प्रकृति के बीच आध्यात्म की अनुभूति कराता है कामाख्या मंदिर

Tripoto

Image: Rupesh Kumar Jha

Photo of प्रकृति के बीच आध्यात्म की अनुभूति कराता है कामाख्या मंदिर by Rupesh Kumar Jha

पूर्वोत्तर भारत को प्रकृति ने बड़े मन से सजाया है। यही कारण है कि इन खूबसूरत वादियों को देखने दुनियाभर से सैलानी आते हैं। गुवाहाटी शहर को पूर्वोत्तर का गेटवे कहा जाता है। जाहिर है कि लोग नॉर्थ ईस्ट घूमने आते हैं तो गुवाहाटी आना होता ही है। इस शहर में पहाड़ियों पर बसे माँ कामाख्या के बारे में तो आपने सुना ही होगा! रहस्य, रोमांच से भरे इस शक्ति पीठ को देखने सदियों से लोग आते रहे हैं।

आज भी पहाड़ पर जंगलों में तंत्र साधना करने वाले साधु आपको यहाँ दिख जाएँगे। मैं जब यहाँ आया तो उससे पहले ही इस जगह के बारे में कई किस्से सुन रखे थे जो डरावने और रहस्यों से भरे हुए थे। लेकिन जब मैं वहाँ पहुँचा तो ऊँची पहाड़ियों पर सुकून महसूस किया। ऊपर पहाड़ियों से पूर्वोत्तर का गेटवे गुवाहाटी देखना रोमांचकारी था।

यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती और पहाड़ों की बसावट देखकर मुग्ध हो गया। गुवाहटी के मेरे एक मित्र जो मेरे साथ थे, वे अलग-अलग जगहों से गुवाहाटी का दीदार कराते हुए कामाख्या मंदिर तक ले गए। आपके साथ इस जगह की जानकारी शेयर करते हुए मेरे आंखों के सामने वो सब दृश्य सजीव हो गए हैं!

श्रेय: रूपेश कुमार झा

Photo of गुवाहाटी, Assam, India by Rupesh Kumar Jha

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर बसा गुवाहाटी शहर प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही कामाख्या देवी मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। विशेषकर तंत्र साधना के लिए ये सबसे उपयुक्त स्थान बताया गया है। पहले यहाँ की यात्रा कठिन मानी जाती थी लेकिन आधुनिक विकास ने इस कठिन यात्रा को सहज और आनंदायक बना दिया है।

बता दें कि कामाख्या देवी मंदिर को 51 शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कई ऐसे कारण हैं जिससे इस मंदिर को रहस्यमय कहा जाता है। नीलाचल पहाड़ पर कामाख्या देवी के मंदिर के साथ-साथ 10 अलग-अलग मंदिर स्थित हैं। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही सामने देवी का मंदिर दिखता है लेकिन दर्शन से पहले भीड़ का सामना करना पड़ता है जो कि दर्शन करने के लिए लाइन में लगे होते हैं। हालांकि आप चाहें तो पास भी ले सकते हैं जो कि सशुल्क उपलब्ध होता है।

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कामाख्या देवी मंदिर के रहस्य:

मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि योनिनुमा बनावट है। बताया जाता है कि जून के महीने में इस बनावट से खून निकलता है, जिसे देवी के मासिक चक्र होने से जोड़ा जाता है। ऐसा देखा जाता है कि इसके पास स्थित ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल हो जाता है। हालांकि नदी के लाल होने के कोई पुख्ता कारणों का पता नहीं चल सका है। देवी के मासिक चक्र के समय मंदिर को 3 दिन के लिए बंद रखा जाता है।

बता दें कि जून महीने में यहाँ पर तंत्र विद्या से जुड़ा अंबुवासी मेला लगता है। इस अवसर पर साधु-संत और तांत्रिक जमा होते हैं और साधना में लीन हो जाते हैं। ये मेला एक तरह से देवी माँ के रजस्वला होने पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

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मंदिर का क्या है इतिहास?

इतिहास में जाएँ तो पुराने मंदिर के 16वीं शताब्दी में नष्ट होने की बात सामने आती है। हालांकि 17वीं शताब्दी में इसका फिर से निर्माण किया गया। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण बिहार के राजा नर नारायण ने करवाया था। मंदिर का शिखर मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखता है जिसमें गणेश सहित कई देवी-देवताओं की मूर्ति है।

महिलाओं के मासिक चक्र और उसकी रचनात्मकता को समर्पित इस मंदिर का होना अपने आप में बेहद ख़ास है। ये एक तरह से स्त्री के सम्मान का प्रतीक है जो कि पूरे सृष्टि को जन्म देती है।

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मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता

बताया जाता है कि भगवान शिव की पत्नी सती जब पिता के किसी यज्ञ आयोजन में पहुँचती है तो वहाँ शिव का अपमान होता है। वो इसे सहन नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में कूद पड़ती है। ऐसे में उनका शरीर क्षत-विक्षत हो जाता है। सती की मृत्यु से भगवान शिव क्रोधित हो गए और सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लेगे। ऐसे में भगवान विष्णु सोचा कि जब तक सती का शरीर है, शिव का गुस्सा शांत नहीं हो सकता। वे अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट देते हैं। तांडव कर रहे शिव के कंधे से सती के शरीर के हिस्से जिन स्थानों पर गिरे वो शक्ति पीठ कहलाए।

माता सती का गर्भ तथा योनि इसी नीलाचल पर्वत पर गिरे और ये शक्तिपीठ बना। तभी से यहाँ देवी शक्ति के इस रूप की पूजा होती है। बाद में ये अपने प्राकृतिक एकांत के कारण साधना स्थल के तौर पर जाना जाने लगा, जहाँ आज भी देश-विदेश के तांत्रिक तंत्र साधना में लीन रहते हैं।

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कैसे पहुँचें कामाख्या देवी मंदिर

गुवाहाटी एयरपोर्ट से जब आप शहर में दाखिल होंगे तो रास्ते में ही पड़ता है नीलाचल पर्वत। अगर आप रेल से गुवाहाटी पहुँचते हैं तो बता दें कि रेलवे स्टेशन से ये 10 कि.मी. की दूरी पर है। वहीं कामाख्या रेलवे स्टेशन से मंदिर महज 4 कि.मी.  की दूरी पर है। आपको जानकारी हो कि पहाड़ी पर जाने के लिए सिटी बस और ऑटो की सेवा मौजूद है। कामाख्या मंदिर के आसपास आपको ठहरने के लिए गेस्ट हाउस और होटल मिल जाते हैं। आप गुवाहाटी शहर में भी ठहर सकते हैं जहाँ से आसानी से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।

जान लें कि सुबह आठ बजे से लेकर सूर्यास्त तक मंदिर में दर्शन किया जा सकता है। बीच में दोपहर के समय 1 बजे से 3 बजे तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। कामाख्या मंदिर पहुँचें तो पास अवस्थित उमानंद भैरव मंदिर जरूर जाएँ जो कि इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। भैरव मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में स्थित है।

प्रकृति और आध्यात्म के इस अनूठे संगम को देखना बेहतरीन निर्णय हो सकता है। पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा शहर गुवाहाटी आपके स्वागत के लिए तैयार है। पर्यटकों के लिए पूर्वोत्तर किसी स्वर्ग से कम नहीं है!

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