परमिट लेने के दौरान ही हमने 10 दिन तक चलने वाली भूटान की सिम भी खरीद ली और अपने बने हुए व्हाट्सप्प ग्रुप बना सभी ने अपने अपने नए नंबर उसमे डाल दिए। एक गाडी के अलावा सारी गाड़ियों का परमिट मिल गया। अब सोहैल ने अपनी बाइक उस यात्री को देदी जिसकी बाइक का परमिट नहीं मिला था और अपनी एजेंसी की मेकेनिक टीम मे से एक बंदे को बॉर्डर से वापस भारत की ओर भेज दिया।
खैर ,अब दोपहर मे हमको भूटान की राजधानी 'थिम्फु' निकलना था। गाइड ने हमे ट्रैफिक नियम समझाए जो इस प्रकार थे -1. लेफ्ट इंडिकेटर अगर आपको कोई देता है,तो इसका मतलब आप उस गाडी को ओवरटेक कर सकते हैं। 2. आगे वाली गाडी से राइट इंडिकेटर प्राप्त करने का मतलब आप अभी उस गाड़ी को ओवरटेक नहीं कर सकते। 3. लेफ्ट साइड से किसी भी हाल मे ओवरटेक नहीं करना हैं ।4.हॉर्न केवल अत्यधिक एमर्जेन्सी मे ही बजाना हैं।पहाड़ी क्षेत्र मे भी गाडी को बिना हॉर्न बजाये ही चलाना पड़ेगा।अगर कोई लोकल आप के पीछे हॉर्न 2 या 3 बार बजाये तो मतलब आप गाडी सही नहीं चला रहे हैं। वहा के लोगो मे ट्रैफिक नियम के प्रति अनुशासन काफी होता हैं। सही जगह पर पार्किंग मे गाडी खड़ी करना ,फ़ालतू हॉर्न न बजाना ,संकेत मिलने पर ही ओवरटेक करना आदि आदि। आप अगर वहा के नियम फॉलो नहीं कर रहे हैं तो वहा का कोई भी नागरिक आपको नियम फॉलो करने के लिए बोल देता हैं।
गूगल मैप पर रास्ता सेट कर हम निकल पड़े थिम्फु की तरफ जो कि यहाँ से 160 किलोमीटर दूर था। रवाना होते ही कुछ ही मिनटों मे बारिश चालू हो गयी। यहाँ से सारे रास्ते पुरे पहाड़ियों से गुजकर जा रहे थे। आज भी गाडी मे ही चला रहा था और मेरे पीछे पांडे जी को बिठाया हुआ था। इन रास्तो को देख आपको उत्तराखंड या हिमाचल के खतरनाक रास्ते याद आ जायेंगे। कुछ देर बाद एक चेकपोस्ट पर हमारे परमिट चेक कर ,हमारे पासपोर्ट पर छाप लगायी गयी। अब आगे एक घण्टे की ड्राइव के बाद तो चुनोतिया और ज्यादा आ गयी। रास्ते मे हर तरफ कोहरा छाया हुआ था। कुछ दिखाई न देने के कारण गाडी को मिनिमम स्पीड पर रख कर चलानी पड़ रही थी। फिर कई जगह पहाड़ो से बहते झरने सीधे सड़क के पास गिर रहे थे। तेज बारिश से ठण्ड काफी बढ़ गयी और हम धूजते धूजते आगे बढ़ते रहे क्योकि गर्म कपड़ो के लिए हम रुक नहीं सकते थे जिसका कारण यह था कि पुरे रास्ते मे पहाड़ के अलावा कोई एक छोटी सी जगह भी नहीं थी जहा हम रूककर बारिश से बच सके। एक तो गहरे जंगल और ऊपर से चारो तरफ काले बादल आच्छादित थे तो उजाला काफी कम था। सबसे बड़ी समस्या यहाँ यह थी कि बिना हॉर्न बजाये हम गाडी कैसे चलाये। हर मोड़ पर हम में से कोई न कोई हॉर्न बजा ही देता तो रास्तो मे मिलने वाले लोकल लोग हमे इस पर टोंक देते थे। इसके अलावा इंडिकेटर के नियम मे भी कंफ्यूज होते जा रहे थे कि ओवरटेक राइट वाले इंडिकेटर पर करना हैं या लेफ्ट वाले पर। फिर कही गाड़ी रोककर बचे हुए यात्रियों से हम वापस नियम पूछते थे।
कुछ तीन घंटे बाद जा कर बारिश रुकी ,मौसम साफ होने से थोड़ा उजाला महसूस होने लगा। एक बाइक का परमिट न मिलने से सोहैल को अब बैकअप गाडी मे बैठकर सबसे पीछे रहना था और आगे अब कोई लीडर नहीं था। कभी कोई आगे तो कभी कोई पीछे ,इस तरह हमारी गाड़िया चलने लगी। खाना भी हमको रास्तों मे ही कही खाना था। एक कैंटीन देखकर हमने खाना खाने के लिए गाड़िया रोक दी और सड़क पर पुरे बैच को रुकाने के लिए खड़े हो गए।
सभीके आने पर हमने अंदर जाकर देखा तो यहाँ भी सब नॉनवेज ही परोसा जा रहा था। वैसे मेरे पास मेरे छोटे बैग मे खाने को काफी कुछ पड़ा था तो उन्ही से ही हम कुछ वेज लोगो ने भूख शांत की और रेस्टॉरेंट से केवल चाय मंगवा ली।
करीब एक घंटा यहाँ रुक अब हम जैसे ही कुछ किलोमीटर आगे बढे तो एक जगह भूस्ख्लन चल रहा था और कुछ गाड़िया रुकी हुई थी और बड़े बड़े पत्थर और पेड़ के तने सड़क पर आ कर गिर रहे थे। दो गाड़ियों पर हम तीन लोग ही अभी तक यहाँ पहुंचे थे। थोड़ा पत्थर नहीं गिरते देख हम दोनों गाड़िया तो रिस्क लेकर बहुत ही तेजी से आगे बढ़ गयी। लेकिन पीछे रह गए बाकी सब लोग करीब आधे घंटे जाम मे फस गए क्योकि भूस्ख्लन तेजी से होने लग गया था और रास्ता बंद हो गया था।हमे व्हाट्सप्प ग्रुप मे प्राप्त मेसेज से पता लगा कि हम 2 गाड़िया ही आगे हैं बाकी साड़ी बाइक्स भूस्खलन की वजह से काफी पीछे हैं। तो अच्छी अच्छी जगह रुक कर हम फोटोग्राफी करते करते धीरे धीरे आगे जाने लगे। सभी के मिल जाने पर ही हम फिर से तेज स्पीड मे आगे बढे।
एक बड़े से दरवाजे पर 'वेलकम टू थिम्फु' का स्लोगन देख हमने अंदाजा लगा लिया कि हम पहुंच गए हैं। कल का दिन और आज का दिन भी पूरा खराब होने से हमारे आराम का दिन कम हो गया और यात्रा कार्यक्रम के हिसाब से तो हमे अगली सुबह ही हमको थिम्फु छोड़ कर जाना होगा।मतलब हमारे पास थिम्फु घूमने के लिए कुछ ही घंटे मिलेंगे।
थिम्फु राजधानी होने की वजह से काफी विकसित था। शहर मे प्रवेश होते ही यहाँ की सबसे ऊँची पहाड़ी पर बड़ी सी बुद्धा की मूर्ति हर जगह से दिखाई दे रही थी। शहर मे ट्रैफिक अपेक्षाकृत ज्यादा था लेकिन यहाँ कोई ट्रैफिक लाइट कही नहीं थी। हर चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस वाले खड़े थे। आसमान मे एक हेलीकाप्टर बार बार उड़ता हुआ दिखाई दे रहा था।शाम हो चुकी थी और आज हमे उस बड़ी सी बुद्धा की मूर्ति पर भी जाना था। मैन रोड से थोड़ा अंदर एक होटल के तीसरे फ्लोर पर सबको कमरे दिए गए।
मुंबई के अक्षय के अनुरोध से आज हम तीन जनो के कमरे मैं पांडे जी व मेरे अलावा अक्षय को रहने दिया। डी.जे. मेरे पास वाले कमरे मे था। सामान रख कर हमको अँधेरा होने से पूर्व बुद्धा की मूर्ति के पास जाना था।
होटल से गाइड के साथ लगभग सभी लोग वहा के लिए निकल लिए। हम चार लोग कुछ देर बाद हमने गूगल मैप पर नजदीकी रास्ता सेट कर आगे निकल पड़े। होटल से बुद्धा मूर्ति का रास्ता बहुत ही खतरनाक था। हम होटल के पास की ही पहाड़ी से टूटे फूटे रास्ते से ऊपर चढ़ दिए। कई जगह चढ़ाई इतनी सीधी थी कि केवल ड्राइवर अकेला ही बैठकर चढ़ा सकता था।अंधेरा होने की वजह से एवं नेटवर्क चले जाने की वजह से हम भटक गए। करीब आधे घंटे तक पहाड़ियों पर घूमते घूमते मूर्ति कि दिशा मे आगे बढ़ते बढ़ते हम जब तक वहा पहुंचे ,भारी अँधेरा हो चूका था। अँधेरे मे यह मूर्ति काफी चमक रही थी। मूर्ति तक जाने के लिए करीब 100 सीढिया चढ़नी थी या एक और रास्ते से सीधे गाडी लेकर उस ऊंचाई तक पंहुचा जा सकता था। हम गाडी लेकर ऊपर तक गए फिर पैदल मूर्ति तक गए तो पाया कि बाकी सब लोग दर्शन करके रवाना हो चुके थे। अँधेरे की वजह से एवं बारिश चालू होने से पंद्रह मिनट मे हम निराश होकर वापस होटल की और निकल पड़े।करीब रात 11 बजे हम होटल पहुंच के खाना खा कर सो गए।
सुबह यहाँ की एक मोनेस्ट्री मे घूम कर हमको थिम्फु छोड़ना था। पर मुझे तो वो मूर्ति भी ढंग से देखनी थी। मेने सुबह चार बजे का अलार्म लगाया और सो गया। सुबह जल्दी मेरे खटपट की आवाज़ से अक्षय व पांडे जी भी उठ गए। सुबह सुबह हसी ठिठोली सुनकर पास के कमरे से राजकोट का नितिन भी मेरे पास आया। डी. जे को सर्दी लग जाने की वजह से वो सोता रहा।सुबह जल्दी ही हम चारो ही चुपके से निकल पड़े बुद्धा मूर्ति की तरफ।रास्ता वो ही लिया जो गत रात को हमने लिया था।
170 फ़ीट की इस मूर्ति के आगे विशाल खुला प्रांगण था। जहा से पुरे शहर का भव्य नजारा देखने को मिल रहा था। उसके अलावा शहर के चारो तरफ स्थित पहाड़ आज भी बादलो से ढके हुए थे। ऊपर से सुबह सुबह शहर एकदम शांत नजर आ रहा था।किसी प्रकार का कोई वहां निचे की सड़को पर नहीं था।कुछ लोकल लोग मॉर्निंग वाक करते करते यहाँ की तरफ आ रहे थे। प्रांगण से मूर्ति की तरफ सर उठा के देखने पर भगवान बुद्ध एक दम शांत चित्त मे विराजमान दिखाई दे रहे थे।करीब एक घंटे तक हम यहाँ रुके रहे और प्रांगण के बीच एक जगह बैठ कर उस शान्ति को महसूस करने लगे।
Sep. 2019
To be continued....