मेरा नाम आदित्य है.. और मै मूलतः एक Theatre Artist (रंगकर्मी ) हूं, मै मूलरूप से बिहार का रहने वाला हूं. लेकिन पिछले 10 सालो से भोपाल (मध्य प्रदेश)मे रहता हूं, रंगमंच मे नाटकों के मंचन और कविताओं के प्रति दिवानगी ने मुझे हिंदुस्तान के अनेक शहरों और मंच तक पहुंचाया | ऐसा ही एक वाक्या मेरे साथ पिछले साल हुआ. जब मै और मेरे तीन दोस्तों को एक डॉक्यूमेंट्री शूट के लिए पाटनगढ़, डिंडोरी (m.p)जाना था |
और किसी कारणवश हमारी ट्रेन छूट गयी, फिर हमने डिसाइड किया की हमें कार से निकलना पड़ेगा, क्यूंकि वो प्रोजेक्ट हमारे लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट था, तो हम निकल पड़े एक बेहतरीन और दिलचस्प सफर पर | दूसरे दिन दोपहर को जब हमलोग जबलपुर पहुंचे तो हमें मालुम चला की हमारे एक कॉमन फ्रेंड की शादी है, और वो भी जबलपुर मे उसी शाम को, तो हमने डिसाइड किया की जब हमलोग जबलपुर में हैं, तो क्यूं ना शादी अटेंड की जाये, हालांकि शादी शाम को थी और हमारे पास अभी बहुत टाइम था, तो हमलोग निकल पड़े जबलपुर दर्शन को और कुछ देर के बाद हम पहुचे भेड़ाघाट जलप्रपात और वहां स्नान करना मतलब शरीर के साथ आत्मा को भी तृप्ति मिलना |और जब स्नान करने के पश्चात हमें भूख लगी तो हम पहुंच गए मदन-महल के पास और हमने वहां जबलपुर की बेहतरीन कचौड़ीया खायी, और उसके बाद हमलोग होटल की ओर निकल पड़े, जहां की हमारे दोस्त की शादी थी |
रात को शादी अटेंड करने के बाद सुबह हमलोग अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े, उसी दिन शाम को हमलोगो पाटनगढ़ पहुचे, हालांकि फरबरी का महीना था तो शाम को जब तक हमलोग पहुंचे तो अंधेरा हो चूका था, और हमारे रुकने का इंतज़ाम वहीं निर्माणाधीन रेस्ट हाउस में किया गया |रात में हमलोगों को जब भूख लगी तो हमने बिस्किट और पानी पीकर काम चलाया, खैर दूसरी सुबह हमें मालूम चला की हम कितनी बेहतरीन जगह पर आए हुए है, चारो तरफ पहाड़ और जंगल के अलावा कुछ और था तो वो थी सिर्फ लहलहाती खेत, और आदिवासी समुदाय | वही आदिवासी समुदाय जिन्होंने अपनी कला (गोंड पेंटिंग)के दम पर पुरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, और हमलोग वहां पर गोंड पेंटिंग के उपर ही डॉक्यूमेंट्री बनाने गए हुए थे, और हमारा काम ख़त्म होने के बाद उन्होंने हमें अपना गांव घुमाया, खाना खिलाया और प्यार और सम्मान के साथ होमलोगो को विदा किया |और दूसरी बात ये थी की जहां हमलोग गए थे वहां से अमरकंटक की दुरी मात्र 30 km थी, तो हमने सोचा चलो यार जब यहाँ आ ही गए तो अमरकंटक भी घूम आते है, और हमारी गाड़ी निकल पड़ी अमरकंटक की ओर |
और अमरकंटक पहुंचते -पहुंचते रात हो चुकी थी, यू तो कहने को पाटनगढ़ से अमरकंटक की दुरी मात्र 30 किलोमीटर है, लेकिन उस 30 km के दरम्यान प्रकृति और वन्य जीवों का जो अद्भुत समन्वय और तालमेल है वो बरबस ही आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है, और हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, और फिर हम कुछ यूं दीवाने हुए उन प्राकृतिक छटाओ के, की हमें समय का भान ही नहीं रहा |खैर जब हम अमरकंटक पहुंचे तो अंधेरा तो हो ही चूकी था, लेकिन हमारे लिए राहत की बात ये थी हमारे ठहरने का इंतज़ार एक राजनैतिक पार्टी के गेस्टहाउस में हो चूका था, क्यूंकि हमारा एक दोस्त जो की राजनैतिक परिवार से ताल्लुक रखता था ये उसी की जुगाड़ थी |
फिर दूसरे दिन प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत होकर नास्ता करने के पश्चात हम निकल पड़े भ्रमण पर,
और फिर हम रूबरू हुए अमरकंटक की हसीन वादियों से,
अमरकंटक - एक ऐसा पवित्र स्थान जहां नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थल है, और अनेकों ऋषि-मुनियों की तपोभूमि सहित कबीर दास का अद्भुत संसार, एक ऐसा स्थान जहां पर्वत, जल और जंगल का अद्भुत मिलन होता है |
अमरकंटक में हमारे यात्रा की शुरुआत होती है,
"कपिलधारा" से फिर उसके बाद "दूधधारा" तत्पश्चात हमने "श्री जलेश्वर महादेव" के दर्शन किये फिर उसके बाद हमलोग गए कबीर दास की साधना स्थली "कबीर चबूतरा'', वहां के वातावरण में कुछ तो खास था, युहीं वो कबीर दास की साधना स्थली नहीं थी, एक अद्भुत और आलौकिक शांति की अनुभूति हमें उस स्थान पर हो रही थी, फिर वापस हमलोग गेस्ट-हॉउस की ओर निकल पड़े, हमने वहां जाकर खाना खाया और थोड़ी देर आराम करने के बाद हम फिर निकल पड़े घूमने को |
इस बार हम पहुचे सबसे पहले "सर्वोदय दिगम्बर जैन मंदिर", फिर उसके बाद "श्री यंत्र मंदिर" और फिर हम पहुंचे अद्भुत और अद्वितीय "कलचुरी की प्राचीन मंदिर", तब तक शाम हो चुकी थी और हमें किसी ने बताया की पास ही मे,
"माँ नर्मदा जी" का मंदिर है, और अभी थोड़ी देर में वहां नर्मदा जी की आरती आरम्भ होने वाली है, और अगर आप अमरकंटक में हो और नर्मदा मैया की आरती में भाग नहीं लिया, तो फिर क्या फायदा अमरकंटक जाने का.?
फिर क्या था हम भी पहुंच गए नर्मदा जी से आशीर्वाद लेने, आरती के पश्चात हमने प्रसाद ग्रहण किया,
और वापस लौट आए अपने गेस्ट-हाउस में |
अमरकंटक में बिताया गया एक-एक पल हमारे दिल और दिमाग़ में हमेशा के लिए रेखांकित हो चुकी थी...|
धन्यवाद...