कहानी बीते दिनों की है -
तीन दशक होने को आया, दोबारा तुमसे मिल ना पाया ।
बात थोड़ी पुरानी है पिता जी छुट्टियों में आये थे। पिता जी फौज में कार्यरत थे, समय बीता छुट्टियाँ खत्म होने को आई तो पता चला कि इस बार माँ और मुझे भी बाहर जाना है तब ज़्यादा होश नहीं था लेकिन खुश तो जरूर था ।
पहली बार ट्रेन से सफर जो करना था, बहुत कुछ पहली बार हो रहा था । जाने से पहले हमलोग मेरे नाना नानी के घर गये, दो दिन बिताने के बाद वही से बाहर के लिए रवाना हो गए ।
घर से रेलवे स्टेशन के लिए निकले, साथ में मामा जी भी थे । स्टेशन पहुँचे तो पता चला गाड़ी आने वाली है और कुछ ही मिनटों में हमारी ट्रेन भी आ गई और पिता जी और मामा जी ने पहले सारा सामान और फिर हम सभी को ट्रेन के भीतर प्रवेश कराया ।
मैं बहुत ही खुश था, सभी लोग अन्दर आ चुके थे । मामा जी ने मुझे 10 रुपये का नोट दिया और आशीर्वाद देकर नीचे उतर गये । नीचे उतर कर वो मेरे लिए केला, बिस्कुट और पानी की बोतल ले आये और खिड़की के बाहर से ही मेरे हाथो में पकड़ा दिया, इतने में गाड़ी ने सिटी बजाई और सरपट दौड़ पड़ी ।
मैं एक टक निगाहों से खिड़की के बाहर मामा जी को देखता रहा जब तक मेरी आँखो से ओझल ना हो गये । हमारा सफर बहुत लंबा था, लगभग 24 घंटे की यात्रा के बाद हम पहुँचे रंगिया स्टेशन जो की आसाम में हैं ।
वहाँ उतरने के बाद हम सभी को 2 घंटे इंतजार करना पड़ा, सेना की गाड़ी आई जिसमे हम जैसे ही अलग अलग जगहों से आये फ़ौजी परिवार को ले जाना था । हम सभी ने बस में अपनी अपनी जगह सुरक्षित कर ली ।
थोड़ी देर में बस चली और फिर हमारा स्वागत हुआ पहाड़ो में, एक तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और दूसरी तरफ़ गहरी खाई । घंटो चलने के बाद हम पहुँच चुके थे स्वर्ग जैसी किसी जगह में । बचपन की बातें ज़्यादा याद तो नहीं लेकिन पिता जी जुबानी सुनी है किसी स्वर्ग से कम नहीं ये जगह 😊
#तवांग
#अरुणाचल_प्रदेश
मेरी कहानी मेरे पिता जी की जुबानी 😊🙏