इलाहाबाद का महत्व अपने आप में प्राचीन काल से महत्व बना रहा है
पुराणों में ज्ञात है कहा जाता है इसका प्राचीन नाम 'प्रयाग' है।
हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के तट पर स्थित है। दोनो नदिया गुप्त रूप से संगम होता है
जहां प्रत्येक बारह वर्ष में एक भव्य मेला का आयोजन होता है जहां भारी मात्रा में सैलानी आते हैं।
जिसमें विश्व के विभिन्न कोनों से करोड़ों श्रद्धालु पवित्र त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं।
अतः इस नगर को संगमनगरी, कुंभनगरी, आदि नामों से भी जाना जाता है।
आज से कई शताब्दी पूर्व मुगल राजा द्वारा इस शहर का नाम प्रयागराज से बदलकर इलाहाबाद किया था ।
वर्तमान समय पुनः प्रयागराज नाम हो गया है।
प्रयाग उस स्थान का नाम है जहाँ ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था।
ऐसा पवन स्थान का जिक्र पुराणों आदि ग्रंथों में मिलता है।
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प्रयागराज किला
मध्यकालीन सम्राट अकबर ने प्रयाग की यात्रा की और एक शाही शहर इलाहाबाद की स्थापना की 1583 में अकबर ने प्रयागराज में गंगा और यमुना के संगम पर एक किले का निर्माण प्रारम्म करवाया।
वर्तमान में आर्मी बेस्ड स्थापित है।
स्वराज भवन
स्वराज भवन प्रयागराज में स्थित एक ऐतिहासिक भवन एवं संग्रहालय है। इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण मोतीलाल नेहरू ने करवाया था। 1930 में उन्होंने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसके बाद यहां कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बनाया गया। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म यहीं पर हुआ था। आज इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया है।
आनन्द भवन, प्रयागराज
नेहरु ने इसकी नींव 1926 रखी। वास्तुकला की द्ष्टि से यह भवन अपने आप में अनोखा है। यह दो मंजिली इमारत है आनन्द भवन भारतीय स्वाधीनता संघर्ष की एक ऐतिहासिक यादगार हैं और ब्रिटिश शासन के विरोध में किये गये अनेक विरोधों, कांग्रेस के अधिवेशनों एवं राष्टीय नेताओँ के अनेक सम्मेलनों से इसका सम्बन्ध रहा है।
प्रवासी पक्षी का आगमन ठंडी के समय रहता है जहां दृश्य अद्भुत रहता है