बाइक ट्रिप का आज दूसरा दिन था। रात भर भूटान सीमा पर स्थित भारत के जयगांव मे ही आराम कर सुबह आज हमे सीमा मे प्रवेश कर भूटान घूमने की सात दिन की परमिट लेनी थी। रात भर तेज मूसलाधार बारिश की वजह से जयगांव की सड़के गीली नजर आ रही थी। नाश्ते के लिए हमको छत पर बुलाया गया। जहा छत से आसमान मे काले बादल अभी तक नजर आ रहे थे और लग रहा था कि बारिश फिर शुरू होने को हैं। शहर के आसपास कई पहाड़ भी थे जो कि आज बादलो की ओट मे छिपे हुए थे। हममे से कई लोगो को रेनकोट और बाइकिंग गियर्स खरीदने थे।हेलमेट तो हमको एजेंसी ने ही दिए हुए थे। होटल के कुछ ही पास एक दुकान पर हमारा खरीदारी करना जाना हुआ कि बारिश शुरू हो गयी और हम बिना कुछ ख़रीदे वापस लौट आये।
हमे बताया गया कि सीमा से उस पार भूटान देश का जो पहला शहर पड़ता है वो है -फुंतशोलिंग।भूटान का समय भारत से 30 मिनट आगे हैं तो भारतीय समय के 8.30 बजे मतलब वहा के 9 बजे इमीग्रेशन ऑफिस खुलना था। वहा हमारा गाइड हमे सारे डाक्यूमेंट्स तैयार मिलना था । दोनों देशो सीमा के नाम पर एक करीब 7-8 फ़ीट ऊँची दिवार बनी हुई थी जो कि दोनों देशो के बीच बॉर्डर का काम कर रही थी। दोनों देशो मे आपसी आवागमन के लिए एक बड़ा सा भुटानीज़ स्टाइल का दरवाजा था जिसको कहते है -भूटान दरवाजा। वैसे यह भूटान गेट ,भूटान से भारत मे प्रवेश के लिए ही चालू किया हुआ था और यह हमारी होटल से मात्र 500 मीटर की दूरी पर ही था। भूटान मे बाइक से प्रवेश के लिए एक छोटा सा दरवाजा यही से 100 मीटर अलग बना हुआ था।हालाँकि पैदल सीमा पार करने के लिए या वापस भारत आने के लिए भी दो पैदल प्रवेश एवं निकास द्वार भी बने हुए थे जहाँ से आप आराम से दिन मे कई बार इधर उधर पैदल आया जाया जा सकता था।
हमने फुंतशोलिंग मे प्रवेश कर भूटान दरवाजे से 300 मीटर दूरी पर दायी तरफ स्थित इमीग्रेशन ऑफिस के बाहर बताई हुई जगहों पर गाडी खड़ी की। इमीग्रेशन ऑफिस के बाहर बहुत ही लम्बी कई लाइन्स लगी हुई थी। दरवाजे के बाहर ही होटल druk के नाम का एक होर्डिंग लगा हुआ था। हमको लाइन मे ना लगने के बजाय गाइड का इंतजार करना था। करीब एक घंटे बाद गाइड के आने के बाद उसने बताया कि यहाँ कुछ नियमो मे बदलाव होने के कारण कुछ समय ज्यादा लगेगा। हमारा बैच इस साल का पहला बाइक ट्रिप बैच था तो सोहैल को भी कुछ नए नियमो के बारे मे जानकारी लेनी थी। हम लोगो को हमारे ड्राइविंग लाइसेंस की फोटोकॉपी ,पासपोर्ट या id कार्ड की फोटो कॉपी एवं 2 फोटो गाइड को जमा करवाने थे।
फोटो कॉपी करवाने के लिए भूटान दरवाजे के पास ही एक फोटोकॉपी की दूकान पर हम फोटोकॉपी के लिए गए।भूटान मे भूटानी नेगुलत्रम मुद्रा चलती है जिसकी वैल्यू हमारी मुद्रा के बराबर ही थी।मतलब एक भुटानीज़ करेंसी = एक इंडियन रुपया। भारतीय मुद्रा भी पुरे भूटान मे एक सामान रूप से प्रचलित हैं।फोटोकॉपी करवाते समय मेरी मुलाकात एक नौजवान पंजाबी सरदार भाई से हुई जिनकी अलग ही दिखाई देती फॉर्चूनर गाडी मेने देख कर हमने उस भाई से बातचीत चालू की ,तो उसने बताया कि वो अपने परिवार के कुछ सदसयो के साथ इस गाडी मे पूरी दुनिया की यात्रा करेंगे। गाडी की खिड़की पर श्री गुरुनानक देव जी का फोटो लगा हुआ था ,जगह जगह पूरी गाडी पर कई लोगो के साइन किये हुए थे एवं उस पर लिखा हुआ था- 200000 किलोमीटर,100 देश ,550 दिन।
इधर वापस आने पर करीब पांच घंटे तक हम इमीग्रेशन ऑफिस मे बैठे रहे। अंदर भीड़ ज्यादा होने से गर्मी काफी हो गयी थी।हमे यह परमिट सुबह आधे घंटे मे ही मिल जाना था और अभी तक तो हम राजधानी थिम्फु के आधे रास्ते मे होने थे। परन्तु हमारे गाइड 'कर्मा गेलटशन', जो कि भूटान की राजधानी थिम्फु से था उसने हमे बताया कि किन्ही ऑफिसियल कारणों से आज परमिट देरी से मिलेगा। उसने किसी अधिकारी से बात कर हमको लाइन मे खड़ा न रहकर यहाँ आसपास घूम आने को भेज दिया। लंच भी हमने यही एक बढ़िया से रेस्टोरेंट किया।
हम भूटान दरवाजे के पास फोटो खींचने गए। यहाँ दरवाजे के पास ही खड़े रहकर आप साफ़ दोनों देशो मे अंतर् देख सकते है -एक तरफ हमारी और दरवाजे के एकदम पास मे ही कई ऑटो ,गाड़िया ,पैदल लोगो की वजह से भारी ट्रेफिक रहता है ,वही केवल 50 मीटर दूरी पर ही भूटान मे प्रवेश करते ही सड़क पर एकदम शान्ति मिलती हैं। सड़को मे भी फर्क आपको दिख ही जाएगा। तेज बारिश की वजह से हम कही घूम न सके और फिर कई घंटे इमीग्रेशन ऑफिस मे ही बैठे रहे।
शाम होते ही ऑफिस बंद और हमे परमिट नहीं मिल पाया। अब रात को हम में से कई लोगो ने सोहैल से बहस शुरू कर दी और एजेंसी के नकारात्मक फीडबैक ऑनलाइन डाल दिए।गुस्सा और तब बढ़ गया जब हमारी होटल भी बदल दी गयी अब हम जयगांव मे भूटान गेट के और नजदीक थे। रात को बाइक की टेस्टिंग वापस करने के लिए हम लोगो को फुंतशोलिंग मे प्रवेश करा वहा पास ही स्थित एक पहाड़ी पर ले जाय गया। अंधेरो मे घुमावदार रास्तो से गुजर दस किलोमीटर दूर उस पहाड़ी से पूरा शहर दिखाई दे रहा था। केवल दस मिनट रुकने को हुआ कि फिर तेज बारिश की वजह से हमको वहा से भाग जाना पड़ा। लेकिन रात का खाना खाने हम चार लोग फुंतशोलिंग मे ही रुक गए। शुद्ध शाकाहारी होने की वजह से मै दुसरो से तय की हुई जगह मिलने का बोल पांडे जी के साथ वेज होटल ढूंढने ,गाडी एक तरफ खड़ी कर पैदल ही निकल गया।घूमते घूमते हमे वेज होटल तो कोई दिखाई ना दी परन्तु हमने एक अच्छी आइस क्रीम की दूकान मिल गयी। वहा बैठ दो तीन प्रकार की आइस क्रीम खायी। यहाँ से हम एक बौद्धिस्ट मंदिर मे चले गए।मौसम अब सुहावना हो चूका था। कुछ देर यहाँ लोकल के साथ बाते कर हमने वापस निकलने की ठानी। यहाँ भाषा की भी कोई समस्या नहीं होती है ,हिंदी को भी भूटान मे सभी जगह अच्छे से समझा एवं बोला जाता हैं।
घूमते हुए हम दोनों को काफी देर हो गयी। तय कि हुई जगह पर कोई नहीं था ,ना यहाँ हमारे नेटवर्क चालू थे कि हम उन्हें फोन करके बुलाये। हमने गाडी लेकर जयगांव होटल मे जाने का मन बनाया ,देखा तो गाडी चालू ही नहीं हो रही थी। हमने करीब आधे घंटे उसको स्टार्ट करने की कोशिश की पर हार गए। अब हमे इसे घसीटते हुए भारत -भूटान बॉर्डर पार कर जयगाव मे होटल तक ले जाना था। कुछ लोकल लोगो ने भी हमारी मदद करना चाही परन्तु किसी से कुछ न हो पाया। हर चौराहे पर ट्रेफिक पुलिस के बताये हुए रास्ते से हम भूटान दरवाजे से बाहर निकलते हुए करीब 45 मिनट मे हम होटल पहुंचे। मेने हमारे साथ आये मैकेनिक और सोहैल को काफी फोन लगाया ताकि गाडी रातभर मे ही ठीक हो जाए और सुबह इसकी वजह से कही हम सब लेट ना हो जाये। एक घंटे बाद मैकेनिक मेरे कमरे मे पंहुचा और रात भर मे गाडी फिर ठीक करदी। सोहैल ने हम वेज लोगो के लिए खाना भी मंगवा लिया था।
सुबह जल्दी हमको ले जाकर लाइन मे लगवा दिया। एक घंटे बाद सभी की बायोमेट्रिक जांच कर आगे बढ़ने का परमिट दे दिया। परन्तु इसके बाद अब हमे लेना था बाइक का परमिट। बाइक का परमिट यहाँ RSTA द्वारा दिया जाता है जिसका ऑफिस भूटान गेट से एक किलोमीटर दूर बस स्टैंड के पास था। यहाँ हमारी कुछ बाइक्स का परमिट तो दो तीन घंटे मे मिल गया पर अब कुछ गाड़िया आगे नहीं जा सकती थी। असल मे उन गाड़ियों का बीमा सोहैल के पास नहीं था। मेरी और डी.जे. की तो सारी परमिट हमे मिल गयी,पर अब हम भी कुछ नहीं कर सकते थे। यहाँ फिर काफी बहस का सामना सोहैल को करना पड़ा।
इसी दौरान वो सरदार जी कि गाडी मेरे पास आ रुकी। मुलाकात हुई 60 साल के अमरजीत सिंह जी से जो दुनिया के इस भ्रमण मे पांच लोगो के बीच लीडर थे। उन्होंने काफी देर मुझसे ट्रैवेलिंग के बारे मे अपने अनुभव बताये। उनका लक्ष्य है कि वो 100 देशो को 550 दिन मे इसी गाडी से पूरा करना। इस दौरान अनुमानित दूरी उन्होंने दो लाख किलोमीटर मानी हुई थी। आज वो इसी 100 देशो मे से एक देश भूटान मे परमिट के लिए आये हुए थे।THE TURABAN TRAVELLER से उनके कई ब्लोग्स मौजूद है ,मुझे अपना विजिटिंग कार्ड देकर उन्होंने मुझे अपने साथ कुछ फोटो खींचने दिए। बाद मे सभी बैच वालो को उनके बारे मे पता पड़ने पर उन्होंने सबसे बात कर एक ग्रुप फोटो करवाया।
to be continued...