दिल्ली से कज़ाकिस्तान के शिमकेंट तक की केवल फ्लाइट कभी कभी सस्ती मिल जाती है। लेकिन शिमकेंट में घूमने को कुछ खास हैं नहीं। हमने वहां का लोकल मॉल घूमकर सीधी अल्माटी तक की ट्रैन बुक कर ली थी। जो करीब 1300 रूपये मतलब 7250 टेंगे का 3rd ac का टिकट था।सबसे पहली दिक्कत ही हमें वहां यह आई कि ट्रैन कैसे पहचाने ,फिर अपना डिब्बा कोनसा होगा यह कैसे पहचाने। क्योंकि टिकट की भाषा समझ आ नहीं रही थी। स्थानीय लोगों की मदद इसमें हमारी मदद की। फिर दिक्कत आई सिम और कुछ वेज फ़ूड लेने में। हमारे पास इंटरनेट था नहीं तो हम ट्रांसलेटर का इस्तेमाल नहीं कर पाए।
यहाँ की 3rd ac का डिब्बा हमारे यहाँ वाली ट्रैन के डिब्बे से काफी अलग होता हैं। इसमें अलग अलग 4 -4 लोगों के सोने के लिए केबिन होते हैं जिसको आप अंदर से बंद भी कर सकते हैं। बैग्स को रखने के लिए अच्छा स्पेस होता हैं। तकिया ,कंबल सब कुछ पहले ही रखा होता हैं केवल उनके कवर हमको नए मिल जाते हैं। ट्रैन में पीने के लिए उबलता गर्म पानी मिलता हैं नलों में ,क्योंकि यह एक ठंडा इलाका है। केबिन के बाहर बैठने के लिए भी सुविधा होती हैं। इस ट्रैन के एक डिब्बे में पूरा रेस्टॉरेंट था जो कि हमारे डब्बे से काफी दूर था। मतलब कि हमारे डब्बे से वहां पहुंचने में 5 -7 मिनट लगे। फिर वहां भी भाषा की समस्या रही।
इसीलिए पहले दिन तो हमने अपने साथ भारत से जो चीजे ले गए थे उन्हें खाया। यह सफर करीब 15 घंटे लम्बा रहा। रास्तों में हर तरफ रेगिस्तान नजर आ रहे थे। सुबह 9 बजे हम अल्माटी पहुंच गए।अल्माटी चारो तरफ से ग्लेशियर्स से घिरा हुआ था। अल्माटी कज़ाकिस्तान की पूर्व राजधानी हैं और यहाँ घूमने की कई जगहें हैं। हमने airbnb से एक अपार्टमेंट बुक पहले से ही करवा रखा था लेकिन उसका चेकइन समय दोपहर 2 बजे का था। तो हम एक फेसबुक मित्र "नीरज राव" जी के हॉस्टल चले गए। नीरज भाई कई साल से काजकिस्तान में रह रहे हैं और वहां उनका हर फील्ड में अच्छा नेटवर्क हैं। उन्होंने हमें कहा कि हम अपना सामान उनके यहाँ छोड़ कर घूमने जा सकते हैं और शाम को सामान लेके अपने अपार्टमेंट में चले जा सकते हैं। नीरज भाई कज़ाकिस्तान टूरिज्म का भी काफी प्रचार करते हैं और कज़ाकिस्तान में कई वेब फिल्म्स ,विज्ञापन आदि के लिए शूटिंग्स भी करवाते हैं।जो भारतीय कज़ाकिस्तान घूमने आते हैं उनकी ये हरसम्भव मदद करते हैं। जैसे कि इन्होने मेरे एक साथी की कुछ बुकिंग्स खुद ही करवा दी थी और अपनी जेब से पैसा भी भर दिया था। बिना हमें पर्सनली जाने और वो भी हमारे कज़ाकिस्तान पहुंचने से कुछ दिन पहले ही।केवल फेसबुक ,इंस्टाग्राम के मेसेज से ही इन्होने यह काम कर दिया। अब हमें भी विश्वास हो गया था कि कज़ाकिस्तान में नीरज भाई हैं तो हमें कोई समस्या नहीं।
नीरज भाई के साथ हम वहां के एक लोकल रेस्टॉरेंट में खाना खाने गए तब उन्होंने बताया कि यहाँ वेज फ़ूड में काफी दिक्क्तें आएगी। उन्होंने आगे बताया कि अल्माटी में गिने चुने कुछ इंडियन रेस्टॉरेंट्स हैं लेकिन वे सब अलग अलग दिशाओं में हैं और वहां भी शुद्ध शाकाहारी नहीं मिलता हैं।हमें यहाँ के लोकल रेस्टॉरेंट में कैसे क्या खाना पीना मिलता हैं ,यह जानने का मौका मिला। उसके बाद अपने बैग्स नीरज भाई के यहाँ रख कर हम निकल पड़े इनकी बताई एक प्रसिद्ध जगह शिमबुलाक (shymbulak ) की तरफ। हमारा जो टैक्सी वाला था वो इंडियन गाने ही सुन रहा था ,हालाँकि उसे समझ कुछ नहीं आ रहा था परन्तु ऐसा प्रतीत हुआ कि उसे भारतीय गाने पसंद हैं।
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-RISHABH BHARAWA