भारत के 10 प्रसिद्ध ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब जिनकी यात्रा आपको जरूर करनी चाहिए|

Tripoto
15th Apr 2024
Photo of भारत के 10 प्रसिद्ध ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब जिनकी यात्रा आपको जरूर करनी चाहिए| by Dr. Yadwinder Singh

सिख धर्म से संबंधित भारत में बहुत सारे ईतिहासिक गुरुद्वारे है जिसमें से ज्यादातर गुरुद्वारा साहिब पंजाब में है| आज हम इस पोस्ट में भारत के दस दर्शनीय गुरुद्वारा साहिब के बारे में जानेगे|

1. गोल्डन टैंपल अमृतसर
यह सिख धर्म का सबसे पवित्र गुरुद्वारा साहिब है| इसको श्री हरिमन्दिर साहिब और श्री दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है| गोल्डन टैंपल अमृतसर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है| इस गुरुद्वारा साहिब के ऊपर सोना लगा हुआ है जिस वजह से स्वर्ण मंदिर के नाम से भी यह जगह प्रसिद्ध है| इस पवित्र गुरुद्वारा साहिब का निर्माण सिख धर्म के चौथे गुरु रामदास जी ने 1585 ईसवीं में शुरू करवाया था जिसको बाद में उनके बेटे पांचवे सिख गुरु अर्जुन देव जी ने पूरा किया| यह ईतिहासिक गुरुद्वारा एक पवित्र सरोवर के बीच में बना हुआ है| इस पवित्र सरोवर के नाम से ही अमृतसर शहर का नाम पड़ा है| इस गुरुद्वारा साहिब में सोना शेर ए पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने लगाया था| पूरे विश्व से लोग और श्रदालु इस महान तीर्थ स्थल के दर्शन करने के लिए आते है|

गोल्डन टैंपल अमृतसर

Photo of गोल्डन टेम्पल by Dr. Yadwinder Singh

गोल्डन टैंपल अमृतसर का रात में खूबसूरत दृश्य

Photo of गोल्डन टेम्पल by Dr. Yadwinder Singh


2.तख्त श्री हरिमंदर जी
पटना साहिब
सिख धर्म में पांच तख्त हैं जिसमें से एक तख्त बिहार की राजधानी पटना शहर की धरती पर हैं, जिसे तख्त श्री हरिमंदर जी पटना साहिब कहते हैं। इस पवित्र जगह पर साहिब ए कमाल श्री गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज का जन्म 22 दिसंबर 1666 ईसवीं को हुआ। आपके पिता जी नवम गुरू तेग बहादुर जी और माता गुजरी जी थे। हर सिख गुरू जी के आदर में पटना शहर को पटना साहिब के नाम से बुलाता हैं। गुरू गोबिंद सिंह जी का बचपन पटना शहर में ही बीता। गुरू जी ने अपने बचपन की बाल लीला इसी शहर में की, तकरीबन 6 या 7 साल गुरू जी ने पटना शहर में बिताए। तख्त श्री हरिमंदर साहिब की ईमारत बहुत खूबसूरत बनी हुई हैं, यहां गुरु जी के साथ संबंधित बहुत सारी ईतिहासिक वस्तुओं को संभाल कर रखा हुआ हैं। यहां संगत के रहने के लिए सराय और खाने के लिए लंगर का उत्तम प्रबंध हैं। जब भी आप पटना जाए तो गुरू गोबिंद सिंह महाराज की जन्मभूमि को नमन करना मत भूलना।

गुरुद्वारा पटना साहिब

Photo of पटना साहिब by Dr. Yadwinder Singh


3. तख्त श्री केशगढ़ साहिब
आनंदपुर साहिब जिला रोपड़
तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर साहिबपंजाब के जिला रोपड़ में चंडीगढ़ से 90 किमी और रोपड़ से 45 किमी दूर हैं। सिख ईतिहास में आनंदपुर साहिब का बहुत महत्व है, यहां दर्शन करने के लिए बहुत ईतिहासिक गुरुद्वारे और किले हैं। आनंदपुर साहिब को नौवें पातशाह गुरु तेग बहादुर जी ने कहलूर रियासत ( बिलासपुर) के राजा से जमीन खरीद कर बसाया था।  इसी पवित्र धरती पर मुगलों के आतंक से परेशान हो कर कशमीरी पंडित गुरु तेग बहादुर जी के पास फरियाद लेकर आए थे, यहां पर ही गुरु गोबिंद सिंह जी के तीन साहिबजादों का जन्म हुआ। इसी पवित्र धरती पर गुरु जी ने पांच किले बनवाए। इसी धरती पर गुरु गोबिंद सिंह जी को गुरगद्दी मिली, इसी धरती पर गुरु तेगबहादुर जी के सीस का अंतिम संस्कार हुआ। कभी आनंदपुर साहिब के गुरुद्वारा साहिब की यात्रा और ईतिहास के बारे में विस्तार में लिखूंगा। आनंदपुर साहिब के ईतिहासिक गुरुद्वारों की लिस्ट बहुत लंबी हैं। आज हम बात करेंगे आनंदपुर साहिब के सबसे महत्वपूर्ण सथल तख्त श्री केशगढ़ साहिब की।
तख्त श्री केशगढ़ साहिब ः
केशगढ़ साहिब एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। इसी जगह पर साहिबे कमाल कलगीधर पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ईसवीं की बैशाखी पर खालसा पंथ की सथापना की। आज केशगढ़ साहिब सिख धर्म के पांच सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक हैं। 1699 ईसवीं की बैशाखी को एक भारी इकट्ठ को संबोधित करते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक शीश की मांग की जो जुल्म के खिलाफ लड़ सके, एक एक करके पांच शिष्य आगे आकर  अपने शीश गुरु जी को देने के लिए आगे बढ़े। बाद में यहीं पांच शिष्य गुरु जी के पांच पयारे बने। जिनके नाम निम्नलिखित हैं...
भाई धरम सिंह
भाई दया सिंह
भाई मोहकम सिंह
भाई हिम्मत सिंह
भाई साहिब सिंह
गुरु जी ने इन पांच शिष्यों को अमृत छकाया और खालसा पंथ की सथापना की। आज भी देश विदेश से श्रद्धालु केशगढ़ साहिब में माथा टेकने आते हैं। केशगढ़ साहिब की ईमारत बहुत शानदार और विशाल हैं। केशगढ़ साहिब गुरु जी का एक किला भी था, दूर से देखने पर आपको सफेद रंग के किले के रूप में दिखाई देगी केशगढ़ साहिब की ईमारत। केशगढ़ साहिब के अंदर गुरु ग्रंथ साहिब जी एक सुंदर पालकी में बिराजमान हैं। वहीं अंदर दरबार में गुरु जी के बहुत सारे ईतिहासिक शस्त्र भी संगत के दर्शनों के लिए रखे हुए हैं, जैसे खंडा, कटार, सैफ, बंदूक,नागिनी बरछा आदि। इसके साथ गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के पवित्र केश और एक कंघा भी रखा हुआ है। यहां पर रहने की और लंगर की उचित वयवस्था हैं। जब भी आप पंजाब घूमने आए तो इस ईतिहासिक धरती को नमन करने आनंदपुर साहिब जरूर जाना।

तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब

Photo of केशगढ़ साहिब by Dr. Yadwinder Singh


4. तख्त श्री दमदमा साहिब
तलवंडी साबो जिला बठिंडा
इस पवित्र जगह को नौवें गुरु तेग बहादुर जी और दसवें पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी की चरण छोह प्राप्त हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज आनंदपुर साहिब से चल कर चमकौर साहिब के युद्ध के बाद माछीवाड़ा, रायकोट, मुक्तसर के युद्ध के बाद जनवरी 1705 ईसवीं में यहां आए थे और इसी जगह पर उन्होंने अपना कमरकसा खोल कर दम लिया था , तभी यह जगह दमदमा साहिब के नाम से मशहूर हो गई। गुरु जी यहां नौ महीने से भी जयादा समय तक रहे। इसी पावन धरती को गुरु काशी का वर दिया जहां आज सिख धर्म की शिक्षा के  संस्थान और यूनिवर्सिटी बनी हुई है। इस पावन धरती पर ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई मनी सिंह जी से श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के पावन सरूप को संपूर्ण करवाया। यहां पर ही शहीदां मिसल के सरदार शहीद बाबा दीप सिंह जी की देख रेख में गुरूबाणी पढ़ने लिखने सीखने के लिए एक टकसाल शुरू की गई । बाबा दीप सिंह जी की याद में यहां सुंदर बुरज बना हुआ है। यहां पर संगत के दर्शन के लिए बहुत ईतिहासिक वस्तुओं को रखा गया है जो गुरूओं से संबंधित हैं जैसे
1. श्री साहिब पातशाही नौंवी
2. निशाना लगाने वाली बंदूक
3. तेगा बाबा दीप सिंह ।
तखत साहिब के आसपास बहुत सारे ईतिहासिक गुरूद्वारे भी दर्शनीय है।
जैसे गुरूद्वारा लिखन सर
गुरूद्वारा जंड सर
गुरूद्वारा महँल सर
गुरूद्वारा बाबा बीर सिंह धीर सिंह
गुरूद्वारा माता सुंदरी जी
बुरज बाबा दीप सिंह
तखत श्री दमदमा साहिब की ईमारत बहुत आलीशान हैं। यहां पर रहने के लिए बहुत सारी सरांय बनी हुई है। लंगर की उचित सुविधा हैं। आप जब भी पंजाब आए तो केवल अमृतसर घूम कर वापिस मत चले जाना । पंजाब के दक्षिण भाग के शहर बठिंडा को भी अपने टूर में शामिल कर लेना। तखत दमदमा साहिब बठिंडा शहर से 30 किमी दूर हैं। यहां की बैशाखी बहुत मशहूर हैं , गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी 1705 ईसवी की बैशाखी यहां मनाई थी।

तख्त श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो जिला बठिंडा पंजाब

Photo of Takht Shri Damdama Sahib, Talwandi Sabo by Dr. Yadwinder Singh

5.

5.  सचखंड श्री हजूर साहिब
नादेंड महाराष्ट्र 
महाराष्ट्र के नादेंड शहर में तख्त  सचखंड श्री हजूर साहिब गुरुद्वारा है| इस ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब का नाम भी सिख धर्म के पांच तख्त साहिब में नाम आता है| सचखंड श्री हजूर साहिब को अबिचल नगर भी कहा जाता है| इस गुरुद्वारे का ईतिहास दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ता है| इसी जगह पर 7 अकतूबर 1708 ईसवीं में गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ज्योति जोत समाए थे| गुरु जी ने अपने जीवन का अंतिम समय इसी जगह पर गुजारा था| इसी जगह पर ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुदगदी गुरु ग्रंथ साहिब को सौंप थी ती और गुरु ग्रंथ साहिब को ही अगला गुरु घोषित कर दिया था | यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था "सब सिखन को हुक्म है गुरु मानियो ग्रंथ" महाराष्ट्र का नादेंड शहर गोदावरी नदी के तट पर बसा हुआ है| हजूर साहिब वह पवित्र गुरुद्वारा है जहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का अंतिम संस्कार हुआ था| नादेंड में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने बाबा बंदा सिंह बहादुर को सिंह सजाकर पंजाब के लिए भेजा था| नादेंड में आकर आपको ऐसा लगेगा जैसे आप पंजाब में घूम रहे हो| नादेंड शहर में बहुत सारे ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब है |नादेंड शहर में देखने लायक कुछ गुरुद्वारे इस प्रकार है|
गुरुद्वारा लंगर साहिब
गुरूद्वारा संगत साहिब
गुरुद्वारा माल टेकड़ी साहिब
गुरुद्वारा हीरा घाट साहिब
गुरुद्वारा नगीना घाट साहिब
गुरुद्वारा बंदा घाट साहिब
गुरुद्वारा माता साहिब कौर जी
गुरुद्वारा शिकार घाट साहिब
गुरुद्वारा गोबिंद बाग साहिब
आप नादेंड में इन ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब के दर्शन कर सकते हो| लोकल गुरुद्वारा दर्शन के लिए गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से एक बस भी चलाई जाती है जो बहुत मामूली शुल्क से आपको लोकल गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करवा देती है| इसके अलावा नादेंड में लोकल गुरुद्वारा साहिब दर्शन करने के लिए आप टैक्सी भी कर सकते हो| मुझे नादेंड जाने का और सचखंड श्री हजूर साहिब के दर्शन करने का बहुत बार सौभाग्य मिला है कयोंकि मैंने होमियोपैथी में एम डी की डिग्री नादेंड महाराष्ट्र के पास परभणी शहर से की है|
नादेंड महाराष्ट्र का एक शहर है| नादेंड महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से 617 किमी, औरंगाबाद से 285 किमी और तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से 275 किमी दूर है| नादेंड आप बस मार्ग, रेल मार्ग और वायु मार्ग से पहुंच सकते हो| नादेंड रेलवे मार्ग से पंजाब के अलग अलग शहरों जैसे अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, चंडीगढ़, बठिंडा से जुड़ा हुआ है| मुम्बई, नागपुर, दिल्ली, हैदराबाद, अहमदाबाद आदि जगहों से भी आप रेल मार्ग से यहाँ पहुंच सकते हो| नादेंड में गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर एयरपोर्ट भी बना हुआ है जो अमृतसर, चंडीगढ़ और मुंबई से वायु मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है| नादेंड में रहने के लिए बहुत सारी सराय आदि बनी हुई है| जहाँ आप एसी रुम से लेकर साधारण रुम आदि बुक कर सकते हो| नादेंड में बहुत सारे गुरुद्वारा साहिब है जहाँ आपको लंगर की सुविधा मिलेगी| नादेंड रेलवे स्टेशन पर जैसे पंजाब से कोई रेलगाड़ी पहुंचती है तो गुरुद्वारा ट्रस्ट की बस संगत को बस में बैठाकर गुरुद्वारा साहिब पहुंचा देती है वह भी बिलकुल मुफ्त में|

तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब नांदेड़ महाराष्ट्र

Photo of तखत सचखंड श्री हजुर साहिब by Dr. Yadwinder Singh

तख्त सचखंड श्री हजूर साहिब

Photo of तखत सचखंड श्री हजुर साहिब by Dr. Yadwinder Singh


6.दरबार साहिब तरनतारन
जिला तरनतारन पंजाब
पंचम गुरू अर्जुन देव जी ने अपने जीवन काल में दो शहरों का निर्माण करवाया तरनतारन और करतारपुर दुआबा। करतारपुर भी दो हैं, पहले करतारपुर साहिब को पहले गुरु नानक देव जी ने बसाया जहां वह जयोति जोत समाऐ 1539 ईसवीं में जो अब पाकिस्तान में हैं , जहां जाने के लिए करतारपुर कोरिडोर बना हुआ हैं, दूसरा करतारपुर दुआबा हैं जो जालंधर- अमृतसर जीटी रोड़ पर बसा हुआ एक ईतिहासिक शहर हैं जिसको गुरू अर्जुन देव जी ने बसाया। उसी तरह तरनतारन शहर को भी गुरु अर्जुन देव जी ने बसाया। गुरु जी ने दो गांव खारा और पलासौर की जमीन 1,57000 मोहरे देकर खरीदी और ताल की खुदवाई की और शहर की सथापना की जिसका नाम तरनतारन रखा गया। तरनतारन साहिब का सरोवर पंजाब के गुरुद्वारों में सबसे बड़ा सरोवर हैं। छठे गुरु हरिगोबिन्द जी और नौवें गुरु तेगबहादुर जी के भी मुबारक चरण इस पवित्र जगह पर पड़े हैं। तरनतारन सरोवर की परिक्रमा को शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने पकका करवाया और दरबार साहिब की ईमारत को सोने की मीनाकारी से नवीन रुप दिया। दरबार साहिब तरनतारन की ईमारत सामने से देखने से बिल्कुल हरिमंदिर साहिब अमृतसर की तरह लगती हैं कयोंकि सोने की मीनाकारी दोनों जगह पर महाराजा रणजीत सिंह ने करवाई हैं। दरबार साहिब तरनतारन सरोवर के एक कोने में बना हुआ हैं, जिसके पीछे विशाल सरोवर दिखाई देता है। दर्शनी डियूढ़ी के रास्ते से हम दरबार साहिब में प्रवेश करते हैं। दरबार साहिब तरनतारन का नकशा भी पंचम गुरु अर्जुन देव जी ने खुद बनाया हैं और हरिमंदिर साहिब अमृतसर का भी। महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र कंवर नौनिहाल सिंह ने दरबार साहिब की परिक्रमा के एक कोने में एक विशाल मीनार का निर्माण करवाया जहां से बहुत दूर तक सुरक्षा को मद्देनजर नजर रखी जा सकती थी। दरबार साहिब के दर्शन करके मन निहाल हो जाता हैं। यहां लंगर और रहने की उचित सुविधा हैं, अमृतसर से तरनतारन शहर की दूरी सिर्फ 25 किमी हैं, अमृतसर के साथ आप तरनतारन दरबार साहिब को भी अपने टूर में जरूर शामिल करें।

दरबार साहिब तरनतारन

Photo of Tarn Taran Sahib by Dr. Yadwinder Singh


7. गुरूद्वारा पाँवटा साहिब
हिमाचल प्रदेश

सिख धर्म में पाँवटा साहिब का बहुत महत्व हैं, दसवें गुरू गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन के 4 साल यहां गुजारे हैं। गुरू जी यहां नाहन रियासत के राजा मेदनी प्रकाश के बुलावे पर आनंदपुर साहिब से यहां आए थे। पूरे विश्व में पाँवटा साहिब ही एक ऐसा शहर हैं जिसको गुरू जी ने खुद बसाया और खुद ही नाम रखा पाँवटा
पाँवटा का मतलब होता है, पाँव टिकाना
यमुना नदी भी साथ ही बहती हैं गुरू द्वारा के, यही पर गुरू जी के बडे़ पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह का जनम भी यही हुआ था। गुरू गोबिंद सिंह जी संत सिपाही थे, कलम और तलवार दोनों के धनी थे, गुरू जी यहां कवि सम्मेलन करवाया करते थे। उनके पास 52 कवि थे। यहाँ पर लंगर और रहने की उचित सुविधा है|

गुरुद्वारा पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश

Photo of गुरुद्वारा पांवटा साहिब by Dr. Yadwinder Singh

8. गुरुद्वारा बंगला साहिब
दिल्ली
इस गुरुद्वारा साहिब का नाम दिल्ली के प्रसिद्ध गुरुद्वारा साहिब में शुमार है| गुरुद्वारा बंगला साहिब सिख धर्म के आंठवे गुरु हरिकिशन जी से संबंधित है| यह जगह पहले जयपुर के महाराज का बंगला थी उसी नाम से इस गुरुद्वारा साहिब का नाम गुरुद्वारा बंगला साहिब रख दिया गया है| गुरुद्वारा बंगला साहिब की शानदार ईमारत बनी हुई है| इस गुरुद्वारा साहिब का निर्माण सिख जरनैल सरदार बघेल सिंह ने 1783 ईसवीं में करवाया था| गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली के कनाट पलेस क्षेत्र के पास बना हुआ है| इस गुरुद्वारा साहिब में सुंदर सरोवर बना हुआ है| गुरु हरिकिशन जी राजा जय सिंह के बंगले में रुके थे जिस जगह पर गुरुद्वारा साहिब बना हुआ है|

गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली

Photo of Gurudwara Sri Bangla Sahib by Dr. Yadwinder Singh

9. गुरुद्वारा शीश गंज साहिब
यह ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर जी महाराज से संबंधित है| इस जगह गुरु तेगबहादुर जी की शहादत को समर्पित है| इस जगह पर गुरु तेगबहादुर जी महाराज को 1675 ईसवीं में औरगंजेब के हुक्म से शहीद किया था| हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी महाराज ने अपना बलिदान दिया था जिस वजह से उनको हिंद की चादर भी कहा जाता है| यह ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब दिल्ली के चांदनी चौक में मौजूद है| हर रोज हज़ारों श्रदालु गुरु तेगबहादुर जी को नमन करने के लिए इस गुरुद्वारा साहिब में आते है|

गुरुद्वारा शीश गंज साहिब दिल्ली

Photo of Gurudwara Sis Ganj Sahib by Dr. Yadwinder Singh

10  गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब
उतराखंड
यह खूबसूरत गुरुद्वारा साहिब उतराखंड के चमोली जिले में 4632 मीटर ( 15,192 फीट) की ऊंचाई पर हेमकुंड सरोवर के किनारे पर बना हुआ है| इस गुरुद्वारा साहिब के पास सात चोटियाँ है| कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पिछले जन्म में तपस्या की थी| इस बात का जिक्र गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी लिखी हुई रचना बचित्र नाटक में लिखा है|इस गुरुद्वारा साहिब में पहुंचने के लिए आपको गोबिंद घाट से पैदल चढ़ाई करके ही आ सकते हो|

गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब उतराखंड

Photo of Gurudwara shri hemkunt sahib ji by Dr. Yadwinder Singh

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