यह यात्रा लॉकडाउन होने से पहले की गई थी।
केम छो? मज़ा मा।
घुमक्कड़ दिल और दिमाग का आलम ये है कि घूम कर आये नहीं कि मन एक बार फिर बेचैन होना शुरू हो जाता है कि अगली यात्रा कहाँ और कैसी हो ?
जून में ऊटी और कुर्ग की यात्रा काफी सुहानी रही थी इसलिए पहाड़ों पर तो जाने का मन बिल्कुल भी नहीं था। मन हुआ कि क्यों ना कोई शहर घूमा जाए। इतना विशाल देश और सैंकड़ों शहर। कौन से शहर चलें ये भी एक यक्ष प्रश्न कि भाँति हमारे सामने खड़ा था। मुम्बई जाते हुए ट्रेन द्वारा गुजरात से गुजरे जरूर थे मगर कभी बापू की धरती पर पैर रखना नसीब नहीं हुआ था तो फिर कार्यक्रम बन ही गया अहमदाबाद का।
इंटरनेट से शहर के बारे में जरूरी जानकारी लेनी चाही तो बहुत से लोगों की राय मालूम हुई कि जी बहुत ज्यादा वहाँ देखने को कुछ है नहीं। अब जब मन केंद्रित हो ही चुका था तो ये राय-वाय या फीडबैक अपने लिए बेमानी था। निराशावादी लोगों को तो अपने यहाँ भी कुछ नज़र नहीं आता बस दुबई, सिंगापुर या स्विट्ज़रलैंड जाने को ही बेताब रहते हैं और अपना हाल ये है कि अपने देश से खूबसूरत हमें कोई मुल्क नहीं लगता खैर....जिसकी जैसी सोच।
तो जी स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस से शुक्रवार शाम जाने का और रविवार शाम वापसी का AC-3 का आरक्षण करा लिया।
अपना उसूल है कि कहीं जाओ तो ढंग से जाओ वरना मत जाओ। दो दिनों का कार्यक्रम बना था लिहाज़ा एक रात बीच में थी। अब रात थी तो रुकना था और रुकना था तो होटल या गेस्ट हाऊस भी आरक्षित कराना जरूरी था। आजकल Oyo, Treebo, Go Stays आदि के अच्छे विकल्प खुल गए हैं अन्यथा पहले तो धर्मशाला अथवा होटल खोजना पड़ता था। तो जी हमने भी अग्रिम राशि देकर आश्रम रोड पर Oyo होटल बुक करा लिया।
दिन गुज़रते-2 वह दिन भी आ गया जिसका हमें बेसब्री से इंतज़ार था। हमारी ट्रेन यात्रा का दिन। हमारे साथ सफर करने वालों में सभी गुजराती लोग ही थे। कोई पुस्तक पढ़ रहा था तो कोई कानों में इयरफोन लगाए गाने सुनने में व्यस्त। सब अपने में मगन। थोड़ी देर में भोजन आ गया और फिर अपनी मन-पसंद आइसक्रीम। ट्रेन में तो सफर करना वैसे भी अच्छा ही लगता है.......मगर लंबे सफर में सबसे अधिक खुशी इस बात की होती है कि रात को सोने चले अपने शहर में और अगले दिन सुबह आँखें खुलें मीलों दूर स्थित किसी अन्य शहर में।
खैर, जी पहुँच गए अहमदाबाद। ट्रेन से उतरकर ऑटो वाले से आश्रम रोड का किराया पूछा तो जवाब मिला "साब, जो मीटर बोलेगा, सो देना"। वाह-जी-वाह!! ऐसे ऑटो वाले अपनी दिल्ली में भी हो जाएं तो सारी परिवहन समस्या ही सुधर जाए वरना यहाँ तो पहले किराया तय करो और फिर बैठो....कुछ अपवादों को छोड़ कर। वैसे ola और uber भी है इस शहर में।
मात्र २० मिनटों में होटल पहुँच गए मगर पहले मन किया कि कुछ लोकल खा लिया जाए। एक रोड-साइड रेस्टोरेंट में फाफड़ा, २ थेपले और एक स्पेशल चाय ऑर्डर कर दी। नाश्ता बढ़िया था मगर एक बात जो हमें समझ नहीं आयी वो ये कि नाश्ते में मिरचें और मीठी कढ़ी भी सर्व करी जाती है। होटल से फ्रेश होकर हम निकले घूमने और पहुँच गए साबरमती आश्रम पर। हमने पहले ही 'ऐमदाबाद ट्रेवल्स' से आरक्षण करा रखा था जो कि एक वातानुकूलित बस सेवा है जो कि 'अंकुर ट्रेवल्स' के सहयोग से चलती है। टिकट ५०० रुपये है। अहमदाबाद के पर्यटन स्थल और गांधी नगर स्थित अक्षरधाम मंदिर घुमाने के बाद आपके नज़दीकी होटल अथवा निवास पर वो लोग आपको छोड़ देते हैं। बस में अधिकतर यात्री विदेशी थे।
साबरमती आश्रम
साबरमती आश्रम 1917 से 1930 तक मोहनदास गांधी का घर था जो भारत की स्वतंत्रता के आन्दोलन के मुख्य केन्द्रों में से एक था।
हथींसिंग जैन मंदिर
हथींसिंग जैन मंदिर, 15 वें जैन तीर्थंकर धर्मनाथ को समर्पित है और इसे अहमदाबाद के एक व्यवसायी शेठ हथिसिंग के द्वारा दान 10 लाख रूपयों की लागत से बनाया गया है। इसका निर्माण सन 1848 में हुआ था।
यहां स्थित 78 मीटर ऊंचा लम्बा टॉवर राजस्थान के चित्तौड़ टॉवर से मिलता है। इस टॉवर पर की गई नक्काशी मुगल डिजाइन से काफी मिलती जुलती है।
अहमदाबाद में हमने सरखेज रोजा, झूलता मीनार, सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय संग्रहालय और फिर गांधी नगर में अक्षरधाम मंदिर भी देखा। प्रतिदिन शाम को होने वाला "साउंड एंड लाईट शो" देखने लायक होता है।
अहमदाबाद की बात हो और मानेक चौक का जिक्र ना हो ऐसा तो हो नहीं सकता। रात के समय यहां विभिन्न पकवानों की दुकानें सजती हैं जिन्हें देखते ही मुंह में पानी आ जाए। दक्षिण का डोसा हो या मुंबई का वडा पाव, पनीर टिक्का, चाट पकौड़ी या फिर सैंडविच। हर व्यंजन जायके से भरा हुआ।
लगभग डेढ़ दिन में हमने समस्त अहमदाबाद देख लिया था। हमारी वापसी की ट्रेन रात की थी और लगभग 6 घंटे अभी हमारे पास थे।
गुजराती नाश्ते की एक प्रसिद्ध दुकान हमें दिखी "इंदु बेन खाखरावला" के नाम से। थेपले, फाफ़डा, खांडवी के हमने दो दो पैकेट पैक कराए और चल दिए कांकरिया झील की ओर।
यह एक कृत्रिम झील है। शाम के समय मौसम सुहावना था और नज़ारा शानदार था। यहां एक छोटी टोय ट्रेन भी चलती है और एक मिनी ज़ू (चिड़ियाघर) भी है। बच्चों के लिए ये जगह अत्यधिक आकर्षक है।
पास ही के एक रेस्टोरेंट में हमने भोजन किया। ट्रेन का समय हो रहा था और अहमदाबाद की यादें समेटे हम वापिस चल दिए रेलवे स्टेशन की ओर।