देवकुंड वाटरफॉल: मॉनसून में महाराष्ट्र का सबसे खूबसूरत झरना

Tripoto
11th Jun 2022
Photo of देवकुंड वाटरफॉल: मॉनसून में महाराष्ट्र का सबसे खूबसूरत झरना by रोशन सास्तिक

देवकुंड। जैसा नाम वैसी जगह। जी हां, जैसे ही आप देवकुंड वाटरफॉल को देखते हैं, वैसे ही समझ आता है कि 'नाम में कुछ नहीं रखा' बोलने वाले लोग कितनी गलत समझ रखते हैं। क्योंकि इस वाटरफॉल की सबसे खूबसूरत यूएसपी ही झरने के पानी से तैयार हुआ एक ऐसा कुंड है, जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानों स्वयं देवता यहां स्नान करने आते हों। आपको बता दूं कि मॉनसून के आगमन साथ महाराष्ट्र का सह्याद्रि पर्वत बारिश के पानी के मिलन के बाद सोलह श्रृंगार कर खूबसूरती का अलग ही स्तर हासिल कर लेता है। और कुदरत की यही मेहरबानी रायगढ़ जिले में स्थित भीरा गांव पर भी होती है। जब बारिश के पानी से सरोबार होकर तमिनी घाट से बहता हुआ पानी एक मोड़ पर आकर करीब 2700 फ़ीट नीचे गिरता है और तब इसके गिरने से ही जन्म होता है देवकुंड वाटरफॉल का। और यहीं से कुंडलिका नदी का भी सफर शुरू होता है।

तो चलिए अब हम देवकुंड वाटरफॉल तक पहुंचने के लिए अपना सफर शुरू करते हैं। मुंबई से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवकुंड वाटरफॉल के लिए हम अपने घर कल्याण से सुबह करीब 5 बजे ही निकल गए। क्योंकि हम जानते थे कि सफर लंबा होने की वजह से इसमें टाइम लगने के साथ-साथ थकावट भी काफी होगी। इसलिए जितना जल्दी पहुंच जाए उतना ही ज्यादा बेहतर। एक लंबे अरसे से देवकुंड जाने का प्लान था और एक लंबे अरसे बाद यह प्लान सक्सेसफुल भी होने जा रहा था। तो इस बात से बेहद खुश मैं और गौरव दोनों ही पूरे उत्साह, उमंग, उल्लास से भरपूर होकर सफर का एन्जॉय करते हुए अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ते चले जा रहे थे।

सफर बेशक लंबा था; लेकिन रास्ते भर राह में ऐसे ऐसे नजारे नजर आते चले जा रहे थे कि पता ही नहीं चला कब हमने 150किलोमीटर लंबा सफर तय कर लिया। क्योंकि रास्ते भर हम कभी सड़क के दोनों तरफ फैले घास के हरे-भरे मैदानों को निहारते, कभी बारिश के पानी से मिलन के बाद एक अलग ही किस्म के रंग में रंग गए पहाड़ों पर निहाल हो जाते, कभी आसमान को इस ओर से उस ओर तक ढंककर हवा के साथ दौड़ते भागते बादलों की बीच-बीच में बरस जाने की बदमाशी एन्जॉय करते हुए एक पल को भी थकावट जैसी किसी चीज का एहसास ही नहीं हुआ। इसके ठीक उलट हर बीतते समय के साथ हमारी खुशी तो यह सोच-सोचकर बढ़ती जा रही थी कि अब बस कुछ और देर की ही बात है, फिर हम देवकुंड वाटरफॉल के दर्शन कर रहे होंगे।

सुबज 5 बजे घर से निकलने के बाद हम करीब 10 बजे देवकुंड वाटरफॉल के प्रवेशद्वार यानी भीरा गांव पहुंच गए। वीकेंड का दिन होने की वजह से यहां उस दिन भीड़ बहुत ज्यादा थी। नतीजतन एंट्री के लिए जरूरी टिकट लेने में ही हमारा करीब एक घंटा खर्च हो गया। हालांकि, बहुत ज्यादा भीड़ होने का एक फायदा यह भी हुआ कि हमें गाइड करने की जरूरत नहीं पड़ी। वरना जब आप यहां ऑफ सीज़न में आते हैं तब देवकुंड वाटरफॉल तक जाने के लिए आपको करीब 300-400 खर्च कर पर्सनल गाइड करना पड़ता है। गाइड के पैसे तो बच गए लेकिन बहुत ज्याफ भीड़ की वजह से आगे बहुत ज्यादा परेशानी भी हुई। खैर, परेशानी को पीछे छोड़ हम चल दिए अपनी मंजिल की ओर।

बेस विलेज से देवकुंड वाटरफॉल तक के लिए आपको करीब 6 से 7 किलोमीटर लंबा ट्रेक करना होता है। वैसे तो इतना पैदल चलना कोई ज्यादा थकाऊ नहीं है, लेकिन जंगल के ऊबड़खाबड़ रास्ते जब बारिश के पानी से मिलकर फिसलनदार भी हो जाते हैं, तब हर कदम संभालकर रखना होता है। ऐसे में समय और मेहनत दोनों ही सामान्य से ज्यादा खर्च हो जाते हैं। लेकिन भाईसाहब, इस दौरान एक तरफ जंगल और दूसरी तरफ बहती कुंडलिका नदी का दूध से सफेद पानी सफर की सारी मुसीबतों पर भारी पड़ती है। मेरे साथ तो कई बार ऐसा हुआ कि मैं कुछ दूर चलने के बाद ही रास्ते से हटकर पानी में डूबकर मारकर आ जाता। तेज रफ्तार के साथ घाटी से मैदान की ओर दौड़ते-भागते पानी में जाना जोख़िम भरा तो था ही पर उसके बदले में जो मजा भी उसी स्तर का था।

देवकुंड वाटरफॉल तक पहुंचने से पहले बीच में एक ऐसा पॉइंट भी आता है, जहां हमें कुंडलिका नदी को पार करके जाना होता है। ऑफ सीजन में तो इसे आराम से पार किया जा सकता है। लेकिन बारिश के समय जब कुंडलिका नदी में पानी बेहद ज्यादा और रफ्तार के साथ बह रहा होता है, तब सुरक्षा की दृष्टि से गांववालों द्वारा इसके ऊपर बनाए गए लकड़ी के पूल से ही इसे पार करना समझदारी भरा होता है। और ऐसा करते वक्त मजा भी बहुत आता है। यह एक ऐसा पॉइंट है जहां ज्यादातर लोग ठहरकर अपनी थकावट भी दूर करते हैं और नजारों को नजरों के साथ कैमरे में कैद करते हैं। हमने भी इस जगह को जमकर जिया और फिर बढ़ गए अपनी मंजिल देवकुंड वाटरफॉल की ओर।

पूल को पर करने के बाद हमने अभी थोड़ा समय ही बिताया था कि हमे पानी का शोर सुनाई देने लग गया। और हम समझ गए कि यह आवाज उसी झरने की है जिसके दीदार के लिए हमने 5 घंटे बाइक से और फिर करण 2 घंटा पैदल सफर तय किया है। जी हां, इतनी मेहनत के बाद आखिरकार हम देवकुंड वाटरफॉल के सामने खड़े थे। और आपको बता दूं कि सबसे पहला ख्याल मेरे दिमाग में यही आया कि यार... ये तो सच में उतना ही मनमोहन है जितना गूगल की गलियों में ढूंढते हुए नजर आया था। मेरे आंखों के सामने पानी का एक स्रोत पहाड़ से करीब 2700 फ़ीट नीचे गिर रहा था और उस अपने गिरने के साथ ही उसने अपने आसपास एक ऐसा कुंड का निर्माण कर दिया था, जो देखने में इतना खूबसूरत कि देवकुंड' के अलावा दूसरी कोई उपमा उसके साथ न्याय ही नहीं पाएगी।

पहले तो मैंने और गौरव ने अपने साथ लाए गरमागरम चाय की चुस्कियों के साथ ऊपर से नीचे गिरते झरने की भव्यता को जी-भरकर निहारा और सराहा। इसके बाद अपना सारा सामान एक किनारे रखकर हम कुंड के किनारे से सीधा कुंड में कूद गए। देवकुंड में पहली डुबकी के बाद ही ऐसा लगा मानों अब तक की हमारी सारी मेहनत सफल हो गई। सुरक्षा की दृष्टि से देवकुंड में एक रस्सी बंधी होती है, जिसके दायरे में रहकर ही आपको नहाना होता है। तो हमने भी जानलेवा मस्ती की बजाय सभी सुरक्षा मापदंडों का पालन करते हुए पानी में खूब पागलपन किया। पानी में नहाने के दौरान की अपनी ढेर सारी हरकतों को ज़ेहन और कैमरे दोनों में कैद करने का काम भी बखूबी किया। और शायद इसी का नतीजा है कि आज भी देवकुंड की अपनी यात्रा को याद करते हैं तो ऐसा एहसास होता है मानों कल की ही बात हो। वैसे, नायाब जगहों की खासियत भी यही होती है कि उसका असर समय के साथ बेअसर नहीं होता।

- रोशन 'सास्तिक'

Photo of Dewakund by रोशन सास्तिक
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