अमृतसर पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण टूरिस्ट प्लेस है| टूरिस्ट अमृतसर शहर को देख कर वापस चले जाते हैं लेकिन अमृतसर के आसपास बहुत सारे ईतिहासिक गुरूद्वारा साहिब है जो देखने लायक है| इस पोस्ट में हम अमृतसर के आसपास के ईतिहासिक गुरूद्वारा साहिब की बात करेंगे अगर आप अमृतसर आते हो तो इन जगहों पर भी जरूर जाना|
दरबार साहिब तरनतारन का निर्माण गुरू अर्जुन देव जी ने करवाया, यह शहर अमृतसर से 25 किमी दूर हैं।
तरनतारन का सरोवर सभी गुरू द्वारो में सबसे बडा़ हैं।
मैंने अपनी डाक्टर की डिग्री तरनतारन से ही की हैं, 2006 से 2012 तक मैं तरनतारन में ही रहा हूँ। दरबार साहिब के दर्शन करके बहुत शांति मिलती हैं।
दरबार साहिब तरनतारन
पंचम गुरू अर्जुन देव जी ने अपने जीवन काल में दो शहरों का निर्माण करवाया तरनतारन और करतारपुर दुआबा। करतारपुर भी दो हैं, पहले करतारपुर साहिब को पहले गुरु नानक देव जी ने बसाया जहां वह जयोति जोत समाऐ 1539 ईसवीं में जो अब पाकिस्तान में हैं , जहां जाने के लिए करतारपुर कोरिडोर बना हुआ हैं, दूसरा करतारपुर दुआबा हैं जो जालंधर- अमृतसर जीटी रोड़ पर बसा हुआ एक ईतिहासिक शहर हैं जिसको गुरू अर्जुन देव जी ने बसाया। उसी तरह तरनतारन शहर को भी गुरु अर्जुन देव जी ने बसाया। गुरु जी ने दो गांव खारा और पलासौर की जमीन 1,57000 मोहरे देकर खरीदी और ताल की खुदवाई की और शहर की सथापना की जिसका नाम तरनतारन रखा गया। तरनतारन साहिब का सरोवर पंजाब के गुरुद्वारों में सबसे बड़ा सरोवर हैं। छठे गुरु हरिगोबिन्द जी और नौवें गुरु तेगबहादुर जी के भी मुबारक चरण इस पवित्र जगह पर पड़े हैं। तरनतारन सरोवर की परिक्रमा को शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने पकका करवाया और दरबार साहिब की ईमारत को सोने की मीनाकारी से नवीन रुप दिया। दरबार साहिब तरनतारन की ईमारत सामने से देखने से बिल्कुल हरिमंदिर साहिब अमृतसर की तरह लगती हैं कयोंकि सोने की मीनाकारी दोनों जगह पर महाराजा रणजीत सिंह ने करवाई हैं। दरबार साहिब तरनतारन सरोवर के एक कोने में बना हुआ हैं, जिसके पीछे विशाल सरोवर दिखाई देता है। दर्शनी डियूढ़ी के रास्ते से हम दरबार साहिब में प्रवेश करते हैं। दरबार साहिब तरनतारन का नकशा भी पंचम गुरु अर्जुन देव जी ने खुद बनाया हैं और हरिमंदिर साहिब अमृतसर का भी। महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र कंवर नौनिहाल सिंह ने दरबार साहिब की परिक्रमा के एक कोने में एक विशाल मीनार का निर्माण करवाया जहां से बहुत दूर तक सुरक्षा को मद्देनजर नजर रखी जा सकती थी। दरबार साहिब के दर्शन करके मन निहाल हो जाता हैं। यहां लंगर और रहने की उचित सुविधा हैं, अमृतसर से तरनतारन शहर की दूरी सिर्फ 25 किमी हैं, अमृतसर के साथ आप तरनतारन दरबार साहिब को भी अपने टूर में जरूर शामिल करें।
गुरुद्वारा बाबा बकाला साहिब
बाबा बकाला नाम का ईतिहासिक कसबा अमृतसर जिले में अमृतसर- जालंधर जीटी रोड़ से 5 किमी दूर, अमृतसर से 43 किमी और जालंधर से 47 किमी दूर हैं। सिख धर्म में बाबा बकाला साहिब का बहुत महत्व हैं। यहां पर नौवें गुरु तेग बहादुर साहिब जी के नानके ( नौनिहाल) थे, उनकी माता नानकी जी यहां की रहने वाले थी। बाबा बकाला में दरबार साहिब के साथ नौ मंजिला भोरा साहिब बना हुआ हैं, जहां गुरु तेगबहादुर साहिब जी ने 26 साल, 9 महीने और 13 दिन की कठोर तपस्या की थी। दोस्तों आप जब भी कभी गुरू तेगबहादुर साहिब के गुरूद्वारे में दर्शन करोगे तो आपको भोरा साहिब जयादातर जगहों पर मिलेगा कयोंकि गुरु साहिब बहुत बड़े तपस्वी थे हमेशा परमात्मा के साथ बिरती जोड़कर रखते थे यहां भी जमीन के नीचें एक भोरा साहिब बना हुआ हैं और उसके ऊपर नौवीं पातशाही को समर्पित नौ मंजिलें बनाई हुई हैं। दोस्तों आज नौवीं पातशाही गुरु तेगबहादुर जी का गुरतागददी दिवस है और गुरु जी को गुरगददी का तिलक भी बाबा बकाला साहिब के दरबार साहिब वाली जगह पर लगाया गया।
#गुरु_लाथो_रे
गुरु लाथो रे का अर्थ है, गुरु जी ढूंढ लिए हैं, दोस्तों बाला प्रीतम आठवें गुरु हरिकृष्ण जी जिनकी याद में दिल्ली में गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ हैं जब दिल्ली में जयोति जोत समाने लगे तो संगत ने कहा अगला गुरु कौन होगा तो गुरु हरिकृष्ण जी ने कहा "बाबा बकाले" ,, मतलब अगले गुरु जी बाबा बकाले में हैं, तब गुरु तेगबहादुर जी भोरा साहिब में तप कर रहे थे। बहुत सारे नकली गुरुओं ने भी बाबा बकाला में अपनी दुकान चला दी और अपने आप को गुरु कहना शुरू कर दिया। तब भाई मकखन शाह लुबाना जो बहुत बड़ा वयापारी था उसका समुद्री बेड़ा समुद्र में डूब रहा था तो उसने मन ही मन गुरूघर में अरदास की हे पातशाह मेरे डूबते हुए बेड़े को पार लगादो मैं आपके दर पर पांच सौ मोहरे चड़ायूगा। गुरू जी ने उसकी पुकार सुनी और उसका बेड़ा पार लग गया। जब उसे पता लगा कि अगले गुरु बाबा बकाला में हैं तब भाई मकखन शाह लुबाना बाबा बकाला आए और उन्होंने ने देखा यहां तो बहुत सारे गुरु बने हुए हैं। फिर वह हर नकली गुरु को पांच पांच मोहरे का माथा टेकता रहा, उसने सोचा जो असली गुरु होगा वह अपने आप पांच सौ मोहरे मांग लेगा, पर किसी ने भी ऐसे नहीं किया। जब वह वहां से निराश हो जाने लगा, तब किसी ने बताया यहां एक बहुत बड़ा तपस्वी हैं जो जयादा समय अपने भोरे में ही तपस्या करते रहते हैं, जब भाई मकखन शाह लुबाना ने गुरु जी के आगे पांच मोहरे का माथा टेका तो गुरू जी ने उसे अपना जख्मी कंधा दिखाते हुए कहा तेरा डूबता बेड़ा पार लगाते हुए मेरा कंधा जखमी हो गया हैं और तुम पांच सौ मोहरे की जगह पांच मोहरे दे रहा हैं। तब भाई मकखन शाह लुबाना बहुत खुश हो गए उनको सच्चा गुरु मिल गया था, उन्होंने छत के ऊपर चढ़ कर शोर मचा दिया, गुरु लाथो रे, असली गुरु मिल गए हैं। फिर बाबा बकाला दरबार साहिब में गुरु जी को तिलक लगाकर गुरगददी पर बिठाया गया। गुरूद्वारे के आंगन में ही मंजी साहिब नाम की जगह बनी हुई है जहां गुरु जी से नफरत करने वाले शीहें मसंद ने धीर मल के कहने पर गुरु जी पर गोली चलवा दी थी लेकिन सतगुरू जी बच गए थे। बाबा बकाला में रहने के लिए बहुत सुंदर सराय बनी हुई है जहां आपको पांच सौ रुपए में ac कमरा भी मिल जाता है। लंगर की भी उचित वयवस्था हैं। आप जब भी जालंधर से अमृतसर या अमृतसर से जालंधर जाऐंगे तब रास्ते में बाबा बकाला साहिब के दर्शन जरूर करना।
सिख धर्म का पहला तीर्थ
गोईदवाल साहिब
पंजाब टूरिज्म को प्रमोट करने वाली इस पोस्ट में आज हम यात्रा करेंगे पंजाब के जिला तरनतारन के गोईदवाल साहिब की जिसे दस में से सात गुरुओं की चरणछोह प्राप्त है। गोईदवाल साहिब सिख धर्म का पहला तीर्थ हैं जिसे तीसरे गुरु अमरदास जी महाराज ने दूसरे गुरू अंगद देव जी के आदेश पर बसाया था। गुरु अमरदास जी को 73 साल की उमर में गुरगद्दी मिली थी और 95 साल की उमर में वह गोईदवाल साहिब में ही जयोति जोत समा गए।
सिख धर्म में गोईदवाल साहिब के दर्शन का विशेष महत्व हैं, इसी शहर में पांचवें गुरू अर्जुन देव जी महाराज का जन्म हुआ। चौथे गुरु रामदास जी तीसरे गुरू जी के दामाद थे जिन्होंने अमृतसर शहर की सथापना की, पांचवें गुरू अर्जुन देव जी चौथे गुरू जी के पुत्र थे, बहुत सारे गुरूद्वारे हैं गोईदवाल साहिब में दर्शन के लिए।
गुरूद्वारा बाऊली साहिब
यह गोईदवाल साहिब का सबसे महत्वपूर्ण गुरूद्वारा हैं जहां 84 सीढियों वाली बाऊली बनाई तीसरे गुरू अमरदास जी ने सिख इस बाऊली में सनान करते हैं, बाऊली साहिब का जल बहुत पवित्र और ठंडा है। यह शहर बयास नदी के किनारे पर बसा हुआ है। तरनतारन से गोईदवाल साहिब की दूरी 23 किमी हैं, अमृतसर की दूरी 50 किमी हैं। गुरूद्वारा साहिब की ईमारत बहुत भव्य और शानदार हैं|
गुरुद्वारा चोहला साहिब
आज हम दर्शन करेंगे पंजाब के तरनतारन जिला के ईतिहासिक गुरुद्वारा चोहला साहिब की जो सिख धर्म के पांचवें गुरू अर्जुन देव जी महाराज से संबंधित हैं। तरनतारन जिले का सिख ईतिहास में बहुत महत्व हैं कयोंकि इस जिले में तरनतारन साहिब, गोईदवाल साहिब , खडूर साहिब , बीड़ बाबा बुढा जी आदि सिख धर्म के बड़े तीर्थ स्थल हैं। इसी तरनतारन जिले में तरनतारन शहर से 27 किमी , अमृतसर से 52 किमी और अमृतसर- बठिंडा हाईवे पर बसे सरहाली कस्बे से 5 किमी दूर एक ईतिहासिक गुरुद्वारा चोहला साहिब हैं।
गुरूद्वारा चोहला साहिब
पहले इस गांव का पुराना नाम भैणी था , जब पंचम पातशाह गुरु अर्जुन देव जी अपने परिवार के साथ इस गांव में आए और कुछ दिन रहे। गुरु जी के गांव में आगमन से श्रद्धालु बहुत खुश हुए एक तो ठंडे जल की तरह निरमल गुरू जी के दर्शनों का सौभाग्य मिल रहा था , दूसरा गुरूबाणी सुनने का अवसर मिल रहा था कयोंकि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में सबसे ज्यादा बाणी गुरु अर्जुन देव जी महाराज की हैं। एक दिन एक माई बड़े प्रेम से गुरू जी के लिए चूरी बना कर लेकर आई जिसमें रोटी को पीस कर उसमें शकर या गुड़ के साथ देसी घी या मख्खन मिला कर बनाया जाता हैं , जिसे इस ईलाके की सथानीय भाषा में "चोहला" कहा जाता था, गुरू जी माई की बनाई हुई चूरी या चोहला को ग्रहण करके बहुत प्रसंन हुए और उस चोहले को समर्पित परमात्मा की याद में एक शबद उच्चारण किया जिसमें गुरु जी ने हमारे रुह की खुराक भगवान का सिमरन हैं , यह चोहला भी भगवान का नाम हैं यह भी परमात्मा को समर्पित हैं। इस वजह से गांव भैणी का नाम भी उस चोहले की वजह से चोहला साहिब बन गया। आज यहां बहुत शानदार गुरुद्वारा बना हुआ है जिसे गुरुद्वारा चोहला साहिब कहा जाता हैं। इस गांव ने आजकल एक छोटे कस्बे का रुप धारण कर लिया है। इस कस्बे में तीन ईतिहासिक गुरुद्वारे बने हुए हैं। जिस जगह पर गुरु जी ने चोहला खाया था वहां चोहला साहिब और एक जगह पर गुरु जी अपनी पत्नी और परिवार के लिए कुछ दिन रुके थे वहां भी एक गुरुद्वारा बना हुआ है। गुरुघर में एक तसवीर भी लगी हुई हैं जिसमें एक माई गुरू जी के लिए चोहला बना कर लेकर आई हैं। बहुत सुंदर गुरुद्वारा हैं कभी तरनतारन जिले में आए तो दर्शन जरूर करना।
डेरा बाबा नानक
पंजाब के गुरदासपुर जिला में गुरू नानक देव जी से संबंधित ईतिहासिक गुरूद्वारा डेरा बाबा नानक की बात करेंगे। यह ईतिहासिक कसबा रावी नदी के पास भारत-पाकिस्तान बारडर पर सिथत हैं। मुझे भी दो तीन बार इस ईतिहासिक गुरूद्वारा साहिब के दर्शन करने का सौभाग्य मिला हैं।
गुरूद्वारा डेरा बाबा नानक
दोस्तों गुरू नानक देव जी 22 सितंबर 1539 ईसवी को करतारपुर साहिब (पाकिस्तान ) में जयोति जोत समा गए, गुरु जी की याद में उनके पूत्र बाबा श्री चंद्र जी ने गुरू जी के नाम पर डेरा बाबा नानक कसबा बसाया, आज भी इस शहर की गलियों में गुरू नानक देव जी के वंश की पीढियों से संबंधित परिवार आज भी यहां रहते हैं। जिस जगह पर दरबार साहिब डेरा बाबा नानक बना हुआ हैं वहां एक कुयां हुआ करता था जहां गुरु नानक देव जी अपने परम सेवक अजित रंधावा से मिलने आया करते थे। इस जगह पर पंचम गुरू अर्जुन देव जी भी आए है। इसी शहर में गुरु नानक देव जी का एक चोला भी पड़ा हुआ हैं जो गुरू जी को बगदाद यात्रा के समय वहां के काजियों ने भेंट किया था, ऐसे ईतिहासिक सथल की यात्रा से जीवन सफल हो जाता हैं।
दोस्तों करतारपुर कोरिडोर का रास्ता भी डेरा बाबा नानक से ही शुरू होता हैं। डेरा बाबा नानक के दर्शन करके हम भारत-पाकिस्तान बारडर पर गए| रावी नदी दोनों देशों की सरहद बनाती हैं, बरसात में यह नदी भारी तबाही मचाती हैं इसलिए मिट्टी का बांध बनाया हुआ हैं, बारडर के पास, सारा प्रबंधन B.S.F के पास है जब हमारी गाड़ी वहां पहुंची तो हमारा नाम पता, गाड़ी नंबर नोट करके हमें आगे जाने दिया। आरमी की कंटीन में हमें चाय पी एक ऊंचे वियू टावर पर चढ़ कर एक दूरबीन से गुरू द्वारा करतारपुर साहिब पाकिस्तान के दर्शन किए, मन बहुत खुश हुआ चाहे दूर से ही सही लेकिन गुरू घर के दर्शन हो गए। फिर हम वापिस घर की ओर चल पड़े।
अब तो करतारपुर कारिडोर बन गया जब वाहेगुरु चाहेगा करतारपुर साहिब की यात्रा भी करने की इच्छा है
कैसे पहुंचे- डेरा बाबा नानक गुरदासपुर से 35 किमी अमृतसर से 55 किमी मेरे घर से 180 किमी और चंडीगढ़ से 260 किमी दूर है। बस मार्ग से सारे पंजाब से जुड़ा हुआ है। रेल भी जाती हैं अमृतसर से। रहने के लिए गुरूदारा में कमरे भी बने हुए हैं। जब अमृतसर जाए तो एक दिन डेरा बाबा नानक का भी रख ले।