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हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि आधुनिक समय में अनेकों वैज्ञानिक और तकनीकी आविष्कारों की वजह से हमारे जीवन की काफी सारी मुश्किलें आसान हो गयी हैं लेकिन इसके साथ ही कहीं ना कहीं हम सभी इन आधुनिक उपकरणों और अन्य भौतिक वस्तुओं पर जरुरत से ज्यादा निर्भर हो चुके हैं और जीवन के असली आनंद को भी इन्हीं सब चीजों में ढूंढने की कोशिश करते हैं। हालाँकि ऐसी अधिकतर कोशिशें सफल नहीं हो पाती या फिर कुछ समय के लिए ही हमें खुशी दे पाती हैं। फिर बहुत से लोगों के मन में एक अजीब-सी भावना उत्पन्न होती है की आखिर वे किस चीज की कमी महसूस करते हैं और आखिर कैसे उन्हें जीवन में सच्चे आनंद की अनुभूति हो सकती है। फिर ऐसे ही विचारों के साथ उनका झुकाव होने लगता है आध्यात्मिकता की तरफ जिसे हम आज के समय में युवाओं के मध्य में भी काफी लोकप्रिय विषय के तौर पर भी देख सकते हैं।
अब अगर आध्यात्मिकता की बात करें तो हमारे देश में बहुत से ऐसे पवित्र स्थान हैं जहाँ आप आध्यात्मिकता की खोज में निकल सकते हैं। आज हम उन्हीं में से एक पवित्र स्थान 'बोधगया' के बारे में बात करने वाले हैं जिसे कई बार देश के 'सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक गंतव्य' के पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है। सिर्फ हमारे देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों पर्यटक हर साल बोधगया में आध्यात्मिकता की खोज में आते हैं। तो चलिए आपको बोधगया के बारे में पूरी जानकारी देते हैं...
बोधगया, बिहार
बोधगया हमारे देश के बिहार राज्य में फाल्गू नदी के किनारे एक छोटा सा शहर है जिसकी बिहार की राजधानी पटना से दुरी करीब 125 किलोमीटर है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए बोधगया सबसे बड़े तीर्थस्थलों के लिए प्रसिद्द है क्योंकि यहीं पर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए देश के कई हिस्सों के अलावा अनेक देशों जैसे भूटान, थाईलैंड, जापान, चीन, रूस इत्यादि देशों से यहाँ लाखों पर्यटक हर साल बोधगया आते हैं। यहाँ स्थित महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने 2002 में विश्व धरोहर का दर्जा भी दिया। बताया जाता है कि करीब 2500 वर्ष पहले कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद बोधगया में ही एक पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसीलिए उस वृक्ष को बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाने लगा। आज भी अनेक लोग बोधगया आध्यात्मिकता और शांति की खोज में आया करते हैं।
अब आपको बोधगया की कुछ खास जगहों के बारे में बताते हैं जिन्हें आपको अपनी बोधगया की यात्रा में जरूर शामिल करना चाहिए।
महाबोधि मंदिर
जैसा कि हमने आपको बताया कि बोधगया का महाबोधि मंदिर वही मंदिर है जिसे यूनेस्को ने कुछ वर्षों पहले विश्व धरोहरों में शामिल किया है। बताया जाता है कि सम्राट अशोक ने बोधि वृक्ष के चारों ओर मंदिर का निर्माण करवाया था। हालाँकि बाद में मंदिर को कई विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा और फिर इसका पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार किया गया जिसके बाद यह आज अपनी वर्तमान अवस्था में है। ऐसा बताया जाता है कि यहाँ मुख्य मंदिर में भगवान बुद्ध की प्रतिमा ठीक वैसी ही है जैसी अवस्था में उन्होंने तपस्या की थी।
यह भी बताया जाता है कि बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति के बाद वहीं पर 7 हफ़्तों तक तप किया था और मंदिर परिसर में उन सभी हफ़्तों से जुडी 7 जगहें भी आप देख सकते हैं और कुछ समय उस अद्भुत शांति को अनुभव कर सकते हैं। मंदिर परिसर में आपको देश के अनेक हिस्सों के अलावा अन्य कई देशों से आये श्रद्धालु यहाँ दिख जायेंगे जिसमें से कई लोग यहाँ ध्यान लगाकर अद्भुत शांति की खोज में भी विलीन नज़र आएंगे।
बोधि वृक्ष
जैसा कि हमने आपको बताया कि महाबोधि मंदिर बोधि वृक्ष के चारों ओर ही बना हुआ है जिससे महाबोधि मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करने के बाद आप परिसर में ही मौजूद बोधि वृक्ष के दर्शन कर सकते हैं। माना जाता है कि यह मूल वृक्ष से कि एक टहनी से ही उगाया गया था जिसे किसी समय में श्रीलंका ले जाया गया था। आज के समय में आपको बोधि वृक्ष के नीचे बहुत से श्रद्धालु ध्यान लगाते हुए मिल जायेंगे।
80 फ़ीट बुद्ध प्रतिमा मंदिर
बोधगया शहर के मध्य से करीब 1 किलोमीटर दूरी पर एक खास मंदिर मौजूद है जो कि बोधगया में सबसे ज्यादा देखे जाने वाली जगहों में भी शामिल है। यहाँ भगवान बुद्ध की 80 फ़ीट ऊँची प्रतिमा एक विशाल परिसर में स्थित है यह प्रतिमा देश की सबसे ऊँची प्रतिमाओं में से एक है जिसकी स्थापना 1989 में दलाई लामा द्वारा की गयी थी।
जापानी मंदिर
बोधगया में पूर्णतया जापानी वास्तुकला में बने इस मंदिर का निर्माण 1972 में करवाया गया था जिसकी निर्माण शैली जापानी वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है। इस मंदिर परिसर को बुद्ध के उपदेशों के साथ उकेरा गया है और लकड़ी पर की गयी शानदार नक्काशी हर किसी आगंतुक को इसकी ओर आकर्षित करती है। इसकी अद्भुत बनावट भी यहाँ अनेक पर्यटकों को खींच लाती है।
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थाई मोनेस्ट्री
बताया जाता है कि वर्ष 1956 ने थाई सम्राट ने इस थाई मठ का निर्माण करवाया था। इसकी निर्माण वास्तुकला भी देखने में काफी आकर्षक लगती है क्योंकि इसे थाईलैंड की वास्तुकला में बनाया गया है। इस मठ की छत घुमावदार और ढलान वाली है और यहाँ बुद्ध की कांस्य से बनी एक विशाल प्रतिमा है जिसके साथ पूरे मंदिर की बनावट भी इसे बेहद आकर्षक बनाती है।
रॉयल भूटान मोनेस्ट्री
भारत और भूटान के सम्बन्ध बेहद गहरे और मजबूत हैं और इसके पीछे दोनों देशों को दोस्ती तो है ही लेकिन साथ ही भूटान के लोगों के लिए भारत उनके अनेक पवित्र स्थलों का प्रतिनिधित्व भी करता है। इसीलिए दोनों देशों के बीच स्थायी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंध हैं और इन्हीं संबंधों का एक प्रतीक रॉयल भूटान मठ है जिसका निर्माण 2003 में तत्कालीन भूटान नरेश के तत्वाधान में किया गया था। यह मंदिर पारम्परिक भूटानी वास्तुकला में बनाया गया है और यहाँ एक मंदिर भी स्थित है जिसमें बुद्ध को 7 फ़ीट ऊँची प्रतिमा स्थापित है।
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मेट्टा बुद्धराम मंदिर
बोधगया में पर्यटकों को बेहद आकर्षित करने वाला यह एक और मंदिर है। यह एक थाई मंदिर है जिसका निर्माण बड़ी खूबसूरती से थाई वास्तुकला में किया गया है। मंदिर परिसर के बाहरी आवरण को स्टेनलेस स्टील के साथ दर्पण से भी सजाया गया है जिस वजह से इस मंदिर को सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर को विभिन्न तरह की कलाकृतियों से भी सजाया गया है जो यहाँ आये हर पर्यटक को भी बेहद आकर्षित करती है।
100 फ़ीट स्लीपिंग बुद्ध मंदिर
हम सभी ने भगवान बुद्ध की प्रतिमा आम तौर पर बैठे हुई अवस्था में ही देखी होगी लेकिन बोधगया में एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ आपको करीब 100 फ़ीट लम्बी और 30 फ़ीट ऊँची शयन मुद्रा वाली बुद्ध की प्रतिमा देखने को मिलती है। इस प्रतिमा का अनावरण कुछ समय पहले ही किया गया है और सुनहरे रंग की यह विशाल और सुन्दर प्रतिमा हर किसी का ध्यान एक झटके में आकर्षित कर लेती है।
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तारा देवी मंदिर
बोधगया में तारा देवी मंदिर एक और अद्भुत व पवित्र स्थान है जहाँ मंदिर की ऊंचाई करीब 44 फ़ीट है और मंदिर में कुल चार मंजिलें हैं जहाँ तारा देवी की अनेकों रूपों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। साथ ही मंदिर की शीर्ष मंजिल पर तारा देवी की करीब 18 फ़ीट ऊँची प्रतिमा भी स्थापित है जिसे कुछ किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है। ग्राउंड फ्लोर पर मुख्य मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित हैं।
इसके अलावा बोधगया में चीनी मंदिर, मंगोलियन मंदिर, तिब्बतियन मठ, सुजाता मंदिर और स्तूप, पुरातत्व संग्रहालय के साथ ऐसी कुछ और जगहें हैं जिन्हें आप अपनी बोधगया की यात्रा में शामिल कर सकते हैं।
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बोधगया कैसे पहुंचे?
अगर आप हवाई मार्ग से बोधगया जाना चाहते हैं तो बोधगया से करीब 10 किलोमीटर दूर 'गया अंतराष्ट्रीय हवाईअड्डा' है जिसके लिए आप अपने शहर से फ्लाइट की व्यवस्था देख सकते हैं या फिर बोधगया से करीब 120 किलोमीटर दूर पटना भी आप हवाई मार्ग के द्वारा पहुँच सकते हैं। इसके अलावा रेल मार्ग से आने के लिए भी आप पहले गया या फिर पटना पहुंचकर फिर वहां से आसानी से टैक्सी या फिर बस के द्वारा बोधगया पहुँच सकते हैं।
आप सड़क मार्ग से भी बोधगया आसानी से पहुँच सकते हैं जिसके लिए पटना से सरकारी बसों के साथ कई प्राइवेट बसें भी आपको बोधगया के लिए मिल जाएँगी और इसके अलावा खुद के वाहन से भी आसानी से सड़क मार्ग से आप बोधगया पहुँच सकते हैं।
तो अगर आप भी इस अद्भुत आध्यात्मिक नगरी को स्वयं अनुभव करना चाहते हैं तो आप ऊपर बताई गयी जानकारी के अनुसार बोधगया की यात्रा जरूर प्लान करें। इससे जुड़ी जितनी भी जानकारी हमारे पास थी हमने आपसे इस लेख के माध्यम से साझा करने की कोशिश की है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इस आर्टिकल को लाइक जरूर करें और साथ ही ऐसी ही अन्य जानकारियों के लिए आप हमें फॉलो भी कर सकते हैं
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