ आपको मंदिर तक पहुंचने के लिए 1800 सीढ़ियों को चढ़ना होगा जिसको आप एक घंटे में चढ़ सकते हो| मैंने धीरे धीरे चढ़ाई चढ़नी शुरू कर दी| जैसे जैसे सीढ़ियों को चढ़ते हुए ऊपर जा रहा था तो तलहटी में बसे चांपानेर के नजारे बहुत दिलकश दिखाई दे रहे थे| सूरज भी चढ़ गया था | हलकी हलकी धूप में चढ़ाई चढ़ने का अपना ही मजा आ रहा था| रास्ते में मैं दो तीन बार रुका | एक बार नींबू पानी पीने के लिए एक बार ब्रेकफास्ट करने के लिए| धीरे धीरे चलते चलते मैं पावागढ़ पहाड़ की चोटी पर बने हुए कालिका माता मंदिर के पास पहुंच गया| फिर मैंने कालिका माता मंदिर के दर्शन किए| कुछ देर मंदिर के आंगन में बैठा| वहाँ से दिखाई देते पावागढ़ के पहाड़ी क्षेत्र के खूबसूरत नजारे देखें| फिर मैं वापस उतरने के लिए चल पड़ा| उतरते उतरते रास्ते में एक जगह पर एक रास्ता माता भद्रकाली के मंदिर की ओर जाता है| खूबसूरत रास्ते पर चलते चलते मैं भद्रकाली मंदिर पहुंच गया| मंदिर के दर्शन किए और वापस नीचे उतरने लगा| जलदी ही मैं पावागढ़ की पार्किंग के पास पहुंच गया जहाँ से शेयर टैक्सी से मैं बैठ कर वापस चांपानेर आ गया|
जामी मस्जिद चांपानेर
चांपानेर का नाम यूनैसको वर्ल्ड हैरीटेज साईट में शामिल हैं| चांपानेर में बहुत सारी मस्जिदें है जो देखने लायक है जैसे जामी मस्जिद, केवड़ा मस्जिद, नगीना मस्जिद, शहर की मस्जिद आदि लेकिन इन सबमें से चांपानेर की जामी मस्जिद सबसे ज्यादा खूबसूरत है| अगर जामी मस्जिद के बारे में बात की जाए तो गुजरात में कुल तीन मस्जिद है जामी मस्जिद के नाम पर एक चांपानेर में, दूसरी अहमदाबाद में और तीसरी खंभात में| पैदल चलते चलते मैं चांपानेर की मशहूर जामी मस्जिद के बाहर पहुँच गया| 30 रुपये की टिकट लेकर मैं जामी मस्जिद के आंगन में आ गया| बाहर से देखने से भी जामी मस्जिद बहुत दिलकश लग रही थी| कुछ सीढ़ियों को चढ़कर एक चबूतरे पर जाकर मैंने जामी मस्जिद में प्रवेश किया| जामी मस्जिद का नाम गुजरात की सबसे खूबसूरत मस्जिद में आता है| मस्जिद के बिलकुल बीच में प्रवेश द्वार के दोनों साईड में दो मीनारें बनी हुई है| मस्जिद में कुल पांच गुंबद ( मोहराब) बने हुए हैं| मस्जिद के अंदर 172 पिलर बने हुए हैं| फिर मैंने मस्जिद के अंदर प्रवेश किया| ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण 1508-09 ईसवीं में हुआ| मस्जिद की कलाकारी अद्भुत है| मस्जिद की छत पर भी खूबसूरत मीनाकारी की हुई है| मस्जिद की पिछली दीवार में पत्थर की जालियों को बनाया गया है जो खिड़की का काम करती है| कुछ देर जामी मस्जिद की खूबसूरती को निहारने के बाद मैं आगे बढ़ गया| अगर आप चांपानेर यूनैसको वर्ल्ड हैरीटेज साईट को देखना चाहते हैं तो जामी मस्जिद जरूर देखना|
केवादा मस्जिद चांपानेर
केवादा मस्जिद चांपानेर
चांपानेर की जामी मस्जिद को देखने के बाद मैं पैदल चलते हुए ही चांपानेर की केवादा मस्जिद को देखने के लिए चल पड़ा| केवादा मस्जिद में सुरक्षा गार्ड के बिना कोई भी टूरिस्ट नहीं था| एक खूबसूरत गार्डन जिसमें घास लगा हुआ था के बीच में केवादा मस्जिद बनी हुई है| इस मस्जिद में भी दो मीनारें बनी हुई है| इस मस्जिद के सामने एक मकबरे की तरह स्मारक बना हुआ है| यह मस्जिद भी चांपानेर की अद्भुत मीनाकारी कला का नमूना है| मैंने इस मस्जिद को आराम से देखा| सुरक्षा गार्ड के पास बैठकर मैंने चांपानेर के बारे में थोड़ी बातचीत की| सुरक्षा गार्ड ने ही मेरी तस्वीर खींच दी केवादा मस्जिद के सामने| फिर मैं यहाँ से विदा लेकर नगीना मस्जिद की ओर चल पड़ा|
नगीना मस्जिद चांपानेर
केवादा मस्जिद देखने के बाद मैं गाँव के बाहर जंगल में पैदल रास्ते पर चलते हुए नगीना मस्जिद पर पहुँच गया| दोपहर का समय था| उस समय नगीना मस्जिद में कोई भी नहीं था| मैंने मस्जिद के प्रवेश के लिए लोहे का गेट खोला और मस्जिद के आंगन में प्रवेश किया| नगीना मस्जिद में खूबसूरत झरोखे बने हुए हैं| नगीना मस्जिद में कुल तीन महराब (गुंबद) बने हुए हैं| नगीना मस्जिद में भी मीनारें थी लेकिन वह अभी आधी टूट चुकी है| नगीना मस्जिद के आंगन में एक खूबसूरत स्मारक बना हुआ है जिसके ऊपर खूबसूरत कलाकारी की हुई है|
शहर की मस्जिद चांपानेर
नगीना मस्जिद देखने के बाद मैं वापस चांपानेर गाँव में आकर शहर की मस्जिद देखने के लिए पहुँच गया| शहर की मस्जिद में भी पांच मोहताज बने हुए हैं| इस मस्जिद का निर्माण राजा के परिवार लिए किया था| यह मस्जिद भी बहुत दिलकश है| यहाँ भी 30 रुपये की टिकट लेनी पड़ती है| शहर की मस्जिद में मुझे एक गुजराती फैमिली मिली जिसने मेरे साथ चांपानेर के बारे में काफी बातचीत की| शहर की मस्जिद को देखने के बाद मैं चांपानेर के बस अड्डे पर पहुँच गया| वहाँ से बस लेकर मैं वडोदरा के लिए निकल गया|