उनके पीछे बचे हुए साथी लोग भागे भागे बाहर आये। आगे भाग रहे दोनों तीनो दोस्त सीधे वाशरूम मे घुस गए।पता चला कि भाषा न समझ पाने के कारण शाकाहारी लोगो को भी नॉनवेज पकोड़े परोस दिए ।करीब आधे घंटे तक वाशरूम मे उल्टिया करने के बाद इन्हे बाहर ठंडी हवा मे बिठाया। कुछ रोने लगे कुछ का मूड ख़राब हो गया। पांडे जी और मै सोच रहे थे कि अच्छा रहा हमने हमारे मन की बात सुन ली और यहा कुछ नहीं खाया । सभी का मूड ख़राब हो जाने से सभी लोग वहा से जैसे तैसे कम खाये ही निकल लिए।
बाइक्स से रवाना होकर हम फिर पुनाखा की और बढ़ निकले। शाम होने आ रही थी। हम लोगो को पुनाखा के मैन रोड से अलग एक गांव की तरफ मुड़ा दिया गया। हमारी बैकअप गाडी अब हमको लीड करने लगी और हम सब उसके पीछे पीछे धीमी गति से गांव से होते हुए एक छोटी सी पहाड़ी की और बढ़ने लगे। एक बड़े मैदान मे बाइक्स खड़ी कर हमको थोड़ा सा पैदल चढ़ कर पहाड़ी पर स्थित मठ पर जाना था।
'चिमी लेखांग मठ' भूटान का सबसे चर्चित मंदिर है। यहां पर लोग संतान प्राप्ति की प्रार्थना करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां प्रार्थना करने से संतान की प्राप्ति होती है। यह मठ भीड़ से दूर पूरी शांति लिए हुए था। अंदर स्तूप मे प्रवेश करने से पहले यहाँ के बौद्धिस्ट प्रार्थना चक्र के पास ही होकर गुजरना पड़ता हैं। अंदर कई भिक्षु जगह जगह बैठे हुए एक स्वर मे कोई मंत्र बोल रहे थे। जिसकी आवाज़ हमको काफी दूरी पर ही सुनाई देने लग चुकी थी।
अंदर स्तूप मे जो यहाँ का पुजारी था उसने हम सबको आशीर्वाद देकर कोई पानी की कुछ बूंदे पीने को दी एवं यहाँ से जुडी कोई कहानी बताई। उन्होंने बताय कि यह स्तूप एक भिक्षु ने बनाया था जिनको वहां 'डिवाइन मैडमैन' के नाम से जाना जाता है जो कि तिब्बत से भूटान मे बौद्ध धर्म को लेकर आये थे। बाहर निकल कुछ देर हमने यहाँ बने बड़े से बगीचे मे लेट कर आराम किया। इस बगीचे की खूबसूरती हमको इतनी लुभा गयी कि हमने सोहैल को बोला कि अगर कोई बिस्तर देदे तो रात हम बगीचे मे ही रुक जाए। इसकी खूबसूरती का कारण था चारो तरफ लुभावने पहाड़ और इसके अलावा तेज बहती हुई ठंडी हवाएं। दिन भर बाइक चलाने की थकावट उतारने की इस से अच्छी जगह थी।
यहाँ से हमको पुनाखा शहर ले जाया गया जो भी एक विकसित शहर था।थिम्फु से पहले भूटान की राजधानी पुनाखा मे ही थी। यहाँ काफी सारे छोटे माल्स ,क्लब्स ,बैंक हर एक चीज बनी हुई थी यहाँ के क्लब मे कुछ लोगो को शराब काफी सस्ते मे मिल गयी तो हम कुछ लोगो के लिए कोल्ड ड्रिंक की पार्टी और बाकियो के लिए शराब पार्टी करते करते रात की बारह बजे हम हमारे रूम पर पहुंचे।
अगली सुबह हमको पुनाखा जोंग के लिए रवाना किया गया। पुनाखा से करीब 30 km की दूरी पर स्थित यह खूबसूरत मोनेस्ट्री पोचू और मोचू नदियों के संगम पर बनी हैं। इसको भूटान का शाही मठ भी बोला जाता हैं।भूटान के हर राजा की शादी पुनाखा के जोंग में होती है।यहाँ अंदर प्रवेश के लिए जाने के लिए नदी पर पुराना लकड़ी का पुल बना हुआ था जो कि बड़ा ही सुंदर दिखाई दे रहा था। पुल से पानी में मछलियों को देखा जा सकता है।पुल पर चढ़ते ही टिकेटघर से टिकट लेकर पूल पार करके अंदर जाना था। सुबह सुबह का समय था तो भीड़ ज्यादा नहीं थी। करीब 20 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मठ का विशाल प्रवेश द्वार मिला जिदके दोनों तरफ दो विशाल प्रार्थना चक्र और दीवारों पर बुद्ध के जीवन कथा से जुडी विशाल पेंटिंग लगी हुई थी।आगे जाने पर विशाल प्रांगण दिखाई दिया जिसको पार करके मुख्य मंदिर मे दर्शन करने जा सकते थे। मंदिर से पहले यहाँ की तीन मंजिला ईमारत मे भी घूम कर बाहर स्थित नदी के विशाल रूप का आनंद भी लिया जा सकता था। यहाँ की इमारतों को पूरा घूमने मे ही करीब एक घंटा लग गया। फिर हम पहुंचे मुख्य मंदिर पर। मेरे गले मे कैमरा देख एक भिक्षु ने मुझे अंदर जाने से रोक दिया। सभी लोग भी बड़े मठ मे बिछड़ गए थे। मै अकेला था तो मेने उनसे काफी विनती की और विश्वास दिलाया कि मैं कैमरा का इस्तेमाल अंदर नहीं करूँगा। तब जाके मुझे अंदर जाने दिया गया। वो मुझे अंदर ले गए और भगवान बुद्ध की भव्य प्रतिमा के एकदम सामने बिठा मेडिटेट करने को बोला। अंदर शांति इतनी बनी हुई थी कि कब सारे दोस्त अंदर आकर मेरे आजु बाज़ू बैठ गए ,पता ही नहीं लगा।
अब हमको बढ़ना था पारो शहर की और। पहाड़ी रास्ता फिर शुरू हो गया। कई जगह स्कूल से बाहर आ रहे बच्चे हमको हाथ दे रहे थे ,ताकि हम गाड़ी रोक कर हाथ मिला सके। चलती गाड़ियों से ही ताली देते हुए एवं घने जंगलो से गुजरते हुए पहुंचे भूटान की सबसे ऊँची पर्वतीय सड़क यानी यह भूटान का सबसे ऊँचा मोटर मार्ग पर जिसका नाम है -चेलेला दर्रा। 12500 फ़ीट की उचाई पर यहाँ अत्यधिक बादलो के कारण सूर्य की रौशनी तो सीधे पहुंच ही नहीं पा रही थी।यहाँ तक पहुचना मे काफी बड़ा चेलेंज था। अभी तो यहा कोई बर्फ नहीं थी परन्तु नवम्बर से फरवरी तक भारी स्नो फाल के कारण यह मार्ग बंद रहता हैं। यह रास्ता ट्रेकिंग और लंबी पैदल यात्रा के शोकीन पर्यटकों के लिए सही स्थान हैं।रास्ते में नदियों, झरनों, अल्पाइन फूलों के पेड़ो के कई दृश्य दिखाई देते हैं। यहाँ पहुंच कर अब शुरू हुई हमारी पैदल ट्रैकिंग वो भी धीमी धीमी बारिश की बूंदो के साथ।
यहाँ दो ट्रैकिंग मार्ग थे जो दोनों अलग अलग पहाडो पर थे। दोनों की चोटिया पूरी बादल से ढकी थी तो था मानो ये पैदल ट्रेक स्वर्ग के रास्ते ले जाता हैं। विभिन्न प्रकार के फूलों के पोधो ,बुद्धिस्थ ध्वज के रास्तो से गुजर कर हम काफी ऊपर तक गए। लेकिन ये अभी तक पता नहीं चल रहा था कि इस पहाड़ का अंतिम बिंदु कहा हैं।एक निश्चित जगह तक जाने के बाद सभी के पैर जवाब दे चुके थे अब मेरे एवं पांडे जी के अलावा कोई भी ऊपर तक नहीं जाना चाहता था। हम भी यही तक रुक वहा से दिखाई दे रहे Mt. Jumolhari को देख वापस उतर आये। दोपहर तक पारो पहुंच हम लोकल शहर मे शॉपिंग करने के बाद पारो जोंग भी बाहर से घूम आये।
...to be continued