आज के इस यात्रा चिट्ठे में मै आपको मेरे अनुभव के आधार पर अलवर में घूमने लायक जगह के बारे में बताऊंगी जो की शायद आपकी अलवर यात्रा में मददगार साबित होंगी|
अलवर में घूमने लायक जगह
अलवर का इतिहास :- दरअसल मै जब अलवर गयी थी तब तक मै इस शहर के नाम के अलावा कुछ भी नहीं जानती थी , यात्रा से पहले अलवर की कुछ तस्वीर इन्टरनेट पर जरुर देखी थी मगर वास्तव में उन जगह पर घूमने के बाद पता चला की अलवर वाकई में चमत्कारों से भरा पड़ा है| इस शहर की धरोहरों का अपना एक अलग ही आर्किटेक्चर है जो की राजस्थान की अन्य धरोहरों से काफी अलग है |
अलवर शहर के इतिहास की बात करे तो लघभघ 1000 साल पहले अलवर शहर को आमेर के राजा ने बसाया था और उस समय अलवर को अलपुर कहा जाता था, कुछ इतिहासकारों की माने तो अलवर महाभारत काल में मत्स्य नगर नामक एक क़स्बा था जिसे राजा विराट ने बसाया था| मगर महाभारत काल से शहर के बसे होने के कुछ खास प्रमाण नहीं मिलते इसलिए अलवर को 1000 साल पुराना ही माना जाता है| आमेर के राजा के बाद समय समय पर कई अन्य राजपूत रियासतों ने अलवर पर राज किया जिनमे से प्रमुख थी निकुम्भ राजपूत और बद्गुज्जर राजपूत , बद्गुज्जरो से बाद में कच्छवाहा राजपूतो युद्ध जीत कर अलवर छीन लिया और लघभग दो सदी तक राज किया|
कुछ समय बाद भरतपुर के जाट और मराठो ने अलवर पर कब्ज़ा जमाया, मगर वो ज्यादा दिन टिक न सके और राजा प्रताप सिंह ने उन्हें अलवर से खदेड़ दिया और वर्तमान अलवर शहर की स्थापना की| 16वी सदी में उत्तर भारत पर राज करने वाले एकमात्र हिन्दू सम्राट हेमू का जनम भी अलवर में ही एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, हेमू ने मुगलों से दिल्ली का तख़्त छीनने के अलावा अपने जीवन काल में कुल 22 युद्ध जीते | ये तो था अलवर का इतिहास अब बात अलवर में घूमने लायक जगह की तो अाइए जानते है।
मूसी महारानी की छतरी
मूसी महारानी की छतरी मेरे सफ़र का पहला पडाव था। यहाँ से बताते है सूर्यास्त का सबसे हसीन नजारा दिखता है| खैर मैं यहां नवंबर में गई थी तो कोहरे के वजह से सूर्यास्त साफ़ नहीं दिखा मगर खुबसूरत इमारत को देखने के बाद इस बात का कतई अफ़सोस नहीं , छतरी के इतिहास की बात करे तो सन 1815 में महाराज विनय सिंह जी ने इसे अपने पिता बख्तावर सिंह और उनकी रानी मूसी की याद में बनवाया था| छतरी दो मंजिला है और इसे बनाने में लाल पत्थर का इस्तेमाल हुआ है जो मुगलों का पसंदीदा पत्थर था। मूसी रानी की छतरी की दूसरी मंजिल संगमरमर से बनी है जिसकी वास्तुकला हिन्दू और इस्लामी भवन निर्माण शैली का मिश्रण है , छतरी का गोल गुम्बद और मेहराब मुस्लिम वास्तुकला की निशानी है जबकि अंदर छतो पर बनी नक्काशी हिन्दू वास्तुकला का उदाहरण है| छतरी के पास बना विनय सागर और सामने अरावली की पहाड़ी मानो पर्यटकों के लिए दावत है , उनकी वजह से छतरी के आकर्षण और भी बढ़ जाता है |
सिटी पैलेस अलवर
छतरी के बिलकुल पास में है सिटी पैलेस अलवर, कहने को तो ये जगह अलवर का सरकारी म्यूजियम है मगर वर्तमान समय में यहाँ निचले तल पर जिला कलेक्टर साहब का दफ्तर बन गया है | म्यूजियम में अकबर और औरंगजेब की तलवारों के साथ मोहम्मद गोरी की तलवार भी रखी है , यहाँ का मुख्य आकर्षण है दो म्यान वाली तलवार| सिटी पैलेस को अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह ने 1793 में बनवाया था और इसे विनय विलास महल भी कहते है | सिटी पैलेस के इतिहास के बारे में और कुछ ख़ास जानकारी यहाँ मौजूद नहीं है बाकी सरकारी दफ्तर होने के वजह से महल के निचले तल में जाने की अनुमति नहीं है वरना इस तल के कक्ष में बाबर के जीवन यात्रा की खुबसूरत चित्रकारी बनी हुई है | सिटी पैलेस में स्वर्णिम दरबार हॉल और संगमरमर का मंडप भी है जिसे देखने में कोई मनाही नहीं है सिटी पैलेस से घूमकर निकली तब तक शाम हो चुकी थी इस लिए बाला किला देखने जाने की योजना मैंने अगले दिन बनाई |
बाला किला – अलवर फोर्ट
अगली सुबह मै पहुँच गई अलवर की सबसे चकित कर देने वाली धरोहर देखने जो की अरावली की उस पहाड़ी की चोटी पर है जो मूसी रानी की छतरी के सामने है | अगर आप पैदल जाते है तो यहाँ पहुंचना थोडा मुश्किल है क्यूंकि ये रास्ता अभ्यारण्य का हिस्सा है जहाँ अक्सर नील गाय और कुछ अन्य जंगली जानवर घूमते है मगर पहाड़ी की तलहटी से वन विभाग की जीप लेकर आप यहाँ आसानी से पहुँच सकते है| किला अभी जर्जर हालत में है मगर इसका कुछ हिस्सा अभी भी सुरक्षित है जहाँ तक जाने के लिए कुछ दुरी तक हाईकिंग यानी चढाई चढ़नी पड़ती है| किला ग्याहरवी सदी के एक कच्चे किले के मलबे के ऊपर बना है और चारो तरफ से जंगल से घिरा है | बाला किला हसन खान मेवाती ने सोलहवी सदी में बनवाया था और इसमें प्रवेश के 6 द्वार है जो की यहाँ राज करने वाले राजाओ ने अपने अपने शासन में बनवाये थे।
इन एतिहासिक धरोहरों के अलावा अलवर में कुछ मानव निर्मित झील भी है जिन्हें आप चाहे तो देख सकते है खैर मै इतिहास की शौक़ीन हूँ इसलिए मुझे ये मानव निर्मित झील कम पसंद है यहाँ जाने की बजाय मैंने सारा दिन किले को घूमने में बिता दिया| और अगली सुबह मैंने इन सुंदर झीलों के दर्शन किए। अलवर की झीलों के नाम है सिल्ली शेड झील और जैस्मंद झील , दोनों ही शहर के बाहरी हिस्सों में बनी है |
कैसे पहुंचे अलवर
अलवर शहर रेल और सड़क मार्ग से बड़े महानगरो से जुड़ा हुआ है , मै आपको सलाह दूंगी के अगर आप दिल्ली या जयपुर से है तो अलवर अपने परिवार या दोस्तों के साथ रोड ट्रिप पर आयें| अलवर जयपुर से 120 किलोमीटर और दिल्ली से 163 किलोमीटर दूर है और यहाँ तक पहुँचने के लिए शानदार सड़क मार्ग है| अगर आप खुद ड्राइव करके आने की बजाय आराम से मजेदार ट्रिप करना चाहते है तो अलवर तक इन दोनों शहरो से सस्ती कैब भी मिल सकती है|
घूमने का सबसे बढ़िया समय
अलवर शहर में घूमने का सबसे अच्छा समय है अक्टूबर से मार्च तक , बाकी यहाँ गर्मियों में घूमना काफी मुश्किल है क्यूंकि यहाँ तापमान काफी ज्यादा रहता है | बरसात के मौसम में भी आप आ सकते है अगर पहाड़ो पर हरियाली देखनी है तो और वो समय है अगस्त और सितम्बर का महिना।
तो जब भी आप अलवर दर्शन के लिए जाए तो मुझे अपने विचार अवश्य व्यक्त करे। मेरी यात्रा विशेष का वर्णन आप सभी को कैसा लगा। अपने विचार अवश्य व्यक्त करे। तो मिलते है फिर एक नई यात्रा के साथ।