यह तो आप जानते ही होंगे कि हम जब भी कुछ कहते या सुनते हैं, उससे जुड़ी कोई न कोई स्मृति या तस्वीर हमारे ज़ेहन में अपने आप उभर आती है। इसलिए चर्चा जब दुनिया में मौजूद सात अजूबों की हो या फिर ज़िक्र चले मोहब्बत में बने अनूठे स्मारक का तो आगरा में यमुना किनारे बसे मुमताज महल की जादुई कलाकृति अपने आप आंखों के सामने उभर आती है।
देखिए, बात जब अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में ख्याति प्राप्त इमारत की हो तो उसके बारे में आम लोग भी बारीक से बारीक जानकारियां अपनी जेब में लिए घूमते हैं। लेकिन ताज महल की कहानी का एक ऐसा पहलू भी है जिससे ज़्यादातर लोग आज भी अनजान है। वह है ताज महल के आगरा में यमुना किनारे बनने की कहानी के पीछे का राज। अब सवाल तो उठता ही है ना कि वह क्या कारण था कि बेगम मुमताज की मौत तो होती है मध्य प्रेदश के बुराहनपुर में लेकिन उनकी याद में खूबसूरत स्मारक का निर्माण होता है उत्तर प्रदेश के आगरा में।
तो चलिए आज हम इस शाही स्मारक की कहानी पर पड़े सामयिक धूल को झाड़ इससे जुड़े सच को परत-दर-परत जानते हैं। तो कहानी शुरू होती है बुरहानपुर में हुए उस विद्रोह से जिसे दबाने के लिए सन् 1631 में शाहजहां वहां गए हुए थे। उस दौरान उनके साथ उनकी बेगम मुमताज भी थीं। उस समय बुरहानपुर मुगल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण भाग था। जो अब आजाद भारत के मध्यप्रदेश का हिस्सा है।
इतिहास के पन्नों पर अंकित जानकारी के मुताबिक इधर शाहजहां अपनी सल्तनत को लेकर उभर रहे विद्रोह को दबाने में लगे थे और उधर 17 जून 1631 को यह खबर आई कि मुमताज ने अपने 14वें बच्चे को जन्म देते वक्त दम तोड़ दिया है। मुमताज की मौत का शाहजहां पर गहरा असर पड़ा। उस समय तो ताप्ती नदी के किनारे स्थित आरामगाह में मुमताज के शव को दफना दिया गया। लेकिन शाहजहां की ख्वाहिश थी कि वह मुमताज की कब्र पर संगमरमर का एक भव्य मक़बरा बनाए।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि मुगल सम्राट अपने हर ख़्वाब को हकीकत में तब्दील करने में सक्षम थे। पर उस वक्त सबसे बड़ी समस्या यह थी कि संगमरमर की खान के लिए मशहूर राजस्थान में स्थित 'मकराना' यह मध्य प्रदेश के बुराहनपुर से करीब 900 किलोमीटर दूर था। इतना ही नहीं तो सबसे बड़ा पेंच जगह को लेकर भी था। ताप्ती नदी के जिस किनारे पर बने आरामगाह में मुमताज की कब्र थी। उस किनारे की पाट इतनी बड़ी नहीं थी कि चांदनी रात में वहां संगमरमर से बना खूबसूरत मकबरा दिखाई दे। इसलिए ईरान, मिस्र और इटली से आए बड़े शिल्पकारों ने बुरहानपुर में ताज महल बनाने से इनकार कर दिया।
शिल्पकारों ने शाहजहां को ताज महल के लिए नई जगह तलाशने का सुझाव दिया। इसके बाद बात जब मुमताज के शानदार स्मारक की जगह के लिए बुराहनपुर की बजाय किसी और स्थान को तलाशने की चली, तो सबकी नजरें आगरा में यमुना किनारे पर आकर एकदम से ठहरी गईं। और सोने पर सुहागा तो यह रहा कि संयोग से मुमताज का जन्म भी इसी शहर में हुआ था। फिर क्या था- शाहजहां के हुक्म पर साल 1662 में ही मुमताज की याद में संगमरमर से एक खूबसूरत मक़बरे के निर्माण कार्य की शुरूआत की गई। और जब यह प्रेम स्मारक बनकर तैयार हुआ तो इसकी खूबसूरती की एक झलक देख लोगों ने दांतो तले उंगलियां दबा ली। ऐसी खूबसूरती जो 4 सदी बीत जाने के बावजूद जस की तस बरकरार है।
सनद रहे कि आगरा में ताजमहल के निर्माण कार्य की शुरूआत होने तक मुमताज की पहली कब्र बुरहानपुर के आरामगाह में ही रही। करीब 20 साल के लंबे समय के बाद जब मुमताज महल का काम पूरा हो गया तो मुमताज के शव को पुनः दफनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। बुरहानपुर से मुमताज के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया। कहा जाता है कि जुलूस पर उस समय करीब आठ करोड़ रुपए खर्च हुए थे। हालांकि दुर्भाग्य की बात यह है कि मुमताज की पहली कब्र रहा ताप्ती नदी किनारे बसा बुरहानपुर का वह आरामगाह आज एक खंडहर में तब्दील हो गया है।
अब अगर इस कहानी को पढ़ने के बाद आपके अंदर अपने सौंदर्य के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध ताजमहल से जुड़े इस ऐतिहासिक स्थल को करीब से देखने की उत्सुकता जाग गए हो, तो चलिए जान लेते हैं कि यहां तक आखिर पहुंचा कैसे जाए। महाराष्ट्र के बॉर्डर से सटा बुराहनपुर का इलाका मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 350 किमी दूरी पर स्थित है। अगर आप हवाई मार्ग के जरिए यहां पहुंचने की फिराक में हैं, तो फिर देश के किसी भी कोने से इंदौर एयरपोर्ट तक का सफर तय कर सकते हैं।
जो कि बुराहनपुर से करीब 160 किमी दूर है। ट्रेन से सफर करने वाले मुसाफिरों को इसके लिए बुराहनपुर रेलवे स्टेशन ही उतरना होगा। यहां से अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए आपको स्टेशन से करीब 6 किमी का सफर और तय करना होगा। और रही बात सड़क मार्ग की तो इस जगह के लिए आपको इंदौर, खंडवा, ओम्कारेश्वर, उज्जैन, भोपाल, भुसावल और जलगांव जैसे इलाकों से भी बस भी मिल जाएगी।
बाकी यहां पहुंचने के बाद आपके पास देखने के लिए खंडहर में तब्दील हो गया मुमताज का पहला मकबरा ही नहीं होगा। इसके अलावा भी बुराहनपुर के बगीचे में आपको कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतें मिल जाएंगी जिनके बरामदे बैठकर आप अतीत के साथ ढेर सारी बात कर सकते हैं। इनमें इस शहर की सबसे खूबसूरत इमारतों में शुमार जामा मस्जिद शामिल है। आप यहां शाही फोर्ट और असीरगढ़ फोर्ट के जरिए उस दौर की वस्तुकला जान और समझ सकते हैं। शाहजहां द्वारा ही उनकी एक दूसरी बेगम की याद में बनाए गए दो मंजिला मोती महल की खूबसूरती को भी निहारा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त मुगल और राजपूत दोस्ती की निशानी 'राजा जय सिंह की छतरी' भी बुराहनपुर आकर देखने लायक स्थल है। इसे औरंगजेब ने खुद अपनी सेना में कमांडर रहे राजा जय सिंह के सम्मान में बनवाया था। बुराहनपुर में ही आपको एक ऐसी इमारत देखने को मिल जाएगी, जिसे देखने के बाद ही शाहजहां में दिमाग में ताजमहल बनाने का ख्याल आया था। शाहनवाज खान की मौत के बाद साल 1622-23 में उतावली नदी के किनारे उसकी कब्र पर मकबरे का निर्माण कराया गया।
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