हम ऐसा अक्सर सुनते हैं कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। वाकई देश के अंदर आपको घूमना हो और विविध संस्कृति की खुशबू लेनी हो तो गाँवों का ही रुख करना चाहिए। मुझे तो जब कभी मौक़ा मिलता है, गाँवों की ओर निकल पड़ता हूँ। शहरी चहलकदमी से दूर, ग्रामीण वातावरण आज भी आपको एक स्थिरता देता है। इन जगहों पर आपको सोचने और जीवन को करीब से देखने का मौका मिलता है। पिछले दिनों बिहार और नेपाल के बॉर्डर इलाके में घूमते हुए मैं कई ऐसी जगहों पर गया, जो कि मेरे लिए एक बेहतरीन यात्रा अनुभव से कम नहीं है। चलिए आपको भी उस सफर पर ले चलता हूँ।
मधुबनी अपनी पेंटिंग और मधुर भाषा के लिए दुनियाभर में फेमस है। यहाँ का रेलवे स्टेशन दुनिया का सबसे बड़ा खुला प्रदर्शनी है जहाँ की दीवारों पर पेंटिंग ही पेंटिंग आपको देखने को मिलती है। इतिहास के पन्नों को खंगालते हुए आपको प्राचीन मिथिला क्षेत्र के मधुबनी में कई ऐतिहासिक महत्व वाली जगहों का पता चलता है, जिसमें उच्चैठ का अपनी खास जगह है।
उच्चैठ का इतिहास
मिथिला कभी ज्ञान-अनुसंधान का केन्द्र था, जहाँ ऋषि-मुनि तप किया करते थे। पुराणों के अनुसार, राजा जनक और माता सीता की ये धरती ना केवल दुनिया में अपनी समृद्धि के लिए जानी जाती थी बल्कि ज्ञान-परंपरा में भी इसका अपनी अलग जगह है। ऐसे ही एक विद्या केन्द्र से जुड़ी जगह के पास छिन्नमस्तिका माँ दुर्गा का मंदिर हुआ करता था। कहा जाता है कि संस्कृत के महान कवि कालिदास इसी विद्या केन्द्र में नौकर का काम करते थे। उन दिनों वे परम मूर्ख हुआ करते थे। हम सबने उनके बारे में अपनी पाठ्य पुस्तकों में पढ़ा ही है। उनके लिए दिलचस्प बात है कि वे जिस डाली पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। ऐसे निपट अज्ञानी को उच्चैठ स्थित भगवती के आशीर्वाद से ही परम ज्ञान की प्राप्ति हुई और वो आगे चलकर संस्कृत के ऐसे विद्वान हुए जिनका दुनिया आज भी लोहा मानती है।
बताया जाता है कि अपनी हिमालय की यात्रा के दौरान या फिर मिथिला की राजधानी जनकपुर जाते हुए कई पौराणिक महर्षि उच्चैठ होकर गुज़र चुके हैं। इनमें भगवान राम सहित महर्षि कपिल, कणाद, गौतम, जेमिनी, पुंडरिक, लोमस सहित कई ऋषि शामिल हैं। जिले के बेनीपट्टी अनुमंडल से 5 कि.मी. पर मौजूद उच्चैठ थुम्हानी नदी के किनारे है जहाँ 51 शक्तिपीठों में शामिल भगवती विराजमान हैं!
देवी की प्रतिमा है अद्भुत
दिलचस्प बात है कि किसी समय उच्चैठ में घना जंगल हुआ करता था। लिहाजा भगवती को वनदुर्गा भी कहते हैं। मंदिर में मौजूद प्रतिमा भी बेहद ख़ास है। बता दें कि काले रंग के पत्थर पर लगभग ढाई फीट ऊँची दुर्गा की प्रतिमा बेहद सलीके से बनाई हुई है। प्रतिमा में भगवती शंख, चक्र, गदा, कमल लिए हुए है और पैरो के पास मछली उकेरा गया है। माता का केवल धड़ ही दिखता है, सर नहीं है लिहाजा इन्हें छिन्नमस्तिका दुर्गा कहते हैं।
तंत्र-साधना के लिए है मशहूर
उच्चैठ दुर्गास्थान को शक्तिपीठों में गिना जाता है लिहाजा यहाँ तांत्रिक सिद्धियों के लिए भी आते हैं। मंदिर के पास जो तालाब है, उसके आसपास कभी शमसान हुआ करता था। आज भी तंत्र साधक यहाँ आकर तप करते हैं। लोगों की मानें तो इस जगह पर अदृश्य शक्तियों का निवास है जिसे आसानी से महसूस किया जा सकता है। कई देशी-विदेशी श्रद्धालु यहाँ पूजा करने आते हैं। नवरात्र के दौरान यहाँ की चहलपहल देखने लायक रहती है। ऐसे समय आपको तांत्रिक घूमते दिख जाएँगे।
कालिदास डीह आज भी है मौजूद
गुरुकुल शिक्षा अब भले ही ना हो लेकिन यहाँ आज भी एक स्कूल चलाया जा रहा है। यहीं कालिदास ने ना केवल ज्ञान का अर्जन किया था बल्कि यहाँ उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की थी। यहाँ आपको कालिदास से जुड़ी चित्र और मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। शहर की भागदौड़ से अलग यहाँ आपको शांति का आभास होता है। दिलचस्प बात है कि कालिदास डीह का मालिकाना अब भी कालिदास के नाम से ही दर्ज है। कालिदास स्थान और उच्चैठ भगवती को लेकर यहाँ हजारों भक्त व सैलानी आते रहते हैं। बिहार टूरिज्म का ये एक महत्वपूर्ण स्थल है लिहाजा सरकार इसकी देखरेख तो करती है, साथ ही कालिदास महोत्सव आदि का आयोजन भी यहाँ होता है।
जानकारी हो कि यहाँ से पास ही सीता जन्मस्थली सीतामढ़ी, नेपाल स्थित प्राचीन मिथिला की राजधानी जनकपुर जा सकते हैं। रास्ते में आप फुलहर, जहाँ सीता बगीचे में गौरीपूजन को आईं थी और राम मिले थे, भी जा सकते हैं। मधुबनी के अन्य आकर्षण स्थल हरिहर स्थान, भवानीपुर, सौराठ, कपिलेश्वर स्थान आदि भी जरूर देखने जाएँ।
आसपास आप जितना एक्सप्लोर करेंगे, आपको अचंभित करने वाली जगहें मिलेंगी जो प्राचीन ग्रंथों में लिखी हुई हैं। भारत के गाँव सैलानियों के स्वागत को हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसी यात्रा ना केवल किफायती होती हैं बल्कि ज्ञान बढ़ाने के लिए भी बहुत काम आती हैं।
कब और कैसे पहुँचें?
बरसात के समय यहाँ की यात्रा को टालें क्योंकि बाढ़ आने की संभावना रहती है। चूंकि गाँव का इलाका है तो आप अधिक गर्मी में भी ना जाएँ। अक्टूबर से लेकर मार्च तक का समय इस यात्रा के लिए परफेक्ट है।
ये चूंकि नेपाल बॉर्डर इलाका है, यहाँ आसपास कोई एयरपोर्ट नहीं है। नज़दीकी एयरपोर्ट 167 कि.मी. दूरी पर पटना में स्थित है। पटना से बस या टैक्सी आसानी से मधुबनी के लिए मिल जाती है। वहीं रेलमार्ग से देश के प्रमुख शहरों से ये जुड़ा हुआ है। आप मधुबनी या दरभंगा के लिए ट्रेन ले सकते हैं। वहाँ से बस या टैक्सी से उच्चैठ पहुँच सकते हैं। वहीं देश के प्रमुख शहरों से मधुबनी या दरभंगा बस से आ सकते हैं।
जिला मुख्यालय मधुबनी में आपको सुविधायुक्त सस्ते होटल मिलते हैं, जहाँ से आप उच्चैठ समेत दूसरी जगहों पर घूमने निकल सकते हैं। जंगल, पहाड़, बड़े शहर तो हम सब घूमने के लिए चुनते ही हैं, कभी गाँवों का भी दौरा कर लिया जाए!
आप भी अगर किसी ऐसी यात्रा के बारे में जानकारी और अनुभव रखते हैं तो हमारे साथ यहाँ जरूर शेयर करें!
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