Bhagalpur to Darjleeing Tour - भागलपुर से दार्जिलिंग यात्रा #Darjleeing

Tripoto
28th May 2018
Photo of Bhagalpur to Darjleeing Tour - भागलपुर से दार्जिलिंग यात्रा #Darjleeing 1/3 by Anshuman Chakrapani

गर्मियों के छुट्टीयों में घूमने जाने का कार्यक्रम बन रहा था | कहाँ जाए कहाँ नहीं घर में बस यही चर्चा चल रही थी | वैसे अभी लंबा समय था , पर हमारे भागलपुर की बात ही निराली है | कहीं भी जाना हो अगर तीन-चार माह पूर्व में ट्रेनों में आरक्षण नहीं लिया तो बस फिर भूल जाये कि आपको पटना तक भी जाने के लिये किसी ट्रेन में आरक्षण मिलेगी | प्रत्येक ट्रेन में आने और जाने वालों का तांता लगा रहता है | खैर, हमारे ख्वाबोँ को तीन महीने पहले ही पंख लगना शुरू हो गये | हमारी श्रीमतीजी भी काफी उत्साहित और खुश नजर आ रहीं थी | वैसे आपको बताता चलूँ , श्रीमतीजी भी कम घुम्मकडनी नहीं हैं , शादी से पहले ही इन्होंने तो कोलकता, पुरी, दिल्ली, आगरा, मथुरा, वृन्दावन, हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, मसूरी, वैष्नोदेवी, जम्मू , शिरडी और अंत में लिस्ट में जो नाम है वो सबके बस की बात तो बिल्कुल भी नहीं और वो है अमरनाथ यात्रा, कर चुकीं हैं |

हमारा पूरी और भुवनेश्वर जाने का कार्यक्रम आरक्षण नहीं मिल पाने की वजह से जाड़े में टल चुकी थी । इसी बीच मैंने तय कर लिया कि पहले अपने आसपास स्थित स्थलों की यात्रा करूँगा, बजाय लंबी यात्रा के । इसके दो फायदे थे, पहला तो अपने आसपास को जानने और समझने का मौका मिलेगा और दूसरा छोटे बच्चों को लेकर लंबी यात्रा पर जाने में परेशानी बहुत होती है । बच्चे साढ़े पाँच साल और साढ़े तीन साल के हैं । लंबी यात्रा में ये ऊब जाते हैं और फिर उधम मचाकर जीना मुश्किल कर देते हैं, खासकर लंबी ट्रेन यात्रा में रात तो कट जाती है पर दिन में ये नाको दम कर देते हैं । कभी एक को ऊपर की बर्थ चाहिये तो कभी खिड़की वाली सीट, बाहर का नजारा देखने के लिये। एक ने नाकोदम कर खिड़की की सीट हथियायी नहीं की अब दूसरे का भी रोना - धोना शुरू । कभी कोई नीचे जा रहा है तो कभी ऊपर । कभी प्यास लगी तो कभी शौचालय जाना है, एक अभी आया नहीं की दूसरे को भी जाना है । सबसे बड़ी दिक्कत मुझे तब महसूस होती है, जब कोई सहयात्री बार बार घूरकर देखने लगते हैं, जो मुझे बेहद असहज कर देता है । जो कि एक आम समस्या मुझे लगती है वातानुकूलित डब्बे में यात्रा करने में । एक तो सन्नाटा फैला रहता है, कोई किसी की ओर देखता तक नहीं और जब छोटे नटखट शैतान सन्नाटे को तोड़ते हैं तो फिर कुछ महानुभाव को ये गवारा नहीं गुजरता । इन सभी बिन्दुओं पर गौर करने के बाद हमने दार्जिलिंग और सिक्किम की यात्रा पर जाना तय कर लिया । रात्रि में बैठे और सुबह-सुबह न्यू जालपाईगुड़ी पहुँच गये |

श्रीमतिजी ने पहले ही अपने पिताश्री को हमारा कार्यक्रम बता दिया और वो लोग भी साथ चलने को तैयार हो गये थे । मतलब हमलोग दो बच्चों और मेरी माताश्री सहित पाँच लोग थे । अब मेरे ससुरजी और सासु सहित हम सात लोग हो गये । टिकिट और आने जाने के कार्यक्रम बनाते - बनाते श्रीमतिजी ने अपनी ननद (मेरी बहनजी, लखनऊ) और अपनी बहनजी (जो मेरी जेठ सास लगेंगी, महाराष्ट्र) से भी साथ चलने के लिये पूछ लिया । मेरी बहनजी ने साफ - साफ ना कर दिया और श्रीमतीजी की बहनजी साथ जाने को झट से तैयार हो गयी । लेकिन वो बिना पति के ही साथ चलेंगी, उनके दोनों बच्चे और मेरे बच्चे हम उम्र ही हैं । अब तीन लोग और बढ़ गये और हमलोग कुल 6 लोग और 4 बच्चे हो गये | लेकिन 4 - 4 अति उद्दंड़ी बन्दरों को संभालना एक मुश्किल काम होने वाला था इस यात्रा में । मेरा तो ये सोचकर ही सर चकराने लगा, पहले ही मेरे दो बन्दर उत्पात मचाने में क्या कम थे, जो दो और शामिल कर लिये श्रीमतिजी ने । मैं मन ही मन श्रीमतीजी को कोसने लगा । खैर, वातानुकूलित डब्बे में आरक्षण करवा कर, हमलोग दार्जिलिंग और सिक्किम की वादियों में सपनों की उड़ान भरने लगे। अब शुरू हुआ लम्बे इंतज़ार का सिलसिला, क्योंकि हमने तीन महीने पहले आरक्षण करवाया था । पर मजे की बात ये थी कि इतना पहले आरक्षण लेने पर भी एक बर्थ प्रतीक्षा सूची में ही था ।

आखिर 27 मई, 2018 यानि सुहाने सफर पर चलने का दिन भी आ ही गया, श्रीमतीजी ने सारी तैयारी पूरी कर ली थी, भारतीय रेलवे की ट्रेन हमेशा की तरह लेट-लतीफी से चल रही थी । हमें लगभग चार घंटे स्टेशन पर बिताना पड़ा । ट्रेन रात्रि के दो बजे आयी और हमलोग अपने बोरिया - बिस्तर लेकर ट्रेन में सवार हो गये । मेरे सासूजी और श्रीमतीजी की बड़ी बहन अपने दो बच्चों के साथ पहले से ही अपने-अपने सीट पर नींद के आगोश में समाये हुए थे । सिर्फ ससुरजी ही हमारा इंतजार कर रहे थे | सीट पर गिरते ही कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला ।

सुबह तड़के चाय वालों की "चाय - चाय" की कर्कश आवाज ने नींद खराब कर दी और गुस्सा भी आ रहा था । शायद ये खीज इसलिये भी ज़्यादा थी, क्योंकि मुझे चाय से कुछ लेना-देना रहता नहीं । आजतक मैंने चाय को हाथ तक नहीं लगाया, लबों तक लगाने की बात ही जुदा है | सुबह पाँच बजे भी कोई चाय का समय है, अच्छी भली नींद खराब कर दी “चाय चाय” करके | हमारी ट्रेन लगभग साढ़े आठ घंटे विलम्ब से सुबह के पाँच बजे के बदले दिन में 1:30 मिनट पर न्यू जालपाईगुड़ी पहुंची, हमारा पूरा प्लान फेल हो चुका था | स्टेशन पर उतरते ही दार्जिलिंग जल्द पहुँचने को जी मचल रहा था, कास पंख होते तो हम बिना तनिक देर किये परियों की तरह उड़ जाते | पर हमें तो अब टैक्सी लेनी पड़ेगी | मुझे फिल्म का वो गाना याद आ रहा था -

"पंख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ जालिमा. तुझे दिल का दाग दिखलाती रे.

यादों में खोई पहुची गगन मे, पंछी बन के सच्ची लगन में.

दूर से देखा, मौसम हसी था, आनेवाले तू ही नहीं था. रसिया, ओ जालिमा |"

Photo of Bhagalpur to Darjleeing Tour - भागलपुर से दार्जिलिंग यात्रा #Darjleeing 2/3 by Anshuman Chakrapani

न्यू जालपाईगुड़ी में स्टेशन के बाहर ही टैक्सी स्टैंड है, हमने पास ही के एक शाकाहारी होटल में खाना खाया | खाना बस पेट भरने लायक था | खाने के बाद टैक्सी स्टैंड में मोलतौल कर हमने 3200 में एक बोलेरो की और आगे की यात्रा, यानि दार्जिलिंग की ओर रवाना हो गये | न्यू जालपाईगुड़ी टैक्सी स्टैंड में दलालों का बोलबाला है | हमें 4000 और 4500 के रेट सुनने के बावजूद 3200 में एक बोलेरो मिल गई | यहाँ सिर्फ बोलेरो या सुमो जैसी ही गाडियाँ चलती हैं | बस के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं मिल पाई, वैसे भी हमें जाना तो गाड़ी बुक करके ही था | पहले न्यू जालपाईगुड़ी से ही दार्जिलिंग के लिये टॉय ट्रेन चलती थी, जो अब बन्द पड़ी थी |

अभी हमलोग कुछ दूर निकले ही थे कि मौसम ने अपना मिजाज बदलना शुरू कर दिया । अचानक से बादल छा गया और मूसलाधार बारिश होने लगी । पहाड़ी इलाका, टेढ़े मेढ़े रास्ते, तेज गति से आती गाड़ियों और मूसलाधार बारिस की वजह से ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, जिसकी वजह से हमें कुर्सियांग में रोहिणी चाय बगान के पास एक छोटी सी खाने-पीने की जगह पर रूकना पड़ा । वही बगल में एक होमस्टे का बोर्ड भी नजर आ रहा था । मुझे छोड़ सबने हरी भरी सुन्दर वादियों में घोर बारिस के साथ चाय का मजा लिया । बच्चों की तो मौज हो आई थी, बारिस और बिजली कड़कने की आवाज पर गाड़ी में बैठे-बैठे उत्साहित होकर शोर मचा रहे थे । बारिस थमने पर मैंने आसपास का मुआयना किया, क्योंकि ड्राइवर महोदय खाना खा रहे थे । जहाँ तक ऊपर देख पा रहा था, चाय के बगान और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ नजर आ रहे थे । सड़क कम चौड़ी थी, सो छोटे बेटे को लेकर ज्यादा दूर नहीं निकल पाया । क्योंकि सड़क पर तेज गति से गाड़ियों का आवागमन हो रहा था ।

Photo of Bhagalpur to Darjleeing Tour - भागलपुर से दार्जिलिंग यात्रा #Darjleeing 3/3 by Anshuman Chakrapani

आसमान आश्चर्यजनक रूप से साफ हो चुका था और अद्भुत रूप धारण किये था । सफर फिर से शुरू हुई अब तक अंधेरे ने सबकुछ अपने आगोश में समेट लिया था, बस गाड़ियो की लाइट ही सड़क ओर पड़ रही थी | रास्ते में कई जगह जाम लगा हुआ था । हम लगभग 7 बजे दार्जिलिंग पहुंचे, जहाँ बिल्कुल अँधियारे का साम्राज्य था । हमें पता ही नहीं चल रहा था कि हम दार्जिलिंग स्टेशन के पास खड़े हैं, जहाँ से इतनी प्रसिद्ध टॉय ट्रेन (खिलौना गाड़ी) चलती है । कारण पूछने पर पता चला कि दार्जिलिंग की मार्केट संध्या 6 बजे बंद हो जाती है, जो की मेरे लिये घोर आश्चर्य से कम नहीं था । गर्मियों की छुट्टियों की वजह से सैलानियों की इतनी भीड़भाड़ की होटलों में कमरे मिलना मुश्किल, लेकिन चारों ओर सन्नाटा। सच कहूं तो मन ही मन सोच रहा था, कहीं ड्राइवर हमें शहर के बाहर ही तो छोड़कर तो नहीं भाग रहा । बारिस फिर शुरू हो चुकी थी और हमारा सामान जो गाड़ी के ऊपर रक्खा था थोड़ा गीला हो चुका था । ड्राइवर ने कवर तो किया था, पर मैंने उसे खुद से देखा नहीं था, शायद उसने ठीक से ढका नहीं था । इस वजह से सामान गीला हो गया और सब मुझे कोस रहे थे । गाड़ी से नीचे उतरते ही ठंड का एहसान होने लगा । यात्रा पर निकलने वाले दिन हमारे शहर का तापमान 41° डिग्री सेल्सियस था और अब हम लोग 11°डिग्री सेल्सियस में पहुंच गये थे । जल्दी से हमने गर्म कपड़े डाले और सबको दार्जिलिंग स्टेशन पर बिठाकर मैं ससुरजी को साथ लेकर होटल देखने निकल पड़ा । यहाँ भी दलालों की भरमार थी, दार्जिलिंग स्टेशन के ठीक सामने से शुरू होकर माल और गाँधी रोड तक होटल ही होटल । हमने होटलों खाक छाननी शुरू की और रेट सुनकर तो जैसे हमें तारे नज़र आने लगे । बिल्कुल थर्ड ग्रेड होटल सामने थे, उसमें भी 3000 के नीचे कमरे उपलब्ध नहीं थे | कमरे भी ऐसे जिसे कबूतरखाना कहना ही ठीक होगा | गर्मीयों की छुटियाँ चल रही है, होटल खचाखच भरे पड़े थे | कुछ देर भटने के बाद एक ठीक-ठाक और साफ-सुथरे होटल में कमरे का इन्तजाम हुआ | कमरे में पहुंचकर हाथ मुहँ धोकर हमने वहीँ खाना खाया क्योंकि और कोई विकल्प भी नहीं था, सारे रेस्टोरेंट बन्द पड़े थे | संध्या 6 बजे के बाद कोई उम्मीद ही नहीं की आप कुछ जरूरी वस्तु भी मार्केट में ढूंढ पाये | यहाँ की यूनियन काफी मजबूत है और ये लोग सरकार की 9 बजे तक मार्केट को खुले रखने के प्रस्ताव को कई बार ठुकरा चुकी है |

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