चकराता: यहाँ सिर्फ मंज़िल ही नहीं, रास्ता भी बेहद खूबसूरत है!

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Photo of चकराता: यहाँ सिर्फ मंज़िल ही नहीं, रास्ता भी बेहद खूबसूरत है! by Rishabh Dev

मैं जब भी पहाड़ों की ओर जाता हूँ तो हर बार कुछ अलग पाता हूँ। मैं कभी नहीं कह पाता कि पहाड़ों मे कहीं भी चले जाओ सब एक जैसा। ये सब वैसे ही जैसे मौसम, कभी धूप है तो कभी छाँव, बस ऐसा ही कुछ पहाड़ है। 

मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं पहाड़ में कहाँ जाना चाहिए, वो उस जगह के बारे में पूछते हैं। मैं नहीं बता पाता, उन लोगों को पता ही नहीं है कि पहाड़ में मंजिल उतनी खूबसूरत नहीं होती, जितना कि सफर। 

ऐसी ही खूबसूरती और कई रंगों को दिखाता है चकराता का सफर। यहाँ देवदार का सुंदर जंगल है, घुमावदार रास्ते और इन खूबसूरत रास्तों के चारों तरफ फैले थे, हरियाली से लदे पहाड़।

श्रेय: निपुन सोहनलाल

Photo of चकराता, Uttarakhand, India by Rishabh Dev

मौसम बहुत सुहाना था और उसी सुहाने मौसम में हम निकल पड़े चकराता की ओर। चकराता देहरादून से 90 कि.मी. दूर है और इस दूरी को हम बाइक से तय करने वाले थे । 

मैं दूसरी बार रोड ट्रिप पर पर जा रहा था लेकिन यहाँ जाने का उत्साह बहुत ज्यादा था। मुझे चकराता के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इतना पता था कि हिल स्टेशन है तो खूबसूरत ज़रूर होगा। सुबह का सुहानापन अपने सुरूर में था और उसी के फाहे में हम आगे बढ़ते जा रहे थे। देहरादून से निकलने के बाद भी वो कुछ देर बना ही रहता है।

देहरादून से पहाड़ों तक पहुँचने में एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। जब हम इस रास्ते को तय कर लेते हैं तो हम जहाँ पहुँचते हैं वो जगह सबसे खूबसूरत होती है। देहरादून से निकलने पर सबसे सुद्धौवाला मिलता है। 

थोड़ा आगे बड़े तो सेलाकुई आया। हम देहरादून शहर से बाहर थे लेकिन उसका इंडस्ट्रियल क्षेत्र अब भी बना हुआ था। उत्तराखंड के तीन बड़े इंडस्ट्रियल क्षेत्र हैं, देहरादून, हरिद्वार और रूद्रपुर। विकास पैदा करने वाली ऐसी ही एक जगह से हम गुज़र रहे थे, यहीं वो होटल भी मिला जहाँ भारतीय क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी की शादी हुई थी।

मैदान के बाद- खूबसूरती

Photo of विकासनगर, Uttarakhand, India by Rishabh Dev

देहरादून से 40 किमी. दूर है विकासनगर। विकासनगर भी देहराूदन की तरह ही एक विकसित शहर है। बड़ी-बड़ी दुकानें, बहुत सारे चौराहे, होटल और रोड पर लगता जमा ये बताने के लिए काफी है कि ये बड़ा शहर है। विकासनगर से आगे चले तो मिला कालसी। कालसी में हमने वो नज़ारा देखा जिसके लिए हमें रूकना ही पड़ा। किसान अपने खेत में हल चला रहा था, ग्रामीण भारत का ये नज़ारा बेहद खूबसूरत था। कालसी आखिरी मैदानी जगह थी, अब हम पहाड़ों की गोद में आ चुके थे।

जगहों के साथ-साथ मौसम भी अपनी करवट बदल रहा था, कभी धूप हो रही थी तो कभी घने बादल। पहाड़ के आते ही सिर्फ मौसम नहीं बदल देता, यहाँ आना वाले लोग भी बदल जाते हैं। इन हरे-भरे पहाड़ को देखकर हम खुश होने लगते है, खुली आँखों से इस खूबसूरती को देखना एक सुंदर एहसास है। जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं खूबसूरती अपने परवान पर होती है। हर कोई सुंदरता की इसी चौखट पर आना चाहता है। उत्तराखंड में दो मंडल है गढ़वाल और कुमाऊँ। गढ़वाल के अंदर ही एक संस्कृति आती है, जौनसार। जौनसार के बारे में कम लोग जानते हैं लेकिन जौनसारी कल्चर सबसे रिच कल्चर माना जाता है, यहाँ के लोग आज भी अपनी परंपराओं को भूले नहीं है। उसी खूबसरत जौनसार में हम चले जा रहे थे।

हरियाली से लदे पहाड़

हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, पहाड़ हरियाली से लदते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि बुग्यालों की हरियाली को खड़े पहाड़ में पलट दिया हो। पहाड़ की नीचाई में कोई छोटी नदी बह रही थी, जिसे पहाड़ों में गदेरो कहते हैं। घुमावदार रास्ते और घुमावदार होते जा रहे थे और खूबसूरत भी। रास्ते में कुछ छोटे-छोटे गाँव मिले, इस समय हर जगह खेती हो रही थी। देखकर लग रहा था कि जौनसार में खूब खेती होती है खासकर जब सड़क किनारे टमाटर ही टमाटर दिख रहे हों।

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हम साहिया और हय्या को पार कर चुके थे। अभी भी चकराता काफी दूर था लेकिन हमारे पास में थी तो ये खूबसूरती, जिसको बहुत दिनों बाद देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि अपनापन शहरों में नहीं, पहाड़ों में है। 

लेकिन पहाड़ों में रहने का मतलब है मुश्किल हालातों का सामना करना। पहाड़ों में अपनी गाड़ी से आकर कुछ घंटे बिताने के बाद वो जगह खूबसूरत तो लगती है लेकिन आसान नहीं है। पहाड़ ‘दूर के ढोल के सुहाने’ की तरह है यहाँ खूबसूरती तो है लेकिन यहाँ के लोगों के लिए नहीं।

नज़र हटी, दुर्घटना घटी

रास्ते में एक जगह खूब भीड़ थी। आगे बढ़े तो एंबुलेंस और पुलिस भी खड़े थे, कुछ लोग रस्सी खींच रहे थे। कुछ दूर जाकर हम भी रूक गए, वहीं खड़े लोगों ने बताया एक गाड़ी रात को खाई में गिर गई थी और अब निकालने की कोशिश की जा रही है। 

पहाड़ की ये भी एक सच्चाई है, थोड़ी-सी भी कोताही सीधे खाई में पहुँचा देती है। थोड़ी देर उस खतरनाक दृश्य को देखा और आगे बढ़ गए। हम फिर से पहाड़ों के घुमावदार रास्ते और मोड़ों में गुम होने लगे। मुझे बार-बार पलटकर देखना पसंद है, कुछ छूट गया हो तो पूरा हो जायेगा।

हम जैसे-जैसे आगे जा रहे थे दूर तलक दिखने वाले रास्ते ऐसे लग रहे थे जैसे खेतों में पतली सी पगडंडी। रास्ते में कुछ खतरनाक पहाड़ भी मिले जहँ बारिश के मौसम में लैंसलाइडिंग होती है और रास्ते बंद हो जाते हैं। 

अब हम चकराता से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर थे, हम फिर से एक जगह रूके और सड़क किनारे लगे पहाड़ी किलमोड़ी तोड़कर खाई और पास के ही रिसोर्ट को देखने लगे। इससे खूबसूरत लोकेशन क्या होगी? चारों तरफ पहाड़, पास में ही चकराता और आसपास होती खेती। यहाँ टमाटर की लड़ी देखी जा सकती हैं। इस खूबसूरत रास्तों के बीच से हमने एक और दौड़ लगाई और पहुँच गए चकराता हिल स्टेशन।

देहरादून से चकराता हम कुछ घंटों में पहुँच गए थे। यहाँ तक आने का रास्ता भी बेहद खूबसूरत था। यहाँ की हवा में जादू था जो शहर के शोर को हम से अलग कर रही थी। चकराता हिल स्टेशन पहुँचकर देखा कि सड़कें पूरी तरह से खाली थीं और कुछ दुकानें सामने दिख रहीं थीं। 

सामने कुछ आर्मी वाले दिख रहे थे, जिससे पता लग चुका था कि ये आर्मी का इलाका है। चकराता के आज में जाने से पहले इतिहास में चलना चाहिए। इतिहास जाने बिना यात्राएँ अधूरी रह जाती हैं। 

चकराता समुद्र तल से 7,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। अंग्रेजों की सेना गर्मियों में इस जगह को अपना बेस बनाते थे। तब चकराता की स्थापना कर्नल ह्यूम और उनके कुछ सहयोगियों ने की थी। बाद में भारत आज़ाद हो गया और ये जगह भारतीय सेना का बेस कैंप बन गया। यहाँ सेना के जवान ट्रेनिंग करते हैं शायद इसलिए इस खूबसूरत जगह पर किसी भी विदेशी नागरिक को आने की अनुमति नहीं है। अब आज में आते हैं।

टाइगर फाल तक का सफर

चकराता की खूबसूरती मेरे अंदर कुछ ख्याल भर रही थी। चकराता हिल स्टेशन भीड़ भाड़ वाली जगह नहीं है, अगर आप बेहद शांत और खूबसूरत जगह की खोज में हैं तो मेरे ख्याल से आपको चकराता ज़रूर जाना चाहिए। हमें यहाँ की कुछ बेहतरीन जगहों पर जाना था लेकिन दिक्कत ये थी सभी जगहें एक-दूसरे से बहुत दूर थीं। देववन, टाईगर फॉल, कनासर और लाखामंडल में से किसी एक को चुनना था। जिसमें से हमने चुना टाइगर फॉल। टाइगर फॉल, चकराता से 30 कि.मी. की दूरी पर था। मौसम साफ था रास्ते में ज़रूर कुछ बूंदा-बांदी हुई थी। बारिश की उन फुहार से मौसम और ये पहाड़ दोनों खूबसूरत लगने लगे थे।

हम एक बार फिर से यात्रा पर थे। इस बार सफर चकराता हिल स्टेशन से टाइगर फाॅल तक का था। ये सफर भी खूबसूरत नज़ारों से भरा हुआ था। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और उन पर तैरते सफेद बादल, ये नज़ारा देखकर तो कोई भी खुशी से नहीं समायेगा। रास्ते में वो मुंडेर भी मिलती है जहाँ रूककर आप कुछ देर ठहरना चाहते हैं और इस जगह को अनुभव करना चाहते हैं। पहाड़ों में घुमावदार रास्तों पर मोड़ बहुत हैं। हर मोड़ पर मुझे अपना कुछ जिया हुआ दिखता है। मैं इन दृश्यों को समेटने की कोशिश में था। गाड़ी भागी जा रही थी लेकिन मैं उस भागे हुए रास्ते में अपने लिए कुछ जगह ढूँढ ही ले रहा था। वैसे भी सफर में पूरा कोई भी नहीं पा पाता है कुछ न कुछ छूट जाता है। ये छूटना भी सफर की एक खूबसूरती है।

खूबसूरत नज़ारों से भरी ये घाटी

हरे-भरे पहाड़ों के बीच कुछ घर थे जो देखने में बेहद खूबसूरत लग रहे थे। शहर में रहने वाला हर शख्स इन घरों को देखकर सोचता है कि काश! उसका भी घर इन पहाड़ों के बीच होता। अगर शहर के लोगों को यहाँ की समस्याओं के बारे में पता होता तो वो ऐसा कभी नहीं कहते। पहाड़ में एक कहावत है, पहाड़ का पानी यहाँ के लोगों के काम नहीं आता। वैसे ही पहाड़ की खूबसूरती भी यहाँ के लोगों के लिए नहीं है। लेकिन हम तो कुछ दिन के लिए यहाँ की खूबसूरती को देखते हैं और वही खूबसूरती को लेकर चले जाते हैं। हम कई किलोमीटर चल चुके थे, धूप अब भी निकली हुई थी लेकिन ये धूप सुकून वाली थी। इसमें गर्मी का थोड़ा-सा भी एहसास नहीं था। हम नीचे थे और दूर तलक पहाड़ और बस पहाड़ थे।

हम रास्ते में कई जगह रूक रहे थे और इसकी वजह थी यहाँ की सुंदरता। खूबसूरती की कोई परिभाषा नहीं होती लेकिन मेरे हिसाब से जिस जगह पर आपके कदम रूक जाएँ, वही खूबसूरती है। वहाँ बैठना भी अच्छा लगता है और पसरना भी, हम दोनों ही कर रहे थे। यहाँ की हरियाली देखकर कोई भी मोहित हो जाए। पहाड़ आसमानों से बातें कर रहे थे। कुछ आगे बढ़े तो एक बहुत बड़ा बोर्ड दिखा। जिस पर लिखा हुआ था, वेलकम टू टाइगर फॉल।

अब मौसम ने भी करवट ले ली थी। कुछ देर पहले जहाँ बहुत तेज धूप थी, अब चारों तरफ अंधेरा छाने लगा था। हम कुछ देर बाद ऐसी जगह पहुँचे जहाँ से टाइगर फाॅल की दूरी 2-3 कि.मी. ही था। यहाँ से जाने के दो रास्ते थे एक अपनी गाड़ी से और दूसरा पैदल। मैं पैदल जाना चाहता था लेकिन मेरे साथी गाड़ी से जाने को कह रहे थे। हम गाड़ी से ही आगे बढ़ चले। थोड़ा ही आगे बढ़े तो अचानक तेज़ बारिश होने लगी, बारिश इतनी तेज़ थी कि छुपने की जगह ढूढ़ने पड़ी। सामने लकड़ी का एक छोटा-सा घर दिखा, हम वहीं रूक गए। गेट खुला हुआ था अंदर एक बुजुर्ग व्यक्ति था जो सब्जियों को बोरे में भर रहा था। उस शख्स ने बताया कि वो किसान है, इन आलू और टमाटर को विकासनगर की मंडी में भेजता है। जब तक बारिश होती रही, हम उनकी बातें सुनते रहे और वो हमारी। जब हम आने लगे तो कुछ आलू भी दिए, हमारे पास जगह तो थी नहीं लेकिन कुछ आलू ले लिए।

आसमां से गिरता पानी

ये ढलान वाला रास्ता बहुत संकरीला और गड्ढों वाला था, जिससे गाड़ी धीरे-धीरे ले जानी पड़ रही थी। कुछ देर में हम उस जगह पर पहुँच गए, जहाँ बहुत-सी गाड़ी खड़ी हुई थी। हमने भी वहीं गाड़ी रख दी और चल पड़े टाइगर फॉल को देखने। रास्ते में कुछ घर भी थे और खेत भी। धान के ये खेत पहाड़ों के बीच बेहद खूबसूरत लग रहे थे। आगे चले तो वो जगह आई जिसे देखने हम 30 कि.मी. नीचे आए थे, टाइगर फॉल। बहुत ऊँचाई से एक धार में गिरता पानी शोर कर रहा था। पानी की ये आवाज रौबीली थी जिसे देखने में हमें अपनी नज़र बहुत ऊपर ले जानी पड़ रही थी। यहाँ कुछ लोग नहा रहे थे तो कुछ लोग इस झरने को बस देख ही रहे थे। हम भी कुछ ही देर यहाँ ठहरे और वापस लौट आए। मुझे उस वाटरफॉल से खूबसूरत बहता हुआ पानी अच्छा लग रहा था, जो शांति से बहा जा रहा था।

बारिश फिर से शुरू हो गई थी और हम इससे बचने के लिए कुछ देर यहीं ठहर गए। बारिश रूकी तो हम चकराता की ओर वापस आने लगे। पहाड़ों से वापस लौटना सबसे कठिन काम होता है लेकिन मैं मन ही मन में वायदा करता हूँ कि वापस फिर आउँगा। रास्ते में जो सीढ़ीदार खेत दिख रहे थे वो इस सफर का सबसे खूबसूरत नज़ारा था। बादल से घिरे पहाड़ों से भी खूबसूरत। लौटते हुए शाम होने लगी थी लेकिन पहाड़ों की शाम तो सूरज ढलते ही हो जाती है और सूरज तो जाने कब का ढल चुका था। रास्ते में जब पहाड़ों के आसपास बादलों को देख रहा था। तो अपने आपको बड़ा खुशनसीब समझ रहा था और सोच रहा था कि ‘यही यथार्थ है’ जो मैं देख रहा हूँ।

चकराता से वापसी

हम चकराता पहुँचने ही वाले थे तभी सामने जो देखा उसे देखकर विश्वास नहीं हो रहा था। सामने धुंध ही धुंध थी, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये सब जुलाई में हो रहा है। जिस कोहरे को सर्दियों में देखते हैं, वो यहाँ जुलाई के महीने में था। कुछ घंटे पहले मैं इसी रास्ते से गुज़रा था तब यहाँ धुंध का नामोनिशान नहीं था। ये सब विचित्र था लेकिन देखकर खुशी हो रही थी। उसी धुंध को पार करते हुए हम चकराता पहुँच गए। अब हमें देहरादून के लिए निकलना था लेकिन एक बार फिर बारिश ने हमें रोक लिया। कुछ देर बाद बारिश रूकी और हम देहरादून की ओर चल दिए। जैसे-जैसे हम देहरादून के पास आ रहे थे बारिश और तेज होती जा रही थी। बारिश इतनी तेज थी कि वो थपेड़े की तरह लग रही थी। जब हम वापस देहरादून पहुँचे तो पूरी तरह से भीगे हुए थे लेकिन खुशी इस बात की थी कि इस छोटी-सी यात्रा ने कई मोड़ लिए और सफर खूबसूरत हो गया।

चकराता को मैं पूरी तरह से नहीं देख पाया। बहुत कुछ छूट गया है, ये मेरे साथ हमेशा होता है। तमाम जगहों को देखने के बाद कुछ जगह रह ही जाती है, रह ही जानी चाहिए अगली बार के लिए। चकराता आने का मतलब है दो-तीन दिन का समय निकालना। अगली बार जब यहाँ आउँगा तो हर जगह को अच्छी तरह से नापूंगा। यहाँ के आसमान ने बहुत कुछ दिखाया था ये सब मेरे साथ पहली बार हुआ था। ऐसे ही कई और सफर पर जाने की तमन्ना है काफी पहाड़ों के बीच तो काफी जंगलों के बीच।

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